मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

बैगा आदिवासी महिलाओं ने चित्रकारी से बनाई दुनिया में पहचान - बैगा आदिवासी

जिले की जोधईया बाई ने अपनी चित्रकारी से दुनिया में पहचान बनाई है. वहीं उनके गुरू आशीष स्वामी ने एक छोटे से गांव में गोंड़ी चित्रकार जनगण सिंह श्याम के नाम पर ‘जनगण तस्वीरखाना’ नामक स्टूडियो खोलकर बिना किसी सरकारी सहायता के बैगाओं को उनकी कला से परिचित कराने का अभियान शुरू किया है.

Baiga tribal women
बैगा आदिवासी महिलाएं

By

Published : Mar 8, 2021, 12:08 AM IST

उमरिया।अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतिवर्ष 8 मार्च को उन महिलाओं के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय काम किये हो. आज महिला दिवस पर ऐसी महिलाओं की सराहनीय कहानी हम आपको बताएंगे. जिले के एक छोटे से गांव लोढ़ा में निवासरत 80 वर्षीय जोधईया बाई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कलाकार हैं. जोधईया बाई के बनाए चित्र देश के साथ ही अमेरिका, जापान, इटली, इंग्लैड और फ्रांस जैसे देशों के प्रदर्शनी में रखे गए हैं. जोधईया बाई का प्रारंभिक जीवन गरीबी में बीता है.

आदिवासी महिलाओं ने चित्रकारी से बनाई दुनिया में पहचान
  • बैगिन चित्रकला को किया जीवित

उनके हाथों से उकेरे गये चित्र आज दुनिया के मशहूर चित्रकार लियोनार्दो द विंची के देश इटली में रंग बिखेर रहे हैं. जोधईया बाई के चित्रों की धाक इटली के मिलान शहर में आयोजित इस प्रदर्शनी के आमंत्रण पत्र के कव्हर पेज भी जोधईया बाई की पेंटिंग से रंगा हुआ है. जोधईया बाई ने विलुप्त होती बैगिन चित्रकला को एक बार फिर जीवित कर दिया है. जिस बड़ादेव और बघासुर के चित्र कभी बैगाओं के घरों की दीवार पर सजते थे. वे अब दिखाई नहीं देते और न ही उन्हें नई पीढ़ी के बैगा जानते हैं. उन्हीं चित्रों को जब जोधईया ने कैनवास और ड्राइंग सीट पर आधुनिक रंगों से उकेरना शुरू किया तो बैगा जनजाति की यह कला एक बार फिर जीवित हो उठी है.

Women's day : ETV भारत की 'अपराजिताओं' के दिल की बात

  • कई चित्रकारों को किया तैयार

उम्र के आखिरी पड़ाव में जब जोधईया बाई की मुलाकात जब चित्रकार आशीष स्वामी से हुई तो उन्होंने जोधईया बाई को अपने तस्वीर खाने में साफ-सफाई करने के लिए काम पर बुला लिया, ताकि जोधईया को 2 पैसे मिलते रहे और उसका बुढ़ापा आसानी से कट सके. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. कैनवास और ब्रश से जोधईया बाई का ऐसा नाता जुड़ा की आज जोधईया बाई की ख्याति भारत के साथ साथ पूरे विश्व में गूंज रही है. आशीष स्वामी ने बैगा आदिवासी महिलाओं को उन्हीं की कला कुछ इस तरह सिखाई है कि वे अब राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कलाकार बन गई हैं. आशीष स्वामी ने एक छोटे से गांव में गोंड़ी चित्रकार जनगण सिंह श्याम के नाम पर ‘जनगण तस्वीरखाना’ नामक स्टूडियो खोलकर बिना किसी सरकारी सहायता के बैगाओं को उनकी कला से परिचित कराने का अभियान शुरू किया है. गांव लोढ़ा में नेशनल हाइवे-43 के किनारे लगभग एक एकड़ में आशीष स्वामी ने स्टूडियो तैयार किया है. आशीष स्वामी ने न सिर्फ जोधइया बाई बैगा को आदिवासी चित्रकार बनाया, बल्कि संतोषी बाई बैगा, झूलन बाई बैगा, रामरती बैगा, सगुन बाई बैगा जैसी आदिवासी महिला चित्रकारों को भी तैयार किया. जो बैगा आदिवासी महिलाएं जलाऊ लकड़ी बेचकर अपना गुजारबसर करती थी. आज आदिवासी चित्रकारों की बिरादरी में ये सब सुमार हैं और आज ये महिलाएं आज मध्य प्रदेश का नेतृत्व कर रही हैं.

  • अपने गुरू से ही सीखी चित्रकारी

उमरिया की आदिवासी चित्रकार जोधईया बाई बैगा ने कहा कि आदिवासी चित्रकारी के क्षेत्र में मैंने और जो हमारी बैगा बहनों ने सीखा है. वह अपने गुरू आशीष स्वामी के मार्गदर्शन में ही सीखा है. उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुंची जोधईया बाई का हुनर इस बात की प्रेरणा देता है, कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती. महज 10 वर्ष पहले कैनवास पर चित्र उकेरना सीखने वाली आदिवासी महिला जोधाइया बाई की प्रसिद्धि आज विश्व भर में है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details