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10वीं शताब्दी का मंदिर बेहद खास, जानिए कैसे पड़ा कलचुरी शासकों की आराध्य देवी महिषासुरमर्दिनि माता का नाम

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Published : Oct 17, 2020, 8:48 AM IST

Updated : Oct 17, 2020, 10:22 AM IST

उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली में स्थित मां बिरासिनी का ये मंदिर 10वीं शताब्दी के कलचुरीकाल का है. कलचुरी शासक शक्ति के उपासक थे और महिषासुरमर्दिनि माता कलचुरियों की आराध्य देवी थी, कहा जाता है इसी के चलते उमरिया जिले में इसकी स्थापना की गई, वहीं इस मंदिर को लेकर ऐसी और भी कई किवदंतियां हैं, देखिए रिपोर्ट..

Umaria News
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उमरिया। जिले के बिरसिंहपुर पाली नगर में स्थित त्रिपुरी कलचुरी कालीन महिषासुरमर्दिनि माता बिरासिनी का भव्य मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में पूरे देश में प्रसिद्ध है. सतपुड़ा मैकल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में अमरकंटक से निकलने वाली जोहिला नदी के दाहिने तट पर माता बिरासनी का मंदिर विराजमान है. नवरात्री के आगाज के साथ ही मां बिरासिनी के दरबार में भक्तों की तांता लगना शुरू हो जाता है. चैत्र नवरात्र और शारदेय नवरात्र में यहां भव्य मेला लगता है, साथ ही बिरासिनी मंदिर के जवारों को देखने के लिए दूर दूर से भक्तजन यहां पहुंचते हैं. कटनी बिलासपुर रेलवे मार्ग के बीच में बिरसिंहपुर पाली नाम का रेलवे स्टेशन है. साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग 43 के माध्यम से भी बड़ी सरलता के साथ मां बिरासिनी के दरबार पहुंचा जा सकता है.

वहीं इस बार कोरोना काल के चलते इसके लिए विशेष तैयारियां की गई है, उमरिया कलेक्टर ने बताया की लोगों की आस्था और श्रद्धा का ध्यान रखते हुए मंदिरों में विशेष व्यवस्था की गई है, जिसके लिए अधिकारियों द्वारा सभी व्यवस्थाओं पर नजर रखी जा रही है.

आराध्य देवी मां बिरासिनी का मंदिर

कलचुरी राजाओं की आराध्य देवी मां बिरासिनी

मंदिर के पुजारी का कहना है कि 550 से 1,740 तक लगभग 1,200 वर्ष की अवधि में कलचुरी राजाओं ने राज किया था, इन कलचुरी वंश की चार शाखाओं में से एक त्रिपुरी के कलचुरियों द्वारा इस क्षेत्र में काफी मंदिरों का निर्माण कराया गया था. कलचुरी शासक शक्ति के उपासक थे और महिषासुरमर्दिनि माता कलचुरियों की आराध्य देवी थी, यही कारण है कि महिषासुरमर्दिनि माता की मूर्तियां उमरिया जिले के चार स्थलों में हूबहू एक ही तरह की पाई गईं हैं, जिसमे बिरसिंहपुर पाली की बिरासिनी देवी सबसे बड़ी प्रतिमा है.

मंदिर का इतिहास

शहर के वरिष्ठ नागरिक प्रकाश पालीवाल का कहना है कि मंदिर के बारे में किवदंती है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व गोंड़ समाज के धौकल नाम के पुजारी के पूर्वज रंगीले छबीले को जुताई के दौरान माता बिरासिनी की प्रतिमा मिली थी, जिसे उन्होंने महुए के पेड़ के नीचे रख दिया था, और वहीं आज एक भव्य मंदिर में माता बिरासिनी दरबार के रूप में स्थापित हैं.

क्यों कहते हैं मां को महिषासुरमर्दिनि माता

मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था, इसी कारण देवी को महिषासुर मर्दनी कहा जाता है, मार्कण्डेय, वराह, वामन पुराणों में भी देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध की और देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध की जानकारी मिलती है. मार्कण्डेय पुराण में यह भी बताया गया हैं की महिषासुरमर्दिनि माता शिव, विष्णु और विभिन्न देवों के तेज से उत्पन्न हुई हैं. महिषासुरमर्दिनि माता को कात्यायनी या चंडी के नाम से भी पुकारा जाता है. कात्यायनी मूर्ति 10 भुजाओं वाली होती हैं. माता बिरासिनी की भी 10 भुजाओं वाली अद्भुत प्रतिमा है. माता बिरासनी के दाएं हाथों में शूल, खडग, वज्र, चक्र, बाण और बाएं हाथों में चाप, खेटक, पाश, घण्टा और अंकुश है. देवी बिरासनी के पैर के नीचे शिर विहीन महिष पड़ा हुआ है, और माता बिरासनी का दायां पैर महिष की पीठ पर और बायां पद्मपीठ पर है.

Last Updated : Oct 17, 2020, 10:22 AM IST

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