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उज्जैन के योगेश को मिलेगा द्रोणाचार्य अवार्ड, मलखंब के लिए पहली बार दिया जा रहा है सम्मान - मलखंभ के लिए पहला द्रोणाचार्य अवार्ड

उज्जैन जिले के मलखंब कोच योगेश मालवीय को भारत सरकार की ओर से द्रोणाचार्य से सम्मानित किया जाएगा. मलखंब के लिए ये सम्मान पाने वाले योगेश पहले कोच होंगे.

First Dronacharya Award for Malkhamb
मलखंभ कोच योगेश मालवीय

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Published : Aug 20, 2020, 2:53 PM IST

उज्जैन। मलखंब के गढ़ उज्जैन का नाम अब मलखंब और खेल जगत में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा. उज्जैन के मलखंब कोच योगेश मालवीय को भारत सरकार की ओर से खेल रत्न अवार्ड द्रोणाचार्य से सम्मानित किया जाएगा. देश में मलखंब के क्षेत्र में यह पहला द्रोणाचार्य अवार्ड होगा. अभावों के बीच मलखंब साधना को जारी रखने वाले योगेश को राष्ट्रीय खेल दिवस (29 अगस्त) पर भारत सरकार की ओर से यह अवार्ड दिया जाएगा.

मलखंभ कोच योगेश मालवीय

योगेश ने किया धन्यवाद ज्ञापित
योगेश ने इस मौके इस खेल को ऊंचाई देने के लिए सभी सरकारों, अधिकारियों, खिलाड़ियों और फेडरल को धन्यवाद अर्पित किया है. उन्होंने खासतौर पर भारत सरकार को धन्यवाद दिया है. जिसने मलखंब जैसे खेल को इतनी ऊंचाई दी. यह अवार्ड उज्जैन के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि मलखंब में देश का यह पहला द्रोणाचार्य अवार्ड है.

16 वर्ष की उम्र से दे रहे हैं प्रशिक्षण

40 वर्षीय योगेश का नाम इसके लिए तय हो चुका है, जिसकी केवल अधिकृत घोषणा होना बाकी है. किसी भी खेल में प्रशिक्षक के रूप में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए द्रोणाचार्य अवार्ड दिया जाता है.

शहर में ही गुदरी चौराहा क्षेत्र में रहने वाले योगेश 7 वर्ष की उम्र से मलखंभ कर रहे हैं. उन्होंने 16 वर्ष की उम्र से खुद मलखंभ करने के साथ ही इसका प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया था.

खेल के साथ परिवार का भी रखा ध्यान
योगेश के पिता धर्मपाल मालवीय महाकाल मंदिर के समीप ही प्रेस और ड्रायक्लीन की दुकान संचालित करते थे. आर्थिक संकट के चलते बचपन से ही योगेश उनकी दुकान संभालने लग गए.

धोबी घाट पर जाकर कपड़े धोने और प्रेस करने के साथ ही उन्होंने अपना मलखंभ का अभ्यास भी जारी रखा. शुरुआत में उन्होंने कबड्‌डी के खेल में अभ्यास किया लेकिन धीरे-धीरे वे मलखंब और योग के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए. 2006 में महाकाल क्षेत्र में ही पिता के साथ भक्ति भंडार की दुकान खोली, प्रशिक्षण देने के बाद नियमित यहां कंठी-माला बेचने का कार्य भी किया.

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