उज्जैन।'महाकाल लोक' कॉरिडोर पुरानी रुद्रसागर झील के चारों ओर है, जिसे प्राचीन महाकालेश्वर मंदिर के आसपास पुनर्विकास परियोजना के हिस्से के रूप में भी पुनर्जीवित किया गया है. कॉरिडोर में दो राजसी प्रवेश द्वार बनाए गए हैं, जो नंदी द्वार और पिनाकी द्वार हैं. ये द्वार प्राचीन मंदिर के प्रवेश द्वार के लिए अपना रास्ता बनाते हैं और रास्ते में सौंदर्य के दृश्य प्रस्तुत करते हैं. राजस्थान में बंसी पहाड़पुर क्षेत्र से प्राप्त बलुआ पत्थरों का उपयोग उन संरचनाओं के निर्माण के लिए किया गया है, जो गलियारे (कॉरिडोर) की खूबसूरती बढ़ाते हैं.
कई राज्यों के शिल्पकारों की मेहनत :परियोजना की शुरुआत से ही जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात और उड़ीसा के कलाकारों और शिल्पकारों ने कच्चे पत्थरों को तराशने और अलंकृत करने का काम किया है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि 2017 में शुरू हुई महत्वाकांक्षी परियोजना का मकसद प्राचीन मंदिर वास्तुकला के उपयोग के माध्यम से आगंतुकों को सभी सुविधाएं प्रदान करते हुए और नवीनतम तकनीक का उपयोग करके उज्जैन के ऐतिहासिक शहर के प्राचीन गौरव पर जोर देना और फिर से जागृत करना है. इसका भौतिक और सांस्कृतिक मूल्य है. इसलिए कॉरिडोर में नियमित अंतराल पर त्रिशूल-शैली के डिजाइन पर सजावटी तत्वों के साथ 108 स्तंभ, सीसीटीवी और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली को सामंजस्यपूर्ण रूप से शामिल किया गया है.
कॉरिडोर में सुरक्षा व्यवस्था पर जोर :जनता के लिए कॉरिडोर खुलने के बाद भीड़ प्रबंधन के लिए घोषणाएं करने और भक्ति गीत बजाने के लिए पीए सिस्टम का उपयोग किया जाएगा. साथ ही मंदिर कॉरिडोर परिसर में सुरक्षा व्यवस्था पर नजर रखने के लिए इंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर बनाया गया है. उज्जैन स्मार्ट सिटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आशीष कुमार पाठक ने कहा कि उज्जैन एक प्राचीन और पवित्र शहर है और पुराने हिंदू ग्रंथ महाकालेश्वर मंदिर के चारों ओर एक 'महाकाल वन' की उपस्थिति का वर्णन करते हैं. ये परियोजना उस प्राचीनता को पुनर्स्थापित नहीं कर सकती, जो सदियों पहले थी, लेकिन हमने गलियारे में स्तंभों और अन्य संरचनाओं के निर्माण में उपयोग की जाने वाली पुरानी सौंदर्य वास्तुकला के माध्यम से उस गौरव को फिर से जगाने का प्रयास किया है. इसके साथ ही और कालिदास के अभिज्ञान शकुंतलम में वर्णित बागवानी प्रजातियों को भी शामिल किया गया है. धार्मिक महत्व वाली लगभग 40-45 ऐसी प्रजातियों का उपयोग किया गया है, जिनमें रुद्राक्ष, बकुल, कदम, बेलपत्र, सप्तपर्णी शामिल हैं.