उज्जैन। तानसेन एक प्राचीन भारतीय संगीतकार, गायक और संगीत रचयिता थे, जो अपनी अद्भुत संगीत रचनाओं के लिये आज भी जाने जाते हैं. साथ ही वे वाद्य संगीत की रचनाओं के लिये भी काफी प्रसिद्ध हैं. तानसेन, सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे. अकबर ने ही उन्हें मियां की उपाधि दी थी, तानसेन के पिता मुकुंद मिश्रा एक समृद्ध कवि और लोकप्रिय संगीतकार थे, तानसेन के बचपन का नाम रामतनु था.
संगीत सम्राट तानसेन का स्मृति समारोह
अकबर के दरबार में रहने वाले सुर सम्राट तानसेन को श्रद्धांजलि देने के मकसद से तानसेन समारोह का आयोजन किया जाता है. तानसेन की स्मृति में इस समारोह का आयोजन पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है. ये समारोह हर साल दिसंबर के महीने में मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के 'बेहत' नामक गांव में तानसेन की समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से मनाया जाता है. प्रदेश सरकार का संस्कृति विभाग इस समारोह का आयोजन कराता है. चार दिवसीय संगीत समारोह में दुनिया भर के कलाकार और संगीत प्रेमी एकत्रित होकर महान भारतीय संगीतकार उस्ताद तानसेन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
शास्त्रीय संगीत की दुनिया के महान कलाकार
शास्त्रीय संगीत की दुनिया के महान कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दर्ज कराई है, जिनमें भीमसेन जोशी, शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, सरोद के महारथी उस्ताद अमजद अली खां और छन्नूलाल मिश्र जैसे कई और महान कलाकारों ने तानसेन के दरबार में उपस्थिति देते हुए संगीत को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है.
संगीत सम्राट तानसेन का इतिहास
'बेहत' गांव में एक प्राचीन इमली का पेड़ है, कहते हैं कि तानसेन इसी पेड़ के नीचे बैठकर संगीत का अभ्यास किया करते थे, 1940 के दशक में प्रख्यात गायक केएल सहगल तानसेन के मकबरे के पास लगे इमली के पेड़ की पत्तियां खाने के लिए खासतौर पर जाया करते थे. कहते हैं कि तानसेन की आवाज में सुरीलापन इस पेड़ की पत्तियों को खाने से आता था. इस बात की जानकारी मिलते ही संगीत जगत के कई बड़े फनकार भी यहां आने लगे, जिन्होंने इसी इमली के पेड़ की पत्तियां खाकर संगीत जगत में अपना नाम कमाया है. तानसेन जैसी हस्तियों की बदौलत ही आज संगीत को एक नई पहचान मिली है, जिन्होंने दुनियाभर में मध्यप्रदेश और भारत का नाम रोशन किया है.