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रामलीला से ली पर्यावरण बचाने की प्रेरणा, 42 साल से परिवार-नौकरी छोड़ जुटे प्रकृति सेवा में - प्रकृति प्रेमी सुखदेव मुनि की कहानी

आज आपको ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें रामलीला से पर्यावरण बचाने के लिए प्रेरणा मिली. उन्होंने बेहतरीन नौकरी ही नहीं, अपना परिवार भी छोड़ा और अनोखा व्रत ले लिया. हम बात कर रहे हैं उज्जैन के उदासीन अखाड़े के सुखदेव मुनि की, जो प्रकृति की सेवा में पिछले 4 दशक से लगे हैं. साथ ही सामाजिक बदलाव के लिए कोशिशें भी कर रहे हैं. जानें उनके इंजीनियर की नौकरी छोड़ने से लेकर एक्टिविस्ट बनने तक की कहानी.

Story of disciple Sukhdev Muni
उज्जैन के उदासीन अखाड़े के महंत के शिष्य सुखदेव मुनि की कहानी

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Published : Mar 9, 2023, 3:23 PM IST

Updated : Mar 9, 2023, 8:28 PM IST

उज्जैन के उदासीन अखाड़े के महंत के शिष्य सुखदेव मुनि की कहानी

उज्जैन। प्रकृति के प्रति प्रेम रखने वाला निःस्वार्थ भाव से कुछ ठान ले तो वह मिसाल बन ही जाता है. इसका जीता जागता उदाहरण उज्जैन के उदासीन अखाड़े के सुखदेव मुनि हैं. जो श्री रामकथा से प्रेरित हुए. वे बीते 42 साल से बच्चों, पत्नी और इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर देश के अलग-अलग हिस्सों में पौधे लगाने में जुटे हैं. उनके लगाए गए कई पौधे आज पेड़ बनकर प्रकृति का श्रृंगार कर रहे हैं. अपने इस अनूठे काम से सुखदेव ने लोगों को पर्यावरण बचाए रखने का खास संदेश दिया है.

ऐसे बने प्रकृति प्रेमी:प्रकृति प्रेमी सुखदेव मुनि कहते हैं, "मैं शहर के कालिदास अकादमी, सुमन पार्क, विक्रम विश्वविधालय मार्ग, गुजरात, राजस्थान के आश्रमों पर और अन्य कई जगह पौधे लगा चुका हूं." मूल रूप से पंजाब स्थित फिरोजपूर के गांव फरमा वाला में जन्मे 74 वर्षीय सुखदेव मुनि पेशे से इंजीनियर थे. करीब 42 साल पहले पत्नी-बच्चों को पटियाला में छोड़कर उज्जैन आए और बड़ा उदासीन अखाड़े के महंत के शिष्य बनकर अलखधाम आश्रम के ही हो गए. इसके बाद पर्यावरण को बचाने की मुहिम में शामिल होकर पौधे लगाने का सिलसिला जो शुरू किया तो आज तक नहीं थमा.

रामलीला से मिली प्रेरणा:मुनि बताते हैं कि रामलीला में सीता का किरदार निभाते हुए पेड़ के वाकये ने उन्हें काफी प्रभावित किया. फिर एक राजा की कहानी में भी पौधारोपण से फांसी पर चढ़ने वाले को जीवन दान मिलते देखा. बस उसी दिन से वह बरसात की सीजन में झोले में बीज भरकर उजाड़ क्षेत्रों में जाते हैं और गड्डों में बीज डालने के नियम का पालन करते हैं. गर्मी में जहां पौधे दिखते हैं, उन्हें पानी डालते हैं. उन्हें अब तो याद भी नहीं कि वे कितने पौधे लगा चुके हैं. अगर वे पौधे नहीं लगाए या प्रतिदिन पानी न दें तो बीमार पड़ जाते हैं. उनका कहना है, "जब तक पौधे हैं, तब तक ही मेरा जीवन है."

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गुजरात-राजस्थान में भी लगाए लाखों पौधे: मुनि का पेड़ पौधों से लगाव का नतीजा है कि कभी उजड़ रहे कालिदास एकेडमी, सुमन पार्क, विक्रम यूनिर्वसिटी मार्ग आज हरे-भरे नजर आते हैं. यहीं नहीं, गुजरात व राजस्थान के आश्रम जाने पर वहां भी बड़ी संख्या में पौधे लगाते रहे. पौधों के प्रति उनके इस जुनून को देखते हुए कई समाज सेवी और बच्चे भी उनके इस अभियान में जुड़ गए हैं. वे अब तक लाखों पौधे लगा चुके हैं, जिनकी छाया और फल लोगों को मिल रहे हैं.

Last Updated : Mar 9, 2023, 8:28 PM IST

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