उज्जैन। प्रत्येक माह में दो बार शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है, पर श्रावण माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का महत्व बढ़ जाता है, विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल मंदिर के पुजारी बताते हैं कि क्या है श्रवाण माह की इस शिवरात्रि का महत्व, कैसे की जाती है बाबा महाकाल की पूजा और कब है शुभ मूहर्त, महाकाल मंदिर में कितना होता है शिवरात्रि का असर. मंदिर के मुख्य पुजारी महेश गुरू बताते हैं कि श्रावण माह शिव का महीना कहलाता है, जिसमें भक्त शिव की सेवा में लीन रहते हैं, श्रावण का सोमवार, प्रदोष व शिवरात्रि ये जो तीन दिन होते हैं, इनका महत्व अधिक होता है, इस दिन श्रद्धालु एक भी सामान्य वस्तु बाबा को अर्पित करते हैं तो बाबा उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं, बाबा को बेल पत्र बहुत प्रिय है.
पार्थी पूजा होती है विशेष
पुजारी महेश गुरु बताते हैं कि शिवरात्रि के दिन पार्थी पूजा का अधिक महत्व होता है, इस दिन बाबा महाकाल की मिट्टी से मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है, ऐसा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है, साथ ही कई यज्ञों के फल की भी प्राप्ति होती है. ज्योतिर्लिंग के शिवालय में पूजन करने वालो को पुण्य की कोई कमी नहीं रहती है क्योंकि ज्योतिर्लिंग के शिवालयों में उर्जा का स्रोत बहुत अधिक होता है, ऐसे में भगवान शिव को कोई एक बिल्व पत्र भी अर्पित करता है तो उसके 3 जन्मों के पापों का नाश हो जाता है.
महेश पुजारी बताते हैं कि मंदिर की जो परिधि है, ऐसा माना जाता है कि शिखर ध्वज की छाया जहां तक जाती है, वहां तक पूरा क्षेत्र पवित्र हो जाता है और जहां ज्योतिर्लिंग, आत्मलिंग स्वयं शिव विराजमान हो वो भी दक्षिणमुखी शिवलिंग, वहां किसी प्रकार का नक्षत्र, मूहर्त काम नहीं करता है. इस दौरान मंदिर में दर्शन व्यवस्था पूर्व की तरह की रही. श्रद्धलुओं को चार धाम मार्ग की ओर से हरसिद्धि माता मंदिर होते हुए बेरिकेटिंग से शंख द्वार से प्री बुकिंग के माध्यम से मंदिर में पहुंचना होगा और उसी रास्ते से बाहर की ओर निकलना होगा.