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उज्जैन में मलमास का विशेष महत्व, भगवान पुरुषोत्तम के नौ रूपों के दर्शन से मिलेगा नौ ग्रह शांति का वरदान - मलमास

पुरुषोत्तम मास या मलमास में नौ नारायणों के दर्शन करने से नौ ग्रहों की शांति मिलती है. इसी कारण उज्जैन में इसका महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि यहां नारायण के नौ स्वरूप विराजित हैं. आइये जानते हैं उज्जैन में विराजित नौ नारायण के मंदिरों के बारे में

Importance of Malmas
मलमास का महत्व

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Published : Sep 20, 2020, 6:25 PM IST

Updated : Sep 20, 2020, 6:47 PM IST

उज्जैन।हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है, और घट स्थापना के साथ नौ दिनों तक नवरात्रों की पूजा होती है. यानि पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ नवरात्र का आरंभ हो जाता है, जो इस साल नहीं होगा. इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास यानी मलमास या पुरुषोत्तम मास लग जाएगा. इससे नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा. आश्विन मास में पुरुषोत्तम मास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 160 साल बाद होने जा रहा है.

उज्जैन में है मलमास का विशेष महत्व

उज्जैन में इसका विशेष महत्व
पुरुषोत्तम मास में नौ नारायण की पूजा और सप्त सागर के दान का काफी महत्व है, नौ नारायणों के दर्शन करने से नौ ग्रहों की शांति हो जाती है. इसी कारण उज्जैन में इसका महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि यहां नारायण के नौ स्वरूप विराजित हैं. आइये जानते हैं उज्जैन में विराजित नौ नारायण की मंदिरों के बारे में

अनंतनारायण मंदिर
अनंतपेठ स्थित यह मंदिर 300 वर्ष से अधिक पुराना है. यहां अधिक मास के अलावा हरियाली अमावस्या तथा अनंत चतुर्दशी पर पूजा-पाठ का विशेष महत्व है. इनकी पूजा करने से अनंत सुख मिलता है.

सत्यनारायण मंदिर
ढाबा रोड स्थित यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है, इस मंदिर में प्रतिदिन ही श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. यहां सत्यनारायण के दर्शन और कथा श्रवण करने से सुख समृद्धि की कामना पूर्ण होती है.

पुरुषोत्तमनारायण मंदिर
हरसिद्धि मंदिर के पास लीला पुरुषोत्तम मंदिर करीब 200 वर्ष इस पुराना है. इस मंदिर में पुरुषोत्तममास के दौरान श्रद्धालुओं का तांता लगा रहेगा, यहां के दर्शन व पूजा करने से हर प्रकार की मनोकामनाओं की प्राप्ति होती है.

आदिनारायण मंदिर
सेंट्रल कोतवाली के सामने स्थित आदिनारायण मंदिर में दर्शन, पूजा करने से समस्त दुःखों का नाश होता है. यह पुरातन कालीन मंदिर है और पुरानों में इसकी व्याख्या मिलती है.

शेषनारायण मंदिर
क्षीरसागर परिक्षेत्र में स्थित यह मंदिर लगभग पांच सौ वर्ष पुराना है, इस मंदिर में भगवान विष्णु शेषनाग पर विश्राम कर रहे हैं. सामने बैठी माता लक्ष्मी उनके चरण दबा रही हैं. यहां भगवन के अद्भुत स्वरूप के दर्शन होते हैं.

पद्मनारायण मंदिर
क्षीरसागर परिक्षेत्र में स्थित यह मंदिर अति प्रचीन बताया जाता है. इस प्राचीन मंदिर में भगवान विष्णु का स्वरूप निराला है. यहां की यात्रा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है.

लक्ष्मीनारायण मंदिर
गुदरी चौराहा में स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर काफी प्राचीन है, यहां विराजित मूर्ति चमत्कारी है. कहा जाता है कि यहां नियमित दर्शन या आराधना करने वाले व्यक्ति को किसी बात की कमी नहीं रहती है.

बद्रीनारायण मंदिर
बक्षी बाजार स्थित बद्रीनारायण मंदिर काफी पुराना है. नौ नारायण की यात्रा करने वाले श्रद्धालु यात्री यहां पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं. वैसे तो पूरे साल यहां भक्त आते हैं, लेकिन अधि मास में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.

चतुर्भुजनारायण मंदिर
ढाबा रोड मुंषी राजा के बाड़े में स्थित, यह प्राचीन मंदिर भागवान विष्णू चतुर्भुजनारायण के रूप में विराजमान है. कहा जाता है यहां दर्शन करने से चौ तरफा ख्याति मिलती है.

क्या है मलमास
हिन्दू पंचांग में 12 माह होते हैं. इसका आधार सूर्य और चंद्रमा होता है. सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. इन दोनों वर्षों के बीच करीब 11 दिनों का फासला होता है. ये फर्क तीन साल में एक माह के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है. बढ़ने वाले इस महीने को ही अधिक मास या मलमास कहा जाता है.

मलमास कैसे हुए पुरुषोत्तम मास
पुराणों में के अनुसार स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को 'मलमास' कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी. इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनसे अपना दुख बताया. भक्तवत्सल श्रीहरि ने उसे अपना पुरुषोत्तम नाम दिया. तभी से इस मास को पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाने लगा. इस प्रकार भगवान ने अनुपयोगी हो चुके अधिकमास को धर्म और कर्म के लिए उपयोगी बना दिया. अत: इस दुर्लभ पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान एवं दान करने वाले को कई पुण्य फल की प्राप्ति होगी.

इसलिए महत्वपूर्ण माना गया है अधिक मास
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इस मास का एक अलग ही महत्व होता है, इस माह में ब्रम्हमुहूर्त में स्नान, पूरे माह का व्रत, पुराण, ग्रंथों का अध्ययन आदि करना लाभकारी होता है. अंतिम 5 दिन भगवान विष्णु की आराधना करते हुए व्रत रख, दान करने का काफी महत्व है. इस मास में दिए गए दान का पुण्य दोगुना प्राप्त होता है.

ये हैं इस बार के शुभ मुहूर्त
इस मास में प्राण प्रतिष्ठा, विवाह, मुंडन, नववधू, गृह प्रवेश, यज्ञ पावती, नामकरण संस्कार नहीं किए जाते हैं, लेकिन इस मास में पूजा पाठ, तीर्थ, स्नान, दान-पुण्य और खरीदी के लिए ये काफी महत्वपूर्ण होता है. इस माह में 30 दिनों में 18 मुहूर्त ऐसे हैं, जिनमें क्रय विक्रय, जमीन की खरीदी, वाहन खरीदी का काफी महत्व है. इस माह में पुष्य नक्षत्र के दिन खरीदी का भी काफी महत्व माना गया है.

160 सालों बाद लीप ईयर और अश्विन मास एक साथ
अंग्रेजी कैलेंडर में भी जहां सूर्य के गतिमान के बराबर करने के लिए फरवरी के माह में 1 दिन की बढ़ोत्तरी की जाती है, जो फरवरी में 29 फरवरी के रूप में जाना जाता है, जिसे लीप ईयर कहा जाता है. वहीं हिंदू कैलेंडर में भी 3 वर्षों बाद एक मास को बढ़ाया जाता है, इसे मलमास, अधिमास, पुरुषोत्तम मास कहा जाता है. इस साल ऐसा संयोग है कि लीप ईयर और अधिक मास एक ही साल में हुए. इससे पहले लीप ईयर और अधिक मास 160 साल पहले 1860 को साथ में आए थे.

इस तरह होती है पूजा
इस माह में पवित्र नदियों के किनारे पर जाकर लोग अपना समय व्यतीत करते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करने के पश्चात पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है. इस माह में पूरे 30 दिन व्रत रखा जाता है और एक समय पर भगवान विष्णु की कथा का पाठ भी किया जाता है. अंतिम 5 दिनों में जल आहार करते हुए इसका व्रत रखा जाता है और अंतिम दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, जिसमें भगवान को मालपुए का भोग लगाया जाता है और फिर पंडितों और गरीबों को दान दिया जाता है.

Last Updated : Sep 20, 2020, 6:47 PM IST

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