उज्जैन।उज्जैन में भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए उतना ही महत्व है, जितना महत्व गयाजी का है. इसके साथ ही रामघाट पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध स्थान माना जाता है. भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी उज्जैन में किया था. गयाकोठा मंदिर में हजारों लोग पूर्वजों के निमित्त जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करेंगे. शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है. धर्म शास्त्रों में अवंतिका नगरी के नाम से प्रख्यात उज्जैन शहर में श्राद्ध पक्ष के आरंभ होते ही देश के कोने -कोने से लोगों का आना शुरू हो जाता है.
मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर पिंडदान :मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के तटों पर स्थित सिद्धवट पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए तर्पण व पिंडदान कराने पंहुचते हैं. शहर के अतिप्राचीन सिद्धवट मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. यहां लोग प्राचीन वटवृक्ष का पूजन-अर्चन कर पितृ शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. मान्यता है कि वट वृक्ष देशभर में चार जगह पर स्थित हैं. इसमें से एक उज्जैन के सिद्धवट घाट पर है, जोकि माता पार्वती ने लगाया था. इसक वर्णन स्कंन्द पुराण में भी है. सिद्धवट पर पितरों के निमित्त कर्मकांड व तर्पण का यह कार्य16 दिनों तक चलता रहेगा. पितृ मोक्ष हेतु श्रद्धालु इन 16 दिनों की विभिन्न तिथियों में ब्राह्मण को भोजन दान, गाय दान, साथ ही गाय व कव्वौ को भोजन कराते हैं.
भगवान राम ने भी उज्जैन में श्राद्ध किया था :मान्यता है कि उज्जैन में श्राद्ध करने से पितरों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. पंडित राजेश त्रिवेदी ने बताया कि उज्जैन अवंतिका नगरी बाबा महाकाल के नाम से जानी जाती है. सतयुग से बाबा महाकाल के रूप में शिव का यहां पर आगमन हुआ और सतयुग से ही तर्पण श्राद्ध के लिए यह जगह जानी जाती है. जब उनकी सेना भूत प्रेत पिशाच ने उनसे अपने मुक्ति का स्थल मांगा था तो उनके आशीष से मुक्ति का स्थल सिद्धवट क्षेत्र दिया तब से सिद्धवट को भूत प्रेत पिशाच को मुक्ति के प्रेत शिला के रूप में जाना जाता है. वनवास के दौरान स्कंद पुराण के अनुसार भगवान राम, मां सीता और लक्ष्मण जी के साथ में इस नगर से जब गुजरे तो उन्होंने अपने पिता दशरथ जी के लिए यहां पर तर्पण श्राद्ध किया था.
Pitru Paksha 2022: जानिए पितृपक्ष में क्यों निकाला जाता है जीव-जतुओं के लिए खाना, क्या है मान्यता
हमारे रिकॉर्ड पर कोर्ट ने दिए फैसले :पंडित दिलीप डब्बेवाला तीर्थ गुरु ने बताया की 150 साल पुराना रिकॉर्ड सभी पंडितों के पास हैं. कोई भी कम्प्यूटर नहीं चलाता. इस युग में भी कुछ ही पलों में बही- खाते में से पीढ़ियों का हिसाब सामने रख देते हैं. 150 वर्ष पुराना रिकॉर्ड रखने के लिए किसी भी कम्प्यूटर का सहारा नहीं लिया जाता है. सिर्फ पोथी में इंडेक्स, समाज का नाम, गांव या शहर का नाम या गोत्र बताने से ही पीढ़ी में कौन- कब आया था और किसका तर्पण किया गया था. ये सब चुटकियों में पता चल जाता है. यही नहीं वर्षों पुराने इस बही खाते को तो कोर्ट भी मान्य करता है. भाई- भाई के जायदाद के विवाद में कोर्ट ने भी इसे मान्यता दी है और कई बार फैसले भी बही खाते के आधार पर हुए हैं. Pitru Paksha 2022, Importance Tarpan Ujjain, Panda give details genealogy, 150 years genealogy without computer, Pind Daan at okshadayini Shipra