उज्जैन। कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी यानी वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) पर बुधवार-गुरुवार की देर रात 12 बजे हरि हर का मिलन हुआ. बाबा महाकाल परंपरा अनुसार मंदिर से रात 11 बजे पालकी में सवार होकेर लाव लश्कर के साथ भगवान विष्णु 'हरि' (Lord vishnu) से मिलने गोपाल मंदिर पहुंचे, जहां आतिशबाजी कर बाबा का स्वागत किया गया. रास्ते भर में कलर व फूलों की अद्भुत रंगोली से मार्ग को सुसज्जित किया गया. तोप घुड़ सवार, ढोल, नगाड़े, पुलिस बैंड ने बाबा महाकाल की अगुवाई की. वहीं मंदिर के मुख्य द्वार पर बाबा को पुलिस बल द्वारा सलामी दी गई. मंदिर के पूजारी परिवार ने बाबा की आरती की. इस दौरान जिलाधीश, प्राशासक व एसपी ने पालकी को कंधा देकर मंदिर से पालकी को रवाना किया.
बाबा महाकाल की पालकी यात्रा. वैष्णव और शिव धर्म का संदेश
बाबा महाकाल (baba mahakal) पटनी बाजार होते हुए द्वारकाधीश धाम पहुंचे और दो घण्टे के पुजन अभिषेक के बाद बाबा 2 बजे फिर मंदिर लौटे आए. मान्यता है कि बाबा महाकाल कृष्ण रूप में विराजमान भगवान विष्णु को वापस सृष्टि का भार सौंप कैलाश की ओर निकल जाते हैं और ब्रह्मांड में केवल उज्जैन ही ऐसा तीर्थ है, जहां भगवान खुद 'वैष्णव और शिव धर्म के एक ही होने का संदेश देते हैं.
शिव को तुलसी की माला भेंट करते हैं भगवान शिव
भगवान शिव (Lord shiva), विष्णु को सृष्टि का भार सौंपते वक्त बेल पत्र की माला पहनाते हैं और भगवान विष्णु शिव को तुलसी की माला भेंट करते हैं. कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासन ने आयोजन सादगी से करवाने का निर्णय लिया. सवारी में केवल पुजारी, पालकी उठाने वाले कहार और ड्यूटी पर तैनात अधिकारी-कर्मचारी ही शामिल हो सके. हालांकि बैरिकेडिंग के बाहर से हर हर महादेव के जयकारे गूंजते रहे.
सदियों से चली आ रही है परंपरा
दरअसल सदियों से चली आ रही परंपरा का इस वर्ष भी विधि पूर्वक निर्वहन किया गया. हर वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी पर राजाधिराज ठीक रात 11 बजे मंदिर प्रांगण से शासकीय पूजन पाठ के बाद श्री कृष्ण (विष्णु) के धाम गोपाल मंदिर पहुंचे, जहां दोनों देवताओं का मिलन हुआ और करीब 2 घण्टे तक विधि विधान से पूजन हुआ. भगवान महाकाल की ओर से गोपाल जी को बेल पत्र की माला अर्पित की गई. वहीं गोपाल जी की ओर से महाकाल को तुलसी की माला पहनाई गई जिसे हरि से हर के मिलन के रूप में देखा जाता है.
लाखों की संख्य में मिले श्रद्धालु
इस कार्यक्रम में लाखों की तादाद में श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं, लेकिन कोविड के चलते इस वर्ष भी श्रद्धालुओं के दर्शन पर पूर्णतः प्रतिबंध किया गया था. धार्मिक ग्रंथों अनुसार देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं. उस समय पृथ्वी लोक की सत्ता भगवन शिव के पास होती है और वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता पुनः विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं, इसी दिन को वैकुंठ चतुर्दशी या हरि-हर मिलन भी कहते हैं. खास बात यह है कि ब्रह्मांड में केवल उज्जैन ही ऐसा तीर्थ है जहां भगवान खुद 'वैष्णव और शिव धर्म के एक ही होने का संदेश देते हैं.
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महाकाल मंदिर के आशीष पुजारी ने मीडिया से चर्चा के दौरान बताया कि उज्जैन में कार्तिक माह वैष्णव का महीना माना जाता है. इसमें वैष्णव देवताओं की पूजा होती है. हमारी संस्कृति में जो पृथ्वी के पालन का भार जो होता है वो भगवान शिव के पास होता है और देव उठनी ग्यारस के बाद भगवान वैष्णव को सौंपते है, जिसके बाद पृथ्वी का लालन पालन भगवान वैष्णव करते हैं. संवाहर करने के दायित्व शिव अपने पास ही रखते है ये भार आगामी शुभ कार्यों तक भगवान वैष्णव अपने पास रखेंगे और बाद में दोबारा शिव को सौंप देंगे. उन्होंने बताया कि बेल शिव को प्रिय और तुलसी विष्णु को प्रिय है. आज के दिन दोनों देवता अपनी प्रिय वस्तु एक दूसरे को आदान-प्रदान करते हैं और समाज को संदेश देते हैं कि दोनों धर्म एक ही हैं, जो लोग मतभेद करते हैं उनको भगवान स्वयं संदेश दे रहे हैं कि हम एक ही हैं.