उज्जैन। भीडावद गांव में सदियों से चली आ रही परंपरा लोगों के न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देती है, बल्कि देखने वालों का भी दिल दहल जाता है, चार हजार की आबादी वाले भीडावद गांव में दीपावली के बाद वाले दिन दर्जनों लोग अपनी मन्नतें लेकर सैकड़ों गायों के पैरों तले रुधने के लिए जमीन पर लेट जाते हैं, कुछ ही पलों में सैकड़ों गायें जमीन पर लेटे हुए लोगों के ऊपर से गुजर जाती है. इस मंजर को देखने के लिए हर साल इस गांव में हजारों लोग जमा होते हैं.
गायों को मन्नतियों के ऊपर दौड़ाते है ग्रामीण शहर से 45 किलोमीटर दूर भीडावद गांव के लोग दिवाली के दूसरे दिन सूरज निकलने के पहले ही उठ जाते हैं. सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हैं, जिसके बाद मन्नत मांगने वाला जुलूस पूरे गांव में निकाला जाता है. इस जुलूस में लोग मुंह के बल जमीन पर लेट जाते हैं. उसके बाद गांव की सैकड़ों गायें दौड़ते हुए उनके ऊपर से गुजर जाती है. जो भी इस नजारे को देखता है, उसका दिल-दहल जाता है.
गांव के लोग बताते हैं कि ये परम्परा सैकड़ों सालों से चली आ रही है, गांव के लोग अपनी-अपनी मन्नतें मांगते हैं. प्राचीन मान्यता है कि मां गौरी का रूप यानि की गोमाता सुख-समृद्धि और शांति की प्रतीक हैं, शास्त्रों में भी गोमाता के शारीर में 33 करोड़ देवताओं का वास बताया गया है, गांव के लोग मन्नातियों को साथ लेकर गांव के चौक पर जमा होते हैं, जहां पर मां गौरी (गोमाता) का पूजन किया जाता है. ढोल-ताशों के बीच चौक पर मां गौरी की पूजा के लिए मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते हैं.
सुबह होते ही मन्नतधारियों के ऊपर से सैकड़ों गायें दौड़ते हुए गुजर जाती हैं. करीब दो क्विंटल वजनी सैकड़ों गायें इन लोगों के शरीर को रौंदती हुई निकल जाती हैं, इस एतिहासिक परंपरा में लोगों की अटूट आस्था के चलते मन्नतधारियों को मामूली नुकसान से ज्यादा कुछ नहीं होता, सदियों से चली आ रही इस परंपरा में आज तक कोई हादसा नहीं होना इन लोगों की आस्था को और मजबूत करता है.
नोट: ईटीवी भारत किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, न ही इस खबर को प्रकाशित करने के पीछे ऐसी कोई मंशा है.