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कार्तिक में निकाली गई बाबा महाकाल की पहली सवारी, फूल बरसाकर लोगों ने किया स्वागत - बाबा महाकाल की कार्तिक सवारी

कार्तिक महीने में बाबा महाकाल की पहली सवारी सोमवार को शाम 4 बजे निकाली गई. इस दौरान लाखों की संख्या में शामिल हुए भक्तों ने फूल बरसाकर बाबा का स्वागत किया.

ride of Baba Mahakal
बाबा महाकाल की सवारी

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Published : Nov 16, 2020, 10:46 PM IST

उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल समय-समय पर अपने भक्तों का हाल जानने नगर भ्रमण पर निकलते हैं. इसी कड़ी में सावन, भादौं और दशहरा के बाद अब दिवाली के दूसरे दिन सोमवार को बाबा महाकाल ठीक शाम 4 बजे मंदिर प्रांगण से शाही ठाठ-बाट के साथ भक्तों का हाल जानने एक बार फिर निकले. इस दौरान मुख्य गेट पर बाबा को पुलिस बल ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया.

बाबा महाकाल की सवारी

विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल समय-समय पर भक्तों का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं. बाबा महाकाल सोमवार को कार्तिक के महीने में नगर भ्रमण पर निकले. इस दौरान हर बार की तरह सबसे पहले मंदिर प्रांगण में बाबा महाकाल का अभिषेक और पूजन किया गया. फिर आरती के बाद 4 बजे मंदिर प्रांगण से बाबा को नगर भ्रमण के लिए निकाला गया.

फूल बरसाकर लोगों ने किया स्वागत

बाबा महाकाल की यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए. इस दौरान लोगों ने फूल बरसाकर बाबा का स्वागत किया. नियमों के मुताबिक जब बाबा की पालकी मंदिर से शिप्रा नदी तक पहुंची तो वहां बाबा का पूजन-अभिषेक किया गया. इसके बाद दोबारा बाबा की पालकी को मंदिर में लाया गया.

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निकाली जाएंगी पांच सवारी

इस यात्रा के बाद अब बाबा महाकाल की और पांच सवारियां निकाली जाएंगी. इसमें दो कार्तिक महीने की सवारियां हैं, वहीं बाकी की सवारियां अगहन के महीने में निकाली जाएंगी. अगहन महीने के आखिरी में बाबा की सवारी गोपाल मंदिर तक निकाली जाएगी. इन सवारियों को हरी से हर के मिलन के रूप में देखा जाता है. उस दिन लाखों की संख्या में भक्तों का तांता लगता है. हालांकि, कोरोना संक्रमण की वजह से इस बार भक्तों के दर्शन करने पर सख्ती बरती जा रही है.

भक्त हुए शामिल

सदियों से चली आ रही है परंपरा

मंदिर के मुख्य पुजारी आशीष गुरु ने बताया कि कार्तिक के महीने की यह पहली सवारी है, जो सोमवार को निकाली गई है. इस बार कुल 6 सवारियां निकाली जाएंगी, जो कार्तिक और अगहन के महीने में निकाली जाएंगी. इन सवारियों को निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

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