उज्जैन। सांदीपनि आश्रम में प्रतिमा 84 महादेव में से 40 वें क्रम पर श्री कुण्डेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में विराजित है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण जब महर्षि सांदीपनि के आश्रम से शिक्षा पूरी कर जाने लगे तो गुरू दक्षिणा देने के लिए कुबेर धन लेकर आए थे, लेकिन गुरू-माता ने कृष्ण से कहा कि मेरे पुत्र का शंखासुर नामक राक्षस ने हरण कर लिए है, उसे मुक्त करा कर ला दो, यही गुरू दक्षिणा होगी. कृष्ण ने गुरू पुत्र को राक्षस से मुक्त करा कर गुरू-माता को सौंप दिया. इसी पर प्रसन्न होकर गुरू-माता ने कृष्ण को 'श्री सौंपी, तभी से कृष्ण के नाम के साथ श्री जुड़ गया, वे श्रीकृष्ण कहलाए.
कुबेर की नाभी में इत्र लगाने से मिलती है समृद्धि: इसके बाद श्रीकृष्ण तो द्वारका चले गए, लेकिन कुबेर आश्रम में ही बैठे रह गए. यहाँ कुबेर की प्रतिमा बैठी मुद्रा में है, कुण्डेश्वर महादेव के जिस मंदिर में कुबेर विराजे हैं, उसके गुम्बद में श्री यंत्र बना हुआ है जो कृष्ण को श्री मिलने की पुष्टि करता है. मान्यता है कि यहाँ कुबेर की नाभी में इत्र लगाने से समृद्धि प्राप्त होती है. इसलिए यहां दीपावली पर्व के पहले कुबेर देव की प्रतिमा के दर्शन और नाभी में इत्र लगाने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं. धन तेरस पर धन के रक्षक कुबेर का पूजन किया गया. तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार आदि से कुबेर का स्वरूप आकर्षक करता है. पुरावेत्ताओं के अनुसार यह प्रतिमा मध्य कालीन 800 से 1100 वर्ष पुरानी है. जिसे शंगु काल के उच्च कोटि के शिल्पकारों ने बनाया था. कुबेर के पूजन के लिए धन तेरस पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.