उज्जैन। शनिवार को नागपंचमी है. इस दिन महाकालेश्वर मंदिर के दूसरे तल पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खोले जाएंगे. ये एक ऐसा मंदिर है जिसके कपाट साल भर में सिर्फ 1 दिन के लिए नाग पंचमी के दिन खोले जाते हैं. लेकिन इस बार कोराना संक्रमण के चलते श्रद्धालुओं को दर्शन के प्रवेश पर पांबदी रहेगी.
आज रात 12 बजे मंदिर के पट खोल दिए जाएंगे. मंदिर के पुजारी पूरे रीति रिवाजों के साथ मंदिर में पूजा करेंगे. विनीत गिरी जी महाराज ने बताया कि इस बार श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है. लिहाजा भगवान के दर्शन के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की गई है.
भगवान शिव की प्राचीन प्रतिमा नागराज तक्षक का मंदिर में वास
हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है. देश में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का. जो महाकाल की नगरी में स्थित है. इसकी खास बात ये है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है. ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं.
पूरे परिवार के साथ सर्प शय्या पर विराजे भोलेनाथ
नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं. कहते हैं ये प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी. उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है. पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं. मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं. शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं.
क्या हैं पौराणिक मान्यताएं
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी. तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया. मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सानिध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न न हो. इसलिए सालों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं.
बाकि समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है. इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती हैं.
राजा भोज ने बनवाया था मंदिर
ये मंदिर काफी प्राचीन है. माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईसवीं के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था. सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए. लेकिन कोरोना काल के चलते लाखों की संख्या में जुटने वाले श्रद्धालु प्रत्यक्ष तौर पर भोलेनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे.
साल में एक ही बार खुलते हैं कपाट
नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए एक दिन पहले ही रात 12 बजे मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं. दूसरे दिन नागपंचमी को रात 12 बजे मंदिर में फिर आरती होती है और मंदिर के पट फिर से बंद कर दिए जाते हैं. नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है.