उज्जैन।धार्मिक नगरी उज्जैन में आए दिन किसी न किसी पर्व को बड़े हर्ष उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है. आज भी उज्जैन से 6 किलोमीटर दूर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर परिसर में साल भर में आने वाली 24 चतुर्थी में से एक विशेष चतुर्थी की तिल चतुर्थी को बड़ी धूमधाम से मनाया गया. उत्सव के दौरान त्रेता में राम लक्ष्मण सीता के वनवास आगमन का रहस्य भी मंदिर परिसर में दर्शाया गया है. जिसमें राम, लक्ष्मण और सीता तीनों भगवान चिंतामन की प्रतिमाओं की पूजन करते बैठे दिखाए गए हैं. बाणागंगा को भी सजाया गया है. भगवान को पुजारियों ने छप्पन भोग की प्रसादी अर्पित की गई.
तिल चतुर्थी पर श्रीगणेश को लड्डुओं भोग- पुजारी मंदिर के पुजारी गणेश गुरु ने दी जानकारी
24 चतुर्थी में से चार चतुर्थी विशेष होती है. इसमें से महा मास में आने वाली तिल चतुर्थी पर मनोस्थिति के लिए भगवान को तिल और गुड़ का भोग लगाया जाता है. इस दिन सभी रुके हुए कार्यों को सिद्धि करने के उद्देश्य से महिलाएं व्रत कर इसे बनाती हैं. आज त्रेता में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता के आने पर उनके द्वारा भगवान चिंतामन गणेश के पूजन का दृश्य सजाया गया है. शास्त्रों में भी प्रथम पूजन भगवान राम ने चिंतामन भगवान का पूजन किया है. उसी को आज दर्शाया गया है. बाणगंगा जल से पूजन किया गया था. भगवान चिंतामन का तोर विशेष शृंगार किया गया .इसलिए केंद्र बिंदु रही लक्ष्मण बावड़ी को भी सजाया गया है. छप्पन भोग बातील गुड़ के लड्डू का विशेष भगवान चिंतामन को लगाया गया है.
दरअसल विश्व प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन कालों के काल बाबा महाकाल की नगरी है. यहां अन्य कई विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. जिनका पुराणों में भी वर्णन है उज्जैन से 6 किलोमीटर दूर स्थित भगवान चिंतामन गणेश मंदिर में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर श्री गणेश तीन रूप में विराजमान है. यह तीनों रूप चिंतामन गणेश, इच्छा मन गणेश, सिद्धिविनायक गणेश के रूप में जाने जाते हैं कहते हैं कि इनमें से चिंतामन गणेश चिंताओं को दूर करते हैं. इच्छा मन गणेश इच्छाओं की पूर्ति करते हैं और सिद्धि विनायक गणेश रिद्धि सिद्धि देते हैं यह भी माना जाता है कि गणेश जी की ऐसी अद्भुत अलौकिक प्रतिमा देश में शायद और कहीं नहीं है.
पुराणों के अनुसार देवता युग में भगवान राम ने गणपति की जय तीन मूर्ति स्वयं स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. पौराणिक कथा के अनुसार वनवास काल में एक बार सीता जी को प्यास लगी तब भगवान राम की आज्ञा से लक्ष्मण जी ने तीर इस स्थल पर मारा, जिससे पृथ्वी में से पानी निकला और यहां एक बावड़ी बन गई. तभी श्रीराम ने अपनी दिव्य दृष्टि से वहां की हवाए दोषपूर्ण होने की बात जानी और इसे दूर करने के लिए गणपति जी से अनुरोध कर उनकी उपासना की. इसके बाद सीता जी बावड़ी के जल को पी सककी इसके बाद श्रीराम ने यहां इस चिंतामन मंदिर का निर्माण करवाया आज भी लक्ष्मण बावड़ी के नाम से यहां बावड़ी मौजूद है.