टीकमगढ़।कोरोना काल के चलते संकट में आए प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने श्रमिक आयोग का गठन किया है, लेकिन ये धरातल में कितना असर कर रही है. इसका अंदाजा इन तस्वीरों से लगाया जा सकता है. दरअसल लोगों को उम्मीद थी की कोरोना काल में मामा रोजगार देंगे, लेकिन साहब जी रोजगार तो कोरोना के कहर में ढह गया, और जो पैसे थे. वह सब खत्म हो गए, कर्ज अलग से लेना शुरू हो गए अब ये बेचारे पेट पाले या कोरोना से बचे, आखिरकार इन्होंने पेट पालना तय कर लिया और सफर पर निकल पड़े.
कोरोना काल में मजदूरों का पलायन
जी हां ये हालात हैं उस बुदेलखंड की जिसमें इन दिनों सूबे के सबसे ज्यादा मंत्री बैठे हुए हैं. अब आपको बताने जा रहे हैं वह सच्चाई जो आपको भी सोचने पर मजबूर कर सकती है. दरअसल बुदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में रोजगार के आभाव में हजारों मजदूर पलायन कर अपने परिवार और अपने पेट का इंतजाम करने के लिए महानगरों में मेहनत मजदूरी करते हैं. जिले के तकरीबन 80 हजार मजदूर कोरोना महामारी के दौरान पूरे देश में लगाए गए लॉकडाउन के चलते अपने अपने घर लौटे थे, लेकिन अब धीरे-धीरे ये मजदूर अब फिर शहर की ओर पलायन करने लगे हैं.
रोजगार ना मिलने के चलते यह सभी मजदूर फिर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुड़गांव, महाराष्ट्र समेत कई अलग-अलग शहरों में रोजगार की तलाश में निकल पड़े हैं. क्योंकि यह लोग जो कमाकर लाए थे वह इन्होंने 6 महीने में अपने-अपने घरों में बैठकर खा लिया है. लेकिन अब इनके पास पैसे नहीं बचे हैं. और गांव और पंचायतों में इनको रोजगार भी नहीं मिला है. जिसके चलते ये मजदूर आखिरकार मजबूर होकर पेट पालने के लिए फिर पालयन करने लगे हैं.
पंचायत में मिलता है महज आश्वासन
इन मजदूरों की माने तो इनका कहना है कि जिले में कोई भी पंचायत में मजदूरी नहीं मिल रही है. काम मांगने जाओ तो पता चलता है कि मनरेगा में मशीनों से काम किया जा रहा है, और महज काम का आश्वासन दिया जाता है. ऐसे में कैसे परिवार का भरण पोषण करें इनके लिए बड़ा सवाल बन गया है.
बस से निकल रहे महानगरों की ओर