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'साहब पेट पालना है, पलायन के अलावा कोई विकल्प नहीं', सरकार के दावों की पोल खोलतीं ये तस्वीरें - एमपी में रोजगार का संकट

एक ओर जिला प्रशासन रोजगार देने का दावा करता है. तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश सरकार आए दिन रोजगार को लेकर नए-नए दावे ठोक रही है, लेकिन इन तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर जब जिले में मजदूरों को रोजगार मिल रहा है, तो ऐसी तस्वीरें आए दिन क्यों देखने को मिल रही है. ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है.

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मजदूरों का पलायन

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Published : Sep 2, 2020, 10:11 PM IST

टीकमगढ़।कोरोना काल के चलते संकट में आए प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने श्रमिक आयोग का गठन किया है, लेकिन ये धरातल में कितना असर कर रही है. इसका अंदाजा इन तस्वीरों से लगाया जा सकता है. दरअसल लोगों को उम्मीद थी की कोरोना काल में मामा रोजगार देंगे, लेकिन साहब जी रोजगार तो कोरोना के कहर में ढह गया, और जो पैसे थे. वह सब खत्म हो गए, कर्ज अलग से लेना शुरू हो गए अब ये बेचारे पेट पाले या कोरोना से बचे, आखिरकार इन्होंने पेट पालना तय कर लिया और सफर पर निकल पड़े.

मजदूरों का पलायन

कोरोना काल में मजदूरों का पलायन

जी हां ये हालात हैं उस बुदेलखंड की जिसमें इन दिनों सूबे के सबसे ज्यादा मंत्री बैठे हुए हैं. अब आपको बताने जा रहे हैं वह सच्चाई जो आपको भी सोचने पर मजबूर कर सकती है. दरअसल बुदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में रोजगार के आभाव में हजारों मजदूर पलायन कर अपने परिवार और अपने पेट का इंतजाम करने के लिए महानगरों में मेहनत मजदूरी करते हैं. जिले के तकरीबन 80 हजार मजदूर कोरोना महामारी के दौरान पूरे देश में लगाए गए लॉकडाउन के चलते अपने अपने घर लौटे थे, लेकिन अब धीरे-धीरे ये मजदूर अब फिर शहर की ओर पलायन करने लगे हैं.

मजदूरों का पलायन
पंचायत में नहीं मिला रोजगार

रोजगार ना मिलने के चलते यह सभी मजदूर फिर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुड़गांव, महाराष्ट्र समेत कई अलग-अलग शहरों में रोजगार की तलाश में निकल पड़े हैं. क्योंकि यह लोग जो कमाकर लाए थे वह इन्होंने 6 महीने में अपने-अपने घरों में बैठकर खा लिया है. लेकिन अब इनके पास पैसे नहीं बचे हैं. और गांव और पंचायतों में इनको रोजगार भी नहीं मिला है. जिसके चलते ये मजदूर आखिरकार मजबूर होकर पेट पालने के लिए फिर पालयन करने लगे हैं.

साहब पेट पालना है!

पंचायत में मिलता है महज आश्वासन

इन मजदूरों की माने तो इनका कहना है कि जिले में कोई भी पंचायत में मजदूरी नहीं मिल रही है. काम मांगने जाओ तो पता चलता है कि मनरेगा में मशीनों से काम किया जा रहा है, और महज काम का आश्वासन दिया जाता है. ऐसे में कैसे परिवार का भरण पोषण करें इनके लिए बड़ा सवाल बन गया है.

मजदूरी के लिए निकले ग्रामीण

बस से निकल रहे महानगरों की ओर

अब इन मजदूरों को कोरोना काल में घर लौटे 6 महीने हो गए जो पैसे थे वो भी खत्म हो गए. अब कर्ज लेना शुरू हो गया आखिर कर्ज मिलेगा कितने दिन. इसलिए यह सभी मजदूर अपने गांव से स्पेशल बसों के द्वारा पलायन करना शुरू कर दिए हैं. क्योंकि बसे बन्द हैं, ऐसे में दिल्ली के फैक्ट्री मालिक और ठेकेदार लोग टीकमगढ़ बसे भेजकर मजदूरों को वापस दिल्ली हरियाणा बुला रहे हैं, जिसमें अधिकांस बसे मुरैना और भिंड से इन मजदूरों को लेने टीकमगढ़ जिले में जा रही है. और मजदूरों को वापस महानगरों में छोड़ रही है, लेकिन जिम्मेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.

जिला प्रशासन का दावा

इन सब हालातों के बीच कलेक्टर साहब का कहना है कि बाहर से लौटे मजदूरों के लिए गरीब कल्याण अभियान चालाया जा रहा है, और 3 लाख से ज्यादा श्रमिक नियोजित किए हैं. अगर डीएम साहब की माने तो इनका ये भी कहना है कि रोजगार जिले में उपलब्ध कराया जा रहे हैं, और अगर और भी रोजगार की मांग आती है. तो रोजगार उपलब्ध कराए जाएंगे.

गांव में नौकरी तो फिर कौन सी मजबूरी

इतना ही नहीं टीकमगढ़ कलेक्टर का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जो हजारों मजदूर बाहर से जिले में वापस लौटे थे, उन सभी को रोजगार गांव-गांव में दिए जा रहे हैं. जिसमें भारत सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत 25 प्रकार के गरीब कल्याण रोजगार खोले गए है, जिनमें 4055 प्रकार के कार्य चिन्हित किये गए है.

आखिर सच्चाई क्या है?

खैर सच्चाई किसे मालूम है और किसे नहीं ये तो पता नहीं, लेकिन एक ओर जिला प्रशासन रोजगार देने का दावा करता है. तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश सरकार आए दिन रोजगार को लेकर नए-नए दावे ठोक रही है, लेकिन इन तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर जब जिले में मजदूरों को रोजगार मिल रहा है, तो ऐसी तस्वीरें आए दिन क्यों देखने को मिल रही हैं. ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है.

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