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खोखले साबित हो रहे सरकार के दावे, मजदूरों ने फिर से शुरू किया पलायन

टीकमगढ़ जिले के कई गांवों के मजदूरों ने अनलॉक होते ही फिर से महानगरों की तरफ पलायन करना शुरु कर दिया है. उनका कहना है कि सरकार द्वारा योजनाएं बनाए जाने के बाद भी उन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा है, इसलिए अपने परिवार के पालन पोषण के लिए ये जरुरी है.

Tikamgarh
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Published : Jul 12, 2020, 6:48 PM IST

टीकमगढ़। मजदूरों ने फिर से पलायन शुरू कर दिया है. हालांकि, प्रदेश सरकार ने दावा किया था कि वापस आए श्रमिकों को अब बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, उन्हें गांव में ही रोजगार मिलेगा. लेकिन, सरकार के दावे खोखले साबित होते नजर आए रहे हैं. जिले से हर रोज बड़ी संख्या में लोग महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं. मामले को लेकर जब अधिकारियों से बात करना चाही तो कैमरे से बचते नजर आए.

23 मार्च से देशभर में हुए लॉकडाउन के दौरान दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा से जिले में हजारों मजदूर अपने गांव लौटे थे. टीकमगढ़ जिले के सबसे ज्यादा मजदूर खरगापुर विधानसभा क्षेत्र में आए थे, ये सभी मजदूर ये सोचकर आए थे कि अब वे वापस नहीं जाएंगे, बल्कि अपने ही गांव में ही मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करेंगे. लेकिन डेढ़ महीने तक अपने गांव में रहने के बाद भी जब उन्हें कोई काम धंधा नहीं मिला, तो वे मजबूरन महानगरों में फिर लौट रहे हैं.

जिले के बल्देवगढ़, खरगापुर और पलेरा नगर के बस स्टैंड से इन दिनों दिल्ली के लिए दो बसें जा रही हैं, जिसमें ज्यादातर वे लोग ही लौट रहे हैं, जो लॉकडाउन के दौरान वहां से आए थे. महानगरों से लौटे प्रवासी मजदूरों को उनके गांव में रोजगार देने के प्रदेश सरकार के दावों को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. भगवंत नगर की मेदाबाई ने बताया, 'गांव में मजदूरी नहीं मिलने से परिवार को चलाना मुश्किल हो रहा है, सरपंच सचिव से लेकर सीईओ सबसे कई बार शिकायतें की, लेकिन कोई कुछ नहीं करता, अब मजबूरी में परिवार को चलाने के लिए पलायन करना पड़ रहा.'

हर रोज मजदूरों का जत्था बस में सवार होकर शहरों की ओर रवाना हो रहा. अधिकारियों और जनप्रतिनिधि भले ही इस कड़वी सच्चाई को न स्वीकारें लेकिन जिले के रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर पलायन करने वाले ग्रामीणों की भीड़ हकीकत बयां कर रही है.

10 हजार से अधिक जॉब कार्ड बने, लेकिन रोजगार नहीं

सरकार की ओर से प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत निश्चित रोजगार देने की बात कही गई. हकीकत यह है कि जिले में मनरेगा के तहत दो लाख 60 हजार 401 जॉबकार्ड धारी मजदूर हैं. इनके अलावा लॉकडाउन के दौरान लौटे करीब 80 हजार मजदूरों में से सिर्फ 10 हजार के नए जॉब कार्ड बने लेकिन 190 रुपए रोज की मनरेगा की मजदूरी भी उन्हें प्रतिदिन नहीं मिल पाई. कोरोना संकट के बीच मजदूरों को एक बार फिर पलायन सरकार और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा है.

दिल्ली, फरीदाबाद के लिए दौड़ रहीं बसें

जानकारी के मुताबिक जिले से हर रोज सैकड़ों श्रमिक ट्रेनों और बसों के माध्यम से जिला छोड़ रहे हैं. जिले में दो अंतराज्यीय बसों का संचालन हो रहा है. देखा जाए तो शुक्रवार को पलेरा बस स्टैंड से करीब 60 मजदूर बसों से गए, तो वहीं गुरूवार को पलेरा अंतर्गत धनेरा, गौरा, भगवंतनगर, मजरा, लारौन, सैपुरा सहित कई गांवों से 40-50 मजदूरों पलायन कर रहे हैं. ये आंकडे़ जिला प्रशासन को आइना दिखा रहे हैं. साथ ही कई मजदूर टैक्सी से मउरानीपुर पहुंचकर ट्रेनों से महानगरों तक पहुंच रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन इस ओर ठोस कदम नहीं उठा पा रहा.

अफसरों ने साधा मौन

पलेरा जनपद अंतर्गत आने वाली पंचायतों में मनरेगा कार्यो में श्रमिकों को मजदूरी न देकर मशीनों से कार्य कराए जाने के मामले सुर्खियों में रहे. मजदूरी न मिलने पर श्रमिकों ने विरोध प्रदर्शन भी किए, लेकिन अफसरों ने कार्रवाई के बजाय संरक्षण पर बल दिया. अब मजदूरों को मजबूरन पलायन करना पड़ रहा है. पलेरा जनपद के सीईओ केएल मीणा का कहना है, मनरेगा के तहत काम चल रहे हैं, मजदूरों को प्रेरित किया जा रहा है. जानकारी लगी है कि शहरों में मजदूरी के ज्यादा पैसा मिलने की बात पर लोग पलायन कर रहे हैं.

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