टीकमगढ़। दिव्यांगता को अपनी किस्मत मान चुके लोगों के लिए विमला कुर्मी किसी मिसाल से कम नहीं हैं. विमला भले ही दिव्यांग हैं, लेकिन मजबूर नहीं. पैरों से लाचार हैं लेकिन किसी की मोहताज नहीं. विमला कुर्मी के जज्बे को देखकर हर कोई हैरान है. पति के बीमार पड़ जाने के बाद विमला के सामने खाने का संकट आ गया. ऐसे में पैरों से दिव्यांग होने के बावदूज विमला ने अपनी परिवार की जिम्मेदारी उठाई है. हर रोज ट्राइसाइकिल चलाकर निकल पड़ती हैं दो वक्त की रोटी कमाने के लिए.
शहर के डाकघर के पीछे रहने वहीं 50 साल की विमला कुर्मी जन्म से दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. घरवालों ने विमला की शादी उसके उम्र से ज्यादा के व्यक्ति से कर दी गई और वह शादी के बाद से बीमार रहने लगा. जिससे इसके परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब रहने लगी और उसके परिवार के सामने दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए. जिसके बाद जैसे तैसे दिव्यांग विमला ने ट्राइसाइकिल की जुगाड़ की और फिर निकल पड़ीं परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने के लिए.