टीकमगढ़।कोविड-19 के कारण आर्थिक गतिविधियों के ठप होने और प्रवासी मजदूरों के अपने-अपने घर लौटने के बाद उनके सामने बेरोजगारी का संकट खड़ा हो गया है. साथ ही सरकार के सामने भी ग्रामीण, मजदूरों को रोजगार मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. मनरेगा के तहत ग्रामीणों को मिलने वाला रोजगार दूर की कौड़ी साबित हो रहा है. ऐसे ही कुछ हालात टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव धसान गांव के हैं. जहां ग्रामीण दो जून की रोटी के लिए परेशान हैं. ग्रामीणों के पास न तो राशन कार्ड है और न ही कोई अन्य सुविधा, जिससे वह अपना पेट भर सकें. आलम यह है कि ग्रामीण लकड़ी और बीज बीनकर उन्हें बाजार में बेचकर उससे मिलने वाले 10-20 रुपये से अपना एक दिन का गुजारा कर रहे हैं.
टीकमगढ़ के बड़ागांव धसान गांव में ग्रामीण बड़े मुश्किल से अपना गुजारा कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. जब ग्रामीणों से पूछा गया कि उन्हें गांव में मजदूरी का काम नहीं मिल रहा है तो उन्होंने कहा कि गांव की बात तो छोड़िए पंचायत में भी काम नहीं मिला रहा है. ग्रामीण महिला का कहना है कि जंगल से लकड़ी बीनकर ही घर का गुजारा चल रहा है. ऐसे ही बड़ागांव धसान गांव की ग्रामीण महिला बेटी बाई आदिवासी ने बताया कि उनके पास इस वक्त खाने तक के लाले हैं. बच्चों की शादी तो दूर की बात है. उन्होंने कहा कि इन दिनों बस लकड़ी बेचकर ही अपने दिन काट रहे हैं. शादी की बात कर ही नहीं सकते हैं. उन्होंने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि गांव में मजदूरी के साधन तक खत्म हो गए हैं.