टीकमगढ़। एक आम इंसान, जिसने सादगी के दम पर पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया. अहिंसा के जरिए अंग्रेजी शासन को घुटनों पर ला दिया. बेसहारों को सहारा देने वाले इस महात्मा को लोग गांधीजी के नाम से जानते हैं. जिनके विचारों को आज भी दुनिया आत्मसात कर रही है. मौजूदा दौर में गांधी सिर्फ एक नाम ही नहीं बल्कि एक विचार बन चुका है. देश बापू की 151वीं जयंती मना रहा है. ऐसे में देश के जर्रे-जर्रे में बसी बापू की यादों से आवाम को रूबरू कराया जा रहा है.
जब अहिंसा के अस्त्र से गांधीजी गुलामी की बेड़ियां काटने की कोशिश कर रहे थे. तब उनके पीछे लोगों का कारवां चल पड़ा था. ओर से छोर तक लोग गांधीजी का साथ देने के लिए उतावले हो रहे थे. उनके साथ आजादी की जंग में वो लोग शरीक होना चाहते थे. जो आजादी के लिए अपनी कुर्बानी तक देने को तैयार थे. तब टीकमगढ़ के दुर्गा प्रसाद शर्मा ने भी बापू को पत्र लिखकर उनके साथ कदमताल करने की इच्छा जताई थी. गांधीजी जब 1930 में झांसी गये. तब उन्होंने अपने सचिव के जरिए दुर्गा प्रसाद मिश्रा को जवाबी पत्र भेजा था.
आज भी मौजूद है बापू का पत्र
पत्र के जरिए महात्मा गांधी ने दुर्गा प्रसाद शर्मा से युवाओं को इस आंदोलन से जोड़ने की अपील की थी. इस पत्र को आज भी बतौर विरासत दुर्गा प्रसाद की बहू मनोरमा देवी सहेज रही हैं. जिसे देख आज भी उस दौर की यादें ताजा हो जाती हैं और ये पत्र गांधीजी की याद दिलाता रहता है.