टीकमगढ़।बुंदेलखंड के पर्याय रहे डाकुओं का नाम सुनते ही सभी के जहन में एक डरावनी तस्वीर सामने आती है. मध्यप्रदेश के कई इलाकों में पहले डाकूओं का बसेरा देखा जाता था, जहां जाने से हर किसी की रूह कांप जाती थी. ऐसी एक जगह टीकमगढ़ जिले के महेबा ग्राम से दो किलोमीटर दूर में स्थित है, जिसे 'डाकुओं के अड्डे' नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि जिले के पठारी जंगल पहाड़ी में 70 से 80 साल पहले खूंखार डाकुओं का अड्डा हुआ करता था, ईटीवी भारत की टीम ने डाकूओं के अड्डे में जाकर वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत की है.
डाकुओं से मुठभेड़ में कई जवान हुए थे शहीद
दरअसल टीकमगढ़ जिले से 70 किलोमोटर की दूरी पर डाकुओं का अड्डा हुआ करता था. किसी जमाने में इस अड्डे पर जाने से पुलिस भी डरती थी, डाकुओं ने मुठभेड़ में कई पुलिस जवानों को शहीद कर दिया था. ये पहाड़ी महेवा गांव से 3 किलोमोटर की दूरी पर बनी है. जो उतरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर बनी हुई है, ये जंगल करीब 1700 एकड़ में फैली हुई है.
आज भी इस पठारी जंगल पहाड़ी पर अकेले कोई भी नहीं जाता है, ये काफी दुर्गम पहाड़ी है. जहां हमेशा खतरा बना रहता है. ये पहाड़ी करीब सात किलोमीटर ऊंचाई पर है, जिसमें काफी घना जंगल है, इस जगह जाने के लिए घनी झाड़ियों के बीच रास्ता बनाकर और जान जोखिम में डालकर जाना पड़ता है. इस पहाड़ी पर करीब 70 सालों से डाकुओं का अड्डा रहा है. कहा जाता है कि यहां डाकू महीनों-महीनों तक रूका करते थे और अपने असलहा, गोला बारूद रखते थे, क्योंकि ये पहाड़ी उनके लिए काफी सुरक्षित माना जाता था. आम इंसान तो छोड़िए यहां पुलिस भी नहीं जा सकती थी.
आखिर क्यों था यहां डाकुओं का बसेरा
पठार जंगल पहाड़ी पर डाकुओं को अपनी सुविधा अनुसार सभी चीजें आसानी से उपलब्ध हो जाती थी, साथ ही उन्हें यहां किसी भी तरह से पुलिस वालों का खतरा नहीं रहता था. जिसके कारण डाकुओं ने यहां अपना बसेरा बना लिया था. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पहाड़ी में डकैतों के लिए पानी की पर्याप्त सुविधा होती थी, जिसमें करीब सात तालाब थे, जिससे ये डकैत सैकड़ों की संख्या में यहां पर पनाह लेकर रहते थे. वहीं आसपास अपने घटनाओं को अंजाम देते थे.
डाकुओं की 50-50 की थी टोलियां
इस पहाड़ी पर चंबल के कुख्यात डकैत और बुंदेलखंड के बड़े से बड़े डकैत 50-50 की टोलियां बनाकर रहते थे. जिससे इस इलाके में काफी लूटमार और डाके पड़ते थे. लिधौरा, महेवा, नुना खरो इन गांवों में डाकू पहाड़ी से उतरकर आते थे और लूट-डकैत जैसी घटनाओं को अंजाम देते थे.
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