सिंगरौली। प्रदूषण देश के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है, मध्यप्रदेश के कई शहर आज इस समस्या से जूझ रहे हैं. सिंगरौली जिले में देश की राजधानी दिल्ली से भी ज्यादा पॉल्यूशन है. यहां की हवा में कोयला और कोयले से जली राख का गुबार फैल गया है, जो लोगों के फेफड़े में समाता जा रहा है.
सिंगरौली की फिजाओं में घुला जहर
दरअसल सिंगरौली में मिनी रत्न कही जाने वाली कंपनी कोल इंडिया काम करती है. एनसीएल ने सिंगरौली को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है. कंपनी द्वारा कागजों में हंड्रेड परसेंट हैल्दी एनवायरमेंट मुहैया करवाने की बातें कही जा रही हैं, लेकिन यहां स्थिति उलट है.
काले गुबार के बीच गुजरते लोग तस्वीरों में दिख रहा धूल का गुबार यह बताने के लिए काफी है कि, यहां पर पॉल्यूशन का आलम क्या है. सिंगरौली के निगाही, बैढन, जयंत या पूरे जिले में धूल के काले गुबार से लोगों का लगातार दम घुट रहा है. शिकायतों के बाद एनजीटी ने संज्ञान तो लिया, लेकिन कारगर कार्रवाई नहीं हुई. लोगों का कहना है कि धूल के गुबार से कई बार बड़े हादसे हो जाते हैं, धूल अब लोगों के घरों में घुस रही हैं जिसकी वजह से लोगों को फेफड़े की तरह- तरह की बीमारियों से जूझना पड़ रहा है.
बता दें कि एनसीएल सीएसआर फंड के माध्यम से साफ-सफाई पॉल्यूशन के नियंत्रण के लिए करोड़ों रुपए खर्च भी करती है, जो सिर्फ कागजों पर होता है जमीनी स्तर पर एनसीएल का प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम कहीं नहीं दिखाई देता. कलेक्टर खुद इस बात को मान रहे हैं कि, पॉल्यूशन है और उसको कम करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन ये कब तक हो पाएगा इसका जवाब खुद कलेक्टर के पास भी नहीं है. हालांकि कलेक्टर केवीएस चौधरी ने कहा कि, हम मान रहे हैं कि ओपन कॉस्ट माइंस से हो रहे हैं. प्रदूषण को रोकने के लिए कोल ट्रांसपोर्ट रोड से नहीं होना चाहिए, बल्कि ट्रेन या कोल हैंडलिंग प्लांट से होना चाहिये.