सिंगरौली। मध्यप्रदेश का सिंगरौली जिला देशभर में उर्जा नगरी के नाम से जाना जाता है. जहां से देश भर में विद्युत कारखानों को कोयला देकर बिजली का उत्पादन किया जाता है. वहीं दूसरी ओर सिंगरौली के स्थानीय लोगों की जिंदगी अब काली होती दिख रही है. यहां 12 खदाने संचालित हैं. साथ ही साथ कई पावर क्षेत्र की औद्योगिक कंपनियां भी स्थापित हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी उर्जा नगरी के नाम से प्रसिद्ध सिंगरौली जिले को सिंगापुर बनाने का वादा किया था और आज कोयले के प्रदूषण के साए में सिंगरौली पूरी तरह से काली होती जा रही है. कोल परिवहन की मनमानी के कारण जनता बेहाल है और त्रस्त है, लेकिन सिंगरौली की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. दोपहर में भी छोटे वाहनों को हेड लाइट जला कर यात्रा करनी पड़ती है. वही यहां के स्थानीय लोगों की मानें तो वह कोयला खाने और कोयला पीने को मजबूर हैं.
कोयले की धूल खाने-पीने को मजबूर ग्रामीण: ऊर्जा नगरी कहे जाने वाली सिंगरौली में कोयले के प्रदूषण की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है की लोगों का सड़कों पर यात्रा करना भी जानलेवा साबित होने लगा है. कोयले का परिवहन करने वाले बड़े वाहनों से हो रहे प्रदूषण से सड़कों के किनारे घरों में रह रहे लोगों के खाना से लेकर पानी तक में कोयले की धूल मिल जा रही है. जिससे आए दिन बीमारियों से लोग ग्रसित हो रहे हैं. स्थानीय लोगों ने ईटीवी भारत से अपनी समस्या को बताते हुए कहा कि हमारी मजबूरी है, हम कोयले का धूल खा रहे हैं और कोयले का धूल ही पी रहे हैं. स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि सुबह जब सोकर उठते हैं तो आंख कान और नाक में कोयले का धूल भरा होता है. और कोयले की धूल से भरा पानी पीने को भी हम मजबूर हैं. अपना दर्द बयां करते हुए स्थानीय लोगों ने बताया कि हम लोगों की जिंदगी इसी कोयले में गुजर रही है. अब ऐसे में जनता पूरी तरह से बेहाल है.
प्रदूषण की स्थिति को लेकर एनजीटी की टीम ने सिंगरौली NTPC प्लांट का किया दौरा