सीधी। 'एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा' यह कहावत इस समय बस संचालकों पर सही साबित हो रही है. कोरोना काल के चलते बीते करीब 5 महीनों से बसों का संचालन बंद है. जिसके चलते बस संचालकों सहित ऑपरेटरों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. वहीं अब जब सरकार ने बसों के संचालन की अनुमति दे दी है, तो भी जिले में संचालक बसों का संचालन चालू नहीं कर रहे हैं. उनका कहना है कि कई राज्यों की सरकारों ने टैक्स माफ कर दिया है, लेकिन प्रदेश सरकार अभी भी टैक्स वसूली कर रही है. इसके इलावा बीते कई दिनों से बसों का संचालन बंद होने से मेंटनेंस का खर्चा हो रहा है, जो संचालकों के लिए काफी परेशानी का सबब बना हुआ है.
अनुमति के बाद भी संचालक नहीं चला रहे बस कोरोना काल के चलते लगे लॉकडाउन से न सिर्फ गरीब और मजदूरों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है, बल्कि व्यवसायी वर्ग की भी कमर तोड़ दी है. मजदूर, किसान, व्यापारी सभी आर्थिक तंगी की मार झेलने को मजबूर हैं. उन्ही में से एक बस संचालक भी आर्थिक बदहाली से जूझ रहे हैं. 6 माह से बसों के चक्के थम गए हैं. हालांकि शासन ने बसों को सड़कों पर दौड़ाने की अनुमति दे दी है. वहीं बस संचालक खड़ी बसों का टैक्स देने में असर्थता दिखाते हुए बस न चलाकर विरोध कर रहे हैं. जिससे जनता को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
पांच माह से थमे बसों के पहिए
सीधी जिला प्रदेश के पिछड़े जिलों की श्रेणी में आता है. यहां आवागमन के लिए सड़क मार्ग ही प्रमुख साधन है. 5 माह से अधिक समय से बसों के पहिये थम जाने से न सिर्फ बस संचालकों को भारी नुकसान हुआ है. बल्कि आम जनता को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. बस संचालक लोकेश प्रताप सिंह का कहना है कि मेरी 16 बसें चलती थीं, जो कोरोना काल के चलते बंद पड़ी हैं. बस खड़ी हो जाने से कई तरह की तकनीकी समस्याएं भी उत्पन्न हो गई हैं. जिससे एक बस में करीब तीन लाख रूपए का खर्च आ रहा है. ऊपर से सरकार खड़ी बसों का भी टैक्स वसूल रही हैं. इसी के विरोध में बसों का संचालन अभी भी शुरू नहीं किया गया है.
बस संचालक संघ के पदाधिकारी जटा शंकर मिश्रा का कहना है कि जिस तरह महाराष्ट्र, उत्तराखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सरकार ने टैक्स माफ कर दिया है, उस तरह प्रदेश सरकार भी टैक्स माफ करें. उनका कहना है कि सरकार ने मौखिक आश्वासन जरूर दिया है, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है. बसों का संचालन बंद होने से न सिर्फ न सिर्फ बस संचालकों को आर्थिक बदहाली झेलनी पड़ रही है. बल्कि, इससे जुड़े चालक, परिचालक, खलासी, एजेंट समेत कई लोगों की रोजी रोटी छिन गई है. वहीं आम जनता को भी काफी परेशानी हो रही है. बस संचालकों का कहना है कि 5 माह से बसें बंद होने से मेंटनेंस का खर्चा बढ़ गया है, ऊपर से सरकार टैक्स वसूल रही है. जो बस संचालकों के साथ अन्याय है.