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World Child Labor Prohibition Day : नर्सरी में हो रहा बाल श्रम, सरकार बनी अनभिज्ञ

सीधी जिले में जोगदहा नर्सरी में बच्चों से काम करवाया जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ ने 12 जून को world child labor prohibition day के रूप में मनाने का फैसला लिया है, लेकिन प्रदेश में बाल श्रम रुकने का नाम नहीं ले रहा है. और न ही सरकार इस पर किसी प्रकार का एक्शन ले रही है.

World Child Labor Prohibition Day
सीधी की नर्सरी में हो रहा बाल श्रम

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Published : Jun 12, 2021, 9:42 PM IST

सीधी। सीधी जिले के बहरी क्षेत्र के अंतर्गत जोगदहा सोन नदी के किनारे नर्सरी में बच्चों से काम कराया जा रहा है. गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ ने 12 जून को world child labor prohibition day के रूप में मनाने का फैसला लिया है, लेकिन इसी बीच सीधी जिले से हैरान कर देने वाली तस्वीर सामने आई है. जहां पर 9 साल से लेकर 15 से 16 साल तक के कई बच्चे शासकीय वन विभाग की नर्सरी में काम करते हुए दिखाई दिए.

नर्सरी में हो रहा बाल श्रम

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सरकार का दावा, अब नहीं होता सीधी में बाल श्रम

सरकार ने दावा किया है कि मध्य प्रदेश के सीधी जिले में लगभग अब बाल श्रम नहीं होता है. लेकिन ऐसी घटनाएं सामने आना सरकार के दावों को झूठा साबित करता है. साल 2011 में जनगणना के मुताबिक लगभग 14 साल से नीचे के उम्र के 1.1 करोड़ बाल श्रम मजदूर थे. वहीं मध्य प्रदेश में 2011 में 10 लाख बच्चे मजदूरी कर रहे थे. लेकिन अब यह आंकड़ा 2021 में घटना चाहिए था, क्योंकि लगातार सरकार इस पर नजर बनाए हुए हैं. लेकिन लोगों के पास काम करने के लिए कुछ नहीं है. अपने घर का भार बच्चे भी उठा रहे हैं और उनको मजदूरी के जाल में ढ़केल दिया जा रहा है. जिससे कि उनके घर में कमाई हो सके और वहीं करवाने के लिए बच्चे कम पैसे में लोगों को मिल जाते हैं.

जोगदहा नर्सरी में काम कर रहे छोटे बच्चे

ऐसा ही मामला सामने आया है जहां पर जोगदहा नर्सरी जो की सोन नदी के किनारे है यहां पर छोटे बच्चे काम करते हुए दिखाई दिए. यहां पर सरकारी विभाग का अमला छोटे बच्चों से काम करवाता हुआ दिखाई दिया. ऐसे में गांव में इसकी क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता. वन विभाग के अंतर्गत आने वाली नर्सरी में बच्चे पेड़-पोधों को गाड़ियों में लोड करते और फिर उन्हें लगाते हुए दिखाई दिए.

12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाने का फैसला सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया है. जिला प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं है. वहीं निचले स्तर के कर्मचारी इस बात को लेकर काफी संतुष्ट दिखाई देते हैं. कई सारे बच्चे तो ऐसे होते हैं जो आर्थिक तंगी के चलते बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. पैसों की तंगी इस कदर उनके पास है कि वह 200 और ढाई सौ रुपए लेने के चक्कर में मजदूरी करते हैं. और अपने परिवार का हाथ भी बटाते हैं.

सीधी जिले में नहीं हो रहा बाल श्रम - बाल श्रम विभाग

सीधी के श्रम विभाग का कहना है कि 'यहां पर अब बाल श्रम बहुत कम हो चुका है, कोई भी बच्चा काम करने नहीं जाता है. सभी अपनी पढ़ाई पर और कार्य पर लगे हुए हैं, लेकिन सीधी जिले के बाल श्रम विभाग को यह अंदाजा नहीं है कि बच्चे अभी भी काम कर रहे हैं. उस पर सरकारी तंत्र और सरकारी अमला भी चुप्पी साधे हुए दिखाई दे रहा है.

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