शिवपुरी।महिलाएं जब जागरूक होती है तो परिवार के साथ-साथ समाज को भी बदल कर रख देती है. ऐसी ही कहानी है करैरा अंचल के जंगली क्षेत्र की आदिवासी व अन्य समाज की महिलाओं की जिसमें महिलाओं ने तो कारोबार को ही बदलकर रख दिया है, जो कारोबार बिचौलियों के हाथों में था, जब महिलाओं ने इसकी बागडोर अपने हाथ में संभाली तो अब बिचौलिए क्लीन बोल्ड हो चुके है.
करैरा के जंगली क्षेत्र के ग्राम राजगढ़, रामपुरा उड़वाहा और मार की आदिवासी महिलाएं अलसुबह जंगल का रूख करती है. इनके हाथ मे होते है गोंद निकालने के औजार और मकसद होता है पेड़ों से गोंद निकालना, मार की रहवासी भागो और उसके साथ जुड़ी सभी महिलाएं उस आदिवासी समुदाय से आती हैं, जिन्हें बेहद सीधा सरल माना जाता है, और इनकी इसी जागरूकता की कमी का फायदा स्थानीय दुकानदार उठाते रहे है. जंगल से जो गोंद यह दिनभर की मेहनत के बाद लाती थी उसे यह दुकानदार औने पौने भाव मे खरीदते थे. मगर अब तस्वीर बदल चुकी है. भागो और इन चार गांव के आदिवासी महिलाएं जंगल से लाने बाली गोंद को व्यापारियों को न देकर गाव में बने महिलाओं के उत्पादक समूह को बेचती है, जहां इन्हें अच्छा भाव तो मिलता ही है व्यापारी की डंडी मारने से भी यह बच जाती है. भागो आदिवासी कहती है सुबह 8 बजे निकलती है शाम को लोटे है दिनभर में 5 किलो तक गोंद एकत्र कर लेते है, पहले इसे सेठ को देते थे तो सस्ती जाती थी अब समूह को देते है तो महंगी जाती है.
गांव में ही संग्रह केंद्र
तस्वीर वाकई में बदल चुकी है, जो गोंद महिलाएं जंगल से निकालकर लाती है उन्हें राजगढ़, मार, रामपुरा और उरवाहा चार गावो में बने महिला उत्पादक समूह द्वारा संचालित संग्रह केंद्र पर बिक्रय करती है. गावों में गोंद खरीदने के लिए संग्रहण केंद्र संचालित है जहां आदिवासी महिलाओं से गोंद खरीदती जाती है, खरीदने के बाद यहां गोंद की सफाई और ग्रेडिंग के साथ बोरो में भरकर पैकिंग का काम भी किया जाता है और फिर इन्हें भेजा जाता है इंदौर और देवास के व्यापारियों को ना कि स्थानीय दुकानदारों को, जो अब तक इनका शोषण करते रहे.
एक साल में किया साढ़े 6 लाख का कारोबार