शिवपुरी। कुपोषण दूर करने के लिए सरकारी दावे और वादे जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. कुपोषित बच्चों को सामान्य बच्चों की श्रेणी में लाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह प्रयास सिर्फ कागजों पर चल रहे हैं. जमीनी हकीकत कुछ और ही है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एकीकृत बाल विकास परियोजना के आदिवासी बहुल्य मड़खेड़ा गांव में दो महीने से पोषण आहार नहीं बांटा गया हैं. इसका खुलासा भी तब हुआ, जब अति कुपोषित हालत में एक आदिवासी बच्ची को दस्त की शिकायत पर जिला अस्पताल के पीआईसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया. उस दिन बच्ची का वजन चार किलो 700 ग्राम रह गया था, जबकि दो साल की उम्र में वजन आठ से 10 किलो ग्राम रहना चाहिए. हालांकि, अब बच्ची की हालत में सुधार है. वजन पांच किलो 200 ग्राम हो गया हैं.
पन्ना में जिला स्तरीय एकीकृत कुपोषण के संदर्भ में कार्यशाला का आयोजन