नीम के पेड़ से निकली दूध की धारा शिवपुरी। कोलारस विधानसभा क्षेत्र में एक पेड़ से पानी गिरने कि खबर क्षेत्र में आग कि तरह फैल गई। जिसके बाद लोग इसे चमत्कार समझकर बर्तनों में भरकर घर लाने लगे और कई लोग तो इससे चर्म रोग ठीक होने का दावा भी कर बैठे (Shivpuri Neem Tree milk). बामौरकलां गांव में पूर्वा चक्क क्षेत्र में स्थित एक किसान के फार्म हाउस में खड़े वर्षों पुराने नीम के पेड़ से दूध जैसा तरल पदार्थ निकल रहा है. किसान दयाराम जाटव ने बताया कि पेड़ से दूध पिछले 20 दिनों से निकल रहा है लेकिन शनिवार को इसकी मात्रा अधिक हो गई और पेड़ के तने से धार बनकर नीचे गड्ढे में यह दूध जमा हो रहा है.
नीम के पेड़ से निकली दूध की धारा चमत्कार मान ग्रामीणों ने शुरू की पूजा पाठ:जब लोगों को पता चला कि नीम के पेड़ से दूध निकल रहा है, तो लोगों ने आस्था समझकर पूजा पाठ शुरू कर दी. उनका कहना है कि यह सब पास बने देव स्थान के कारण हो रहा है, कुदरत की अनूठी लीला ही है. इस दावे पर मुहर लगाने वालों की भी कोई कमी नहीं रही, लोगों ने उस पेड़ से गिर रहे पानी को बर्तनों में इकट्ठा करना प्रारम्भ कर दिया है और इस पानी से चर्म रोग ठीक होने के दावे किये जा रहे हैं. इस चमत्कार को देखने आस पास के ग्रामीण भी पहुच रहे हैं.
ईश्वर का प्रसाद समझ कर पी रहे ग्रामीण Singrauli Neem Tree Milk: चमत्कार या अंधविश्वास! पेड़ से निकली दूध की धारा, ईश्वर का प्रसाद समझकर पी रहे लोग
चर्म रोग खत्म होने का दावा:आस्था में आलम इतना बढ़ गया है कि लोग पेड़ के पास बने देव स्थल पारसदेव जी पर पूजा पाठ करने लोग आ रहे हैं, पेड़ के तने से गिरने वाले पानी पीने लायक है या नहीं इसे जाने बिना पानी एकत्रित कर खुद भी पी रहे हैं और भरकर भी ले जा रहे हैं. वहीं स्थानीय लोगों का दावा है कि इसको पीने से चर्म रोग खत्म हो जाएगा. यह चमत्कार 5 वर्ष में एक बार होता है, वहीं पीने वाले लोग पानी का स्वाद नारियल के पानी की तरह बता रहे हैं. फिलहाल यह चमत्कार है या अंधविश्वास यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन पिछले सात दिनों से नीम के पेड़ धारा वह रही है.
पहले भी आ चुके हैं ऐसे मामले:नीम के पेड़ से दूधिया पानी निकलने की घटनाएं पहले भी प्रदेश के अलग-अलग जिलोंं के गावों से सामने आ चुकी हैं. जहां लोग पेड़ से दूध निकलने पर चमत्कार मानकर पूजा पाठ शुरू कर देते हैं. कई जगह लोग इस तरह की घटना को ईश्वर का चमत्कार मानते हैं. यही नहीं अक्सर लोग इसे सच मानते हैं और वैज्ञानिक कारणों को दरकिनार भी कर देते हैं.