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महाकाल टपकेश्वर का सदियों बाद भी नहीं खुला राज, सावन में भक्तों की यहां पूरी होती है मुराद

दूर घने जंगल में पहाड़ियों के बीच स्थित महाकाल टपकेश्वर मंदिर का रहस्य आजतक कोई नहीं लगा सका है क्योंकि इस मंदिर में सदियों से पानी टपकता आ रहा है, लेकिन उस पानी के स्रोत का आज तक पता नहीं चल सका है. श्रावण मास में इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर जलाभिषेक कर लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं.

टपकेश्वर महादेव

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Published : Jul 22, 2019, 7:51 PM IST

शिवपुरी। श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है, खासकर सावन के सोमवार को लोग व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक कर भोलेनाथ को मनाते हैं. यूं तो भगवान शिव कण-कण में विराजमान हैं. पर शिवपुरी जिले से लगभग 45 किलोमीटर दूर नरवर जाने वाले रास्ते पर घनघोर जंगल के बीच भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है, जिसे महाकाल टपकेश्वर आश्रम के नाम से जाना जाता है. ये मंदिर रामायण काल का है. इस मंदिर में सबसे चौंकाने वाला रहस्य ये है कि पहाड़ों के बीच से निकल रहे पानी के स्रोत का आज तक कोई पता नहीं लगा सका है.

टपकेश्वर महादेव

इसी मंदिर में साधना कर रहे मुख्य महंत के शिष्य ने बताया कि महंत ओंकार नंद महाराज चार माह तक मंदिर में मौजूद महाकाल की गुफा में ही तपस्या करते रहेंगे, उनकी साधना धनतेरस पर पूर्ण होगी. तब तक उनसे न तो कोई मिल सकता है और न ही गुफा के पास कोई जा सकता है. तपस्या पूर्ण होने के बाद ही महंत गुफा के बाहर अपने भक्तों से मिलेंगे.

सावन का पहला सोमवार होने के चलते भक्त सुबह से ही महाकाल टपकेश्वर आश्रम पर पहुंचने लगे थे, जहां पूरे दिन विधि-विधान से भगवान शिव का जलाभिषेक किया गया, ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मंदिर में भगवान शिव की आराधना करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है. साथ ही यहां किसी तरह के दान देने या लेने पर पूरी तरह प्रतिबंध है.

अर्धनारीश्वर भगवान शिव की महिमा निराली है, श्रावण मास में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए कांवड़िये गंगाजल भरकर मीलों पैदल सफर करते हैं, जबकि जो लोग कांवड़ यात्रा नहीं कर पाते, वो आसपास के शिव मंदिरों में ही जलाभिषेक कर भगवान भोलेनाथ को मनाते हैं.

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