श्योपुर(Agency, PTI)।कूनो नेशनल पार्क में एक सप्ताह के भीतर दो नर चीतों की मौत हो गई. इस बारे में चीता विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य प्रदेश में सेप्टीसीमिया बैक्टीरिया द्वारा रक्त विषाक्तता चीतों की मौत हो रही है. दरअसल, गीली परिस्थितियों में उनकी गर्दन के चारों ओर पहने जाने वाले रेडियो कॉलर के कारण बैक्टीरिया पनप रहा है. चीता विशेषज्ञों का कहना है "अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं. दोनों चीतों की मौत सेप्टिसीमिया से हुई है." बता दें कि दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीता सूरज की शुक्रवार को मृत्यु हो गई. जबकि एक अन्य स्थानांतरित नर चीता तेजस की इससे दो दिन पहले मौत हुई. इस प्रकार चार महीने से भी कम समय में तीन शावकों सहित मरने वाले चीतों की संख्या 8 हो गई है. इन मौतों ने चीता प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े कर दिए हैं. "(Cheetah Death Cause)
आपसी लड़ाई से मौत नहीं :दक्षिण अफ़्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे ने मंगोलिया ने बताया "चीता को अन्य जानवरों द्वारा दिए गए घाव नहीं थे. वे डर्मेटाइटिस और मायियासिस के बाद सेप्टीसीमिया के मामले हैं." मेरवे ने कहा कि वह चीता का प्रबंधन करते हैं. भारत में चीता परियोजना के भाग्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा "हमारे पास अभी भी 75 प्रतिशत चीते भारत में जीवित और स्वस्थ हैं. इसलिए सब कुछ अभी भी ट्रैक पर है और जंगली चीता के पुनरुत्पादन के लिए सामान्य मापदंडों के भीतर मृत्यु दर देखी गई है".
रेडियो कॉलर से फैला संक्रमण :बता दें कि जब बीते मंगलवार को चीता तेजस की मौत हो गई तो राज्य वन विभाग के अधिकारियों ने कहा था कि उन्हें संदेह है कि यह जानवरों के बीच आपसी लड़ाई का नतीजा है. उन्होंने बताया था कि चीते के गले के आसपास घाव पाए गए. शुक्रवार को मरे चीता सूरज की गर्दन और पीठ पर घाव थे और मक्खियां और कीड़े आसपास मंडरा रहे थे. बता दें कि स्थानांतरित चीतों की गर्दन के चारों ओर रेडियो कॉलर लगाए गए हैं.