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कुपोषण का दंश झेल रहा श्योपुर, अधिकारी कांगजों में मिटाने में जुटे, जानें क्या कहते हैं आंकड़े

मध्य प्रदेश के श्योपुर में सिस्टम की बेरुखी बच्चों पर भारी पड़ती दिख रही है. लापरवाही के चलते श्योपुर जिले में कुपोषित बच्चों की मौतों की संख्या बढ़ रही है. बावजूद इसके जिम्मेदार अधिकारी कुपोषण को जमीनी स्तर से मिटाने की बजाए कागजी आंकड़े बाजी करके कुपोषण को मिटाने में जुटे हुए हैं.

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कुपोषण का दंश झेल रहा श्योपुर

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Published : Nov 22, 2020, 2:56 PM IST

श्योपुर।कुपोषण के मामले में दुनिया भर में बदनाम श्योपुर जिले के माथे से कुपोषण का कलंक बरकार है. यही वजह है कि लाख प्रयास करने के बाद भी श्योपुर जिले में अनगिनत कुपोषित और अति कुपोषित बच्चे जिंदगी से लड़ाई लड़ रहे हैं. पिछले दो महीने पहले भी कराहल के सेसई पुरा सेक्टर में 2 कुपोषित बच्चों की मौत हुई थी. उससे पहले भी न जाने कितने मासूम मौत के काल में समा चुकें है. बावजूद इसके जिम्मेदार अधिकारी कुपोषण को जमीनी स्तर से मिटाने की बजाए कागजी आंकड़े बाजी करके मिटाने में जुटे हुए हैं.

कुपोषण का दंश झेल रहा श्योपुर


अभी भी कुपोषण का दंश झेल रहा है एमपी
कुपोषित बच्चों की अगर बात की जाए तो जिले की ऐसी कोई आदिवासी समाज की बस्ती अछूती नहीं होगी. जहां कुपोषित बच्चे ना हो. बडौदा, मानपुर, ढोढर सबसे ज्यादा कराहल और आगरा में स्थिति दयनीय है. इन इलाकों के गांव में अधिकांश परिवार कुपोषण से ग्रसित अपने बच्चों को लेकर परेशान हैं. कई गंभीर कुपोषित बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें सांस तक लेने में तकलीफ होती है. फिर भी जिम्मेदार उन्हें एनआरसी में भर्ती करके जरूरी पोषण आहार और सुविधाएं देने के नाम पर कागजी खानापूर्ति करने में जुटे हुए हैं. इससे स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है. कमिश्नर आरके मिश्रा का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा योजनाएं चलाई जा रही हैं. सभी गरीब परिवारों के लिए राशन पर्ची बनवाई जा रही है. इसके लिए हमारी पटवारियों की टीम कार्य कर रही हैं. जहां तक कुपोषण की बात है तो ऐसा कोई मामला नहीं है. बच्चों के वजन की बात है तो उसके लिए भी हमारे पास व्यवस्था हैं.

यह है पीड़ित परिवार की समस्या

वहीं आदिवासी महिला कैलाशी बाई का कहना है कि कुछ दिन पहले हमने अपनी बच्ची और बच्चे को एनआरसी में भर्ती कराया था. जहां खान-पान अच्छा न मिलने के कारण एनआरसी में ही बच्चे की मौत हो गई. इस वजह से हम बच्ची को घर ले आए. अगर एनआरसी में ही रखते तो बच्ची की भी मौत हो जाती. तो वहीं ममता आदिवासी का कहना है कि मैं अपने बच्चे को घर से एनआरसी में ले गई थी, वहां और ज्यादा तबीयत खराब हो गई. इस कारण से एनआरसी से घर लेकर आई तो अब मेरा बच्चा ठीक है, लेकिन एनआरसी में खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है.

ये हैं कुपोषित बच्चों की स्थिति

महिला बाल विकास के सरकारी आंकड़ों की अगर बात की जाए, तो जिले भर में सामान्य श्रेणी में बच्चों की संख्या 6,3548 है. तो कम वजन वाले बच्चों की संख्या 19,085 है. लेकिन अति कम वजन वाले बच्चों की संख्या 1776 है और गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 274 है, जबकि जमीनी हकीकत की बात की जाए तो जिले में कुपोषित और गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या इन आंकड़ों से कई गुना ज्यादा है. कई कुपोषित बच्चों की मौत भी गांव में हर महीने हो जाती है. जिन्हें छुपाने के लिए महिला बाल विकास अधिकारी उनके नाम आंगनबाड़ी रजिस्टर से काट देते हैं. पूर्व में इस तरीके की शिकायतें भी सामने आ चुकी हैं. फिर भी कुपोषण की स्थिति में सुधार करने की दशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. महिला बाल विकास द्वारा अक्सर बच्चों के नाश्ते के लिए जुगाड़ ही तलाशी जाती हैं. जिससे जिले में कुपोषण का ग्राफ कम नहीं हो रहा है.

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