शाजापुर।आगामी 22 अगस्त से पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाएगा. हालांकि इस बार कोरोना काल के चलते इस त्योहर की रंगत कम देखने को मिलेगी. वहीं इस बार शाजापुर जिले में पीओपी की जगह मिट्टी के गणेश बनाए जा रहे हैं, जो आने आने वाली गणेश चतुर्थी पर हमारे घरों की शोभा बढ़ाएंगे. स्थानीय निवासी बिंदू ठोमरे ने इस बार पर्यावरण बचाने के उद्देश्य से मिट्टी के गौरी पुत्र बनाने का बीड़ा उठाया है. बिंदू खुद तो मिट्टी के गणेश बना ही रह है, साथ ही दूसरों को भी मिट्टी के गणेश निशुल्क बनाना सिखा रही है.
ईटीवी भारत से चर्चा करते हुए बिंदू ने बताया कि मैं अपने परिवार के साथ करीब 4 साल पहले विसर्जन स्थल पर गई थी. जहां पर विसर्जन होने के लिए आई अधिकांश मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी हुई थी. कुछ दिन बाद मैं फिर उस जगह पहुंची, लेकिन वहां का नजारा देखकर मेरा दिल पसीज गया. विसर्जित की गई अधिकांश मूर्तियां उसी हाल में वहां जीर्ण-शीर्ण पड़ी हुई थी. इससे मेरी धार्मिक भावना भी आहत हुई, साथ ही पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ को भी मैंने करीब से देखा. तभी मैंने प्रण लिया कि पहले मैं खूद बदलूंगी, इसके बाद दूसरों को बदलने का प्रयास करुंगी.
2 साल तक घर में बनाई प्रतिमा
बिंदू ने बताया कि शुरुआत के दो साल मैंने घर पर ही मिट्टी के गणेश जी बनाए. 10 दिन तक उनका विधिवत पूजन-अर्चन करने के बाद चतुर्दशी पर गमले में उनका विसर्जन किया. इससे मुझे दो तरह के फायदे हुए. पहला महंगे दाम पर पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली पीओपी की प्रतिमा खरीदना नहीं पड़ी और दूसरा विसर्जन स्थल पर प्रतिमाओं की दुर्दशा नहीं देखना पड़ी. जिससे मेरी धार्मिक भावना भी आहत नहीं हुई.
फूड कलर से रंगती हैं प्रतिमा
बिंदू ने बताया कि उनके द्वारा प्रतिमाओं का निशुल्क वितरण किया जाता है. लेकिन, वे प्रतिमा लेने वाले से एक संकल्प जरूर लेती हैं कि वे जिस भी गमले या स्थान पर इस प्रतिमा का विसर्जन करेंगे, वहां एक पौधा भी जरूर लगाएंगे. इससे प्रतिमा के अंदर रखे बीज के साथ-साथ रोपा गया पौधा भी अंकुरित होगा. बिंदू ने बताती हैं कि ईकोफ्रेंडली गणेश बनाने के लिए वे किसी भी तरह के आर्टिफिशियल कलर का प्रयोग नहीं करतीं. बल्कि फूड कलर से मिट्टी के गणेश जी का रंगरोगन करती हैं. इससे पर्यावरण को हानी नहीं पहुंचती है. इस तरह से ये प्रतिमाएं नाममात्र की लागत में तैयार हो जाती हैं और प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में कारगर साबित होती हैं.