शहडोल। भारत देश ऋषि मुनियों का देश रहा है, और अपने समय में ही ऋषि मुनियों ने आयुर्वेद को लेकर कई ऐसे ग्रंथ लिखे हैं जो आज भी लोगों के बहुत काम आ रहे हैं. इन्हीं आयुर्वेद ग्रंथों में 'स्वर्ण प्राशन' संस्कार का भी जिक्र है. 'स्वर्ण प्राशन' बच्चों का एक ऐसा संस्कार है जिसे पुष्य नक्षत्र में ही किया जाता है और इसे करने से बच्चों से बीमारी जहां कोसों दूर हो जाती है. इम्यूनिटी उनकी बूस्ट हो जाती है, तो वही बौद्धिक विकास से लेकर शारीरिक विकास सब कुछ शानदार हो जाता है. आखिर यह 'स्वर्ण प्राशन' है क्या, किस उम्र तक के बच्चों को देना चाहिए, इसमें होता क्या-क्या है, इसे कैसे करना चहिये, और इसके क्या फायदे हैं, बताया है आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव ने.
स्वर्ण प्राशन संस्कार है क्या?आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि ''स्वर्ण प्राशन का पूरा नाम स्वर्ण प्राशन संस्कार है. सनातन धर्म में जैसे जन्म से मृत्यु तक संस्कार किए जाते हैं, वैसे ही स्वर्ण प्राशन भी एक तरह का संस्कार है. इसका पहला डिस्क्रिप्शन काश्यप मुनि द्वारा काश्यप संहिता में किया गया है. काश्यप मुनि ने जो काश्यप संहिता लिखी थी, वो बाल रोग और स्त्री प्रसूति रोग के लिए सबसे आदि ग्रंथ माना जाता है, जैसे चरक संहिता है, सुश्रुत्व संहिता है, इसी तरह से काश्यप ऋषि ने जो ग्रंथ लिखी है उसका नाम काश्यप संहिता है.''
स्वर्ण को चटाने की विधि:स्वर्ण प्राशन बच्चों के पैदा होने के साथ ही स्वर्ण को चटाने की विधि है, स्वर्ण यानी गोल्ड प्राशन का मतलब होता है चटाना. पहले के समय में जब बच्चा पैदा होता था तो शुद्ध सोने का जो सीक होता था. उसको पत्थर में घिसकर ब्राह्मी स्वरस शहद आदि और आयुर्वेद औषधियों के साथ उसके घिसे हुए स्वर्ण को मिलाकर बच्चों को चटाया जाता था. जिससे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास, बौद्धिक विकास और मानसिक विकास होता था. जिस तरह से कर्ण भेदन संस्कार होता है, अन्न प्रशासन संस्कार होता है, वैसे ही ये स्वर्ण प्राशन संस्कार भी आदि भारतवर्ष में प्रचलित था.
स्वर्ण प्राशन संस्कार के फायदे:स्वर्ण प्राशन संस्कार में देखा गया है कि जो बच्चे स्वर्ण प्राशन कर रहे हैं, उनमें बीमारियां होने के चांसेस कम हो जाते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो जाती है, और शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानस रोगों में भी उनको फायदा मिलता है. बच्चों की बौद्धिक क्षमता में भी विकास होता है. इस पर काफी रिसर्च हो चुके हैं, ट्रायल्स भी हो चुके हैं और इसमें फायदा भी समझ में आ रहा है. जिसके बाद अब बहुत सारी आयुर्वेद की अच्छी कंपनियों ने इसे रेडी टू यूज फॉर्म में स्वर्ण प्राशन मैन्युफैक्चर कर रही हैं.
मौसमी बीमारियों से रक्षा: प्राचीन संस्कारों में से एक स्वर्ण प्राशन सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है, जो 16 वर्ष तक के बच्चे को कराया जा सकता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार आयुर्वेद चिकित्सा की वह धरोहर है जो बच्चों में होने वाली मौसमी बीमारियों से उनकी रक्षा करता है. उनकी इम्यूनिटी को ऐसा बूस्ट कर देता है कि बच्चे बीमार नहीं होते हैं. मौसम के बदलाव का कोई असर उन पर नहीं होता है.