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प्रतिभा ऐसी कि दुनिया जीत लें, लेकिन संसाधनों की कमी से हार रही कला - संसाधनों की कमी से हार रही कला

शहडोल में सीडब्लूएसएन छात्रावास में रहने वाले दिव्यांग बच्चे पेंटिग की कला में माहिर हैं, लेकिन सही मंच और ट्रेनिंग नहीं मिलने के कारण इनकी प्रतिभा दबी रह जाती है.

दिव्यांग बच्चे

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Published : Sep 10, 2019, 10:43 AM IST

शहडोल। कहते हैं कि हुनर कभी छिपता नहीं है, लेकिन सही मंच और ट्रेनिंग की व्यवस्था नहीं हो, तो वो दब जरूर जाता है. कुछ यही कहानी है शहडोल जिला मुख्यालय में सीडब्लूएसएन छात्रावास की. यहां 52 दिव्यांग बच्चे हैं और इन्हीं में से ऐसे होनहार भी हैं, जिन्हें अगर कलर बॉक्स मिल जाए, तो ये सारी दुनिया को कागजों पर उकेर दें, लेकिन इन बच्चों को अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए सही मंच नहीं मिल पा रहा है.

पेंटिग में माहिर दिव्यांग बच्चे

छात्रावास में रहने वाला छात्र दयाराम सिंह जो महज अभी 14 साल का है और कक्षा 8वीं में पढ़ता है, वह बोल नहीं सकता, सुन नहीं सकता, लेकिन देख जरूर सकता है और उसी से दुनिया में रंग भरने की कोशिश करता है. वहीं एक और छात्रा मनीषा सिंह भी कक्षा 8वीं में है, वो बोल-सुन नहीं सकती, लेकिन इनके अंदर भी प्रतिभा की भरमार है. किसी भी तरह की रंगोली बनवा लें या फिर चित्रकारी करवा लें, दोनों इसमें माहिर हैं.

संसाधनों की है कमी

सीडब्लूएसएन छात्रावास प्रेरणा फाउंडेशन और जिला शिक्षा केन्द्र के सहयोग से चल रहा है. प्रेरणा फाउंडेशन की सचिव मधुश्री रॉय बताती हैं कि ये सभी बच्चे बहुत अच्छी पेंटिंग करते हैं और इनमें प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन इन्हें सही मंच नहीं मिल पा रहा है. इन्हें हम किसी कंपटीशन में भाग ही नहीं दिलवा पाते हैं, इसके लिए कोई संसाधन ही नहीं है.

प्रतिभा निखारने के लिए मंच की है जरूरत

मधुश्री कहती हैं कि अगर उस तरह की चीजों के लिए हम उन्हें ले भी जाना चाहें, तो उस तरह का ट्रेंड पेंटर भी हमारे पास होना चाहिए, जो इन्हें पेंटिंग की और बारीकियां सिखा सके, लेकिन ये हमारे पास नहीं है. हम अपने स्तर पर उन्हें जितना सिखा पाते हैं, उतना सिखाने की कोशिश करते हैं. जब इन हालातों में भी बच्चे अच्छा करते हैं, उनमें इतनी प्रतिभा है, तो सोचिए अगर इन्हें निखारने का कोई मंच मिल जाए तो ये क्या कर जाएंगे.

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