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हर चुनाव में दल बदलते हैं यहां के मतदाता, जानिए इस बार ऐसा होने पर किस पार्टी को होगा नुकसान - जातिगत समीकरण

शहडोल आदिवासी लोकसभा सीट पर इस बार रोचक मुकाबला माना जा रहा है. यहां के मतदाता किसी एक दल पर दोबारा भरोसा नहीं करते.

शहडोल लोकसभा सीट की सियासी फिजा

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Published : Apr 6, 2019, 3:35 PM IST

शहडोल। आदिवासी लोकसभा सीट शहडोल में चुनाव आते ही राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं का फोकस बढ़ जाता है, क्योंकि इस आदिवासी बाहुल्य सीट पर हर बार बदलाव देखने मिलता है. यहां के मतदाता किसी एक दल को वोट नहीं करते. इस बार यहां बीजेपी-कांग्रेस के बीच मुकाबला रोचक माना जा रहा है. शहडोल लोकसभा क्षेत्र में गोंड, बैगा, भारिया, कोल जाति बहुलता में पाई जाती हैं. यहां SC-ST वर्ग को मिलाकर वोटरों की संख्या 55 फीसदी के करीब पहुंचती है.

शहडोल लोकसभा सीट की सियासी फिजा

इनके अलावा यहां बड़ी तादाद में ओबीसी और सामान्य वर्ग के वोटर्स हैं. मतलब आदिवासी लोकसभा सीट होने के बावजूद यहां पर जातिगत समीकरण देखने नहीं मिलता. बीजेपी नेता कैलाश तिवारी भी इस बात को स्वीकारते हैं. पिछली बार इस सीट पर कब्जा जमाने वाली बीजेपी के नेता कैलाश तिवारी इस बार भी जीत का दावा कर रहे हैं. कैलाश तिवारी मोदी की लोकप्रियता के दम पर चुनाव जीतने का की बात कर रहे हैं.

वहीं कांग्रेस भी मानती है कि शहडोल के लोग जागरूक हो चुके हैं, इसलिये अब यहां जातिगत संकीर्णता कोई मायने नहीं रखती. अब मतदाता विकास, रोजगार जैसे मुद्दों पर वोट करते हैं. कांग्रेस नेता शिवकुमार नामदेव ने पीएम मोदी पर देश की जनता के साथ वादाखिलाफी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस बार युवा रोजगार के मुद्दे पर ही वोट करेंगे.

राजनीतिक दल कुछ भी कहें, लेकिन शहडोल लोकसभा क्षेत्र के वोटर्स चुनाव दर चुनाव पार्टी बदलते रहे हैं. अगर इस बार ऐसा हुआ तो पिछले चुनाव में जीत दर्ज करने वाली बीजेपी की राह मुश्किल होगी, क्योंकि यहां के बाशिंदों ने कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस तो कभी निर्दलीय प्रत्याशी को संसद पहुंचाया है. इस बार बीजेपी ने हिमाद्री सिंह तो कांग्रेस ने प्रमिला सिंह पर दांव खेला है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार यहां के मतदाता किस पार्टी पर विश्वास करते हैं.

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