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बिन्नू बैगा कैसे बने युवाओं के लिए प्रेरणा का श्रोत, परिवार के हालात जानकर दंग रह जाएंगे आप - Baiga caste

युवाओं के लिए प्रेरणा का श्रोत बने शहडोल जिले में रहने वाले 22 साल के बिन्नू बैगा की कहानी सुनकर आप दंग रह जाएंगे, पिता को पैरालिसिस हो जाने के बाद बिन्नू बैगा ने न सिर्फ अपने परिवार को संभाला, बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणा श्रोत बन गए, पढ़िए पूरी ख़बर.

Shahdol
बिन्नू बैगा की कहानी

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Published : Nov 24, 2020, 8:45 AM IST

शहडोल। कहते हैं जमाना बदल रहा है, इस तरह के युवाओं को देखकर तो वाकई लगता है कि अब जमाना बदल गया है. हम बात कर रहे हैं 22 साल के बिन्नू बैगा की. ये वो युवा आदिवासी हैं, जिन्होंने अपने हुनर के दम पर न केवल पिता के पैरालिसिस हो जाने के बाद अपने लड़खड़ाए परिवार की आर्थिक स्थिति को संभाला, बल्कि अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अब अपने उसी हुनर के दम पर रोजगार का एक ऐसा साधन उन्होंने तैयार किया है, जो दूसरे बैगा समाज के युवाओं के लिए प्रेरणा बन रहा है.

बिन्नू बैगा के पिता मजदूरी कर अपने परिवार का गुजारा करते थे, लेकिन पैरालिसिस का शिकार होने के बाद उनकी मजदूरी छूट गई, और परिवार आर्थिंक संकट से जूझने लगा, लेकिन इस बड़ी चुनौती के बीच उनके बेटे बिन्नू बैगा ने कुछ नया करने की ठान ली, और मजदूरी करने से साफ इनकार कर दिया, साथ ही अपनी पढ़ाई जारी रखी, और खुद का काम स्थापित करने का सपना देखा, और आज ये युवा अपने बैगा समाज के लिए ही बड़ी प्रेरणा बन चुका है.

बिन्नू बैगा की कहानी

बैगा आदिवासी युवा, जो समाज के लिए बना प्रेरणा

पिता को पैरालिसिस, आर्थिक तंगी लेकिन फिर भी इस युवा ने कुछ नया करने की ठाना, मजदूरी न करने की ज़िद और खुद का काम शुरू करने का सपना देखा, और वही सपना आज हकीकत में बदल गया, आज बिन्नू बैगा अपने ही समाज के युवा, या यूं कहें कि हर वर्ग के बेरोजगार युवाओं के लिए बड़ी प्रेरणा बन चुके हैं.

जानिए कौन है बिन्नू बैगा ?

शहडोल जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर पड़निया खुर्द गांव के रहने वाले बिन्नू बैगा जिनकी उम्र महज अभी 22 साल है. गांव में एक कच्चे मकान में छोटी सा हेयरकट सैलून चलाते हैं. जहां आपको भले ही मकान कच्चा मिले कुर्सी बहुत ज्यादा आरामदायक न मिले, लेकिन हेयर कटिंग में इस्तेमाल की जाने वाली हर अत्याधुनिक मशीन मिलेगी. जो एक मॉडर्न सैलून में होनी चाहिए, तभी तो इस बैगा आदिवासी युवा के सैलून में करीब 5 से 6 गांव के लोग आते हैं.

घर की ज़िम्मेदारी और पढ़ाई के जुनून ने दिखाया रास्ता

बिन्नू बैगा बताते हैं कि वह पिछले एक साल से इस काम को कर रहे हैं और उनके इस सैलून में अब हर वो अत्याधुनिक सामान है, जो एक आज के युवा वर्ग के लिए इस फैशन के जमाने में उनको चाहिए. बिन्नू बैगा कहते हैं यह बहुत जरूरी है तब तो लोग उनके दुकान में बाल कटाने आएंगे, क्योंकि आज का युवा काफ़ी फैशनेबल है, फिर चाहे वह गांव का हो या शहर का, उसे हर वह अत्याधुनिक चीजें चाहिए जो दूसरे शहर के सैलून में मिलते हैं.

बिन्नू बैगा कहते हैं कि भले ही उनके सैलून की दीवारें कच्ची हैं लेकिन काम उनका बहुत पक्का है, तभी तो करीब 5 से 6 गांव के लोग जिसमें युवा बुजुर्ग समाज के हर वर्ग के लोग उनके यहां हेयरकट लेने आते हैं. बिन्नू बैगा बताते हैं कि यह सैलून खोलने की कहानी संघर्ष से भरी है,अचानक ही पिता को पैरालिसिस हो गया, घर की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई, पूरी जिम्मेदारी उन पर आ गई, लेकिन उन्होंने मजदूरी न करने की ठानी, साथ ही वे कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए शुरुआत में वह यूं ही आदिवासी बच्चों के हेयर कट किया करते थे, लेकिन जब घर की जिम्मेदारी उनके सर आ गई, तो फिर उस हुनर को ही उन्होंने हथियार बनाया. फिर धीरे-धीरे उन्होंने एक कमरे की व्यवस्था की और वहां एक छोटी सी कुर्सी रखी और फिर उसके बाद उसी कमाई से धीरे-धीरे वहां सामान इकट्ठा करना शुरू किया, और आज लगभग एक साल के बाद पूरी तरह से उनका सैलून तैयार है.

काम के साथ पढ़ाई भी

बिन्नू बैगा बताते हैं कि इस सैलून को ओपन करने के बाद उसी कमाई से पहले तो उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की, इसी सैलून कमाई से घर भी चलाते हैं, और उनकी पढ़ाई भी जारी है. बिन्नू ग्रेजुएशन कर चुके हैं और सर्वेयर से आईटीआई फर्स्ट ईयर में एडमिशन ले चुके हैं, जिसे लेकर वो वह काफी खुश हैं.

अदिवासी युवा बिन्नू बैगा

बिन्नू अपने काम से काफी खुश हैं और उनका साफ कहना है कि अब वह अपने इसी काम को आगे बढ़ाना चाहते हैं. इस सैलून से वह 500 से 600 के करीब हर दिन कमा लेते हैं जिससे उनका घर आसानी से चल जाता है, और उनकी पढ़ाई भी हो जाती है, साथ ही जरूरत की चीजें सैलून के लिए आ जाती हैं.

बैगा समाज के लिए बने रोल मॉडल

रिश्ते में बिन्नू बैगा के जीजा भाईलाल बैगा बताते हैं कि बिन्नू ने जो काम शुरू किया है और जिस तरह की आर्थिक संकट उन पर पड़ी थी इस छोटी सी उम्र में वह काबिले तारीफ है आज बैगा समाज में उनकी तारीफ होती है. बिन्नू बैगा समाज के युवाओं के लिए एक बड़े रोल मॉडल बन रहे हैं.

आत्मनिर्भरता की सोच को बढ़ा रहे

अनिल साहू जो युवा समाजसेवी हैं और पड़मनिया खुर्द के ही रहने वाले हैं, वह बताते हैं कि बिन्नू बैगा आत्मनिर्भरता की सोच को आगे बढ़ा रहे हैं बिन्नू ने जो कर दिखाया है, उनकी तारीफ हर ओर हो रही है. आज बिन्नू बैगा अपने मॉडर्न हेयर स्टाइल से काफी फेमस हो चुके हैं और अब आलम यह है कि बिन्नू बैगा हर वह बेरोजगार युवाओं के लिए बड़ी प्रेरणा बन रहे हैं जो खुद का काम शुरू करना चाहते हैं

पिछड़ी जनजाति है बैगा

आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त आर के श्रौति के मुताबिक राज्य की बात करें तो तीन ऐसी जनजातियां हैं, जिन्हें विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा दिया गया है, जिसमें बैगा, मंडला, डिंडोरी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया जिले में हैं, और भारिया, छिंदवाड़ा जिले में हैं और शहरिया, ग्वालियर रीजन के कुछ जिलों में हैं. इन तीनों को विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा दिया गया है. जहां तक इनके विकास की बात है, सरकार विशेष रूप से प्रयत्नशील है, कि ये कम संख्या में हैं इनको और ज्यादा सहायता दी जाए, जिससे ये सरवाइव कर सकें. बैगा जनजाति शहडोल जिले की है और इनका भी इन दिनों नए सिरे से सर्वे किया जा रहा है, जो करीब 15 दिन तक में खत्म कर ली जाएगी, हालांकि साल 2011 के सर्वे के मुताबिक जिले में 85 हजार 407 बैगा आदिवासी हैं.

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गौरतलब है कि बिन्नू बैगा ने जिस तरह से आर्थिक संकट से जूझते हुए संघर्ष किया, और एक नया मुकाम हासिल किया है, आज बिन्नू बैगा न केवल अपने बैगा समाज के लिए एक बड़ी प्रेरणा बन चुका है, बल्कि उसे उन्हें देखकर दूसरे बैगा युवा भी अपना खुद का काम स्थापित करने की सोच रहे हैं.

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