शहडोल। कहते हैं जमाना बदल रहा है, इस तरह के युवाओं को देखकर तो वाकई लगता है कि अब जमाना बदल गया है. हम बात कर रहे हैं 22 साल के बिन्नू बैगा की. ये वो युवा आदिवासी हैं, जिन्होंने अपने हुनर के दम पर न केवल पिता के पैरालिसिस हो जाने के बाद अपने लड़खड़ाए परिवार की आर्थिक स्थिति को संभाला, बल्कि अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अब अपने उसी हुनर के दम पर रोजगार का एक ऐसा साधन उन्होंने तैयार किया है, जो दूसरे बैगा समाज के युवाओं के लिए प्रेरणा बन रहा है.
बिन्नू बैगा के पिता मजदूरी कर अपने परिवार का गुजारा करते थे, लेकिन पैरालिसिस का शिकार होने के बाद उनकी मजदूरी छूट गई, और परिवार आर्थिंक संकट से जूझने लगा, लेकिन इस बड़ी चुनौती के बीच उनके बेटे बिन्नू बैगा ने कुछ नया करने की ठान ली, और मजदूरी करने से साफ इनकार कर दिया, साथ ही अपनी पढ़ाई जारी रखी, और खुद का काम स्थापित करने का सपना देखा, और आज ये युवा अपने बैगा समाज के लिए ही बड़ी प्रेरणा बन चुका है.
बैगा आदिवासी युवा, जो समाज के लिए बना प्रेरणा
पिता को पैरालिसिस, आर्थिक तंगी लेकिन फिर भी इस युवा ने कुछ नया करने की ठाना, मजदूरी न करने की ज़िद और खुद का काम शुरू करने का सपना देखा, और वही सपना आज हकीकत में बदल गया, आज बिन्नू बैगा अपने ही समाज के युवा, या यूं कहें कि हर वर्ग के बेरोजगार युवाओं के लिए बड़ी प्रेरणा बन चुके हैं.
जानिए कौन है बिन्नू बैगा ?
शहडोल जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर पड़निया खुर्द गांव के रहने वाले बिन्नू बैगा जिनकी उम्र महज अभी 22 साल है. गांव में एक कच्चे मकान में छोटी सा हेयरकट सैलून चलाते हैं. जहां आपको भले ही मकान कच्चा मिले कुर्सी बहुत ज्यादा आरामदायक न मिले, लेकिन हेयर कटिंग में इस्तेमाल की जाने वाली हर अत्याधुनिक मशीन मिलेगी. जो एक मॉडर्न सैलून में होनी चाहिए, तभी तो इस बैगा आदिवासी युवा के सैलून में करीब 5 से 6 गांव के लोग आते हैं.
घर की ज़िम्मेदारी और पढ़ाई के जुनून ने दिखाया रास्ता
बिन्नू बैगा बताते हैं कि वह पिछले एक साल से इस काम को कर रहे हैं और उनके इस सैलून में अब हर वो अत्याधुनिक सामान है, जो एक आज के युवा वर्ग के लिए इस फैशन के जमाने में उनको चाहिए. बिन्नू बैगा कहते हैं यह बहुत जरूरी है तब तो लोग उनके दुकान में बाल कटाने आएंगे, क्योंकि आज का युवा काफ़ी फैशनेबल है, फिर चाहे वह गांव का हो या शहर का, उसे हर वह अत्याधुनिक चीजें चाहिए जो दूसरे शहर के सैलून में मिलते हैं.
बिन्नू बैगा कहते हैं कि भले ही उनके सैलून की दीवारें कच्ची हैं लेकिन काम उनका बहुत पक्का है, तभी तो करीब 5 से 6 गांव के लोग जिसमें युवा बुजुर्ग समाज के हर वर्ग के लोग उनके यहां हेयरकट लेने आते हैं. बिन्नू बैगा बताते हैं कि यह सैलून खोलने की कहानी संघर्ष से भरी है,अचानक ही पिता को पैरालिसिस हो गया, घर की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई, पूरी जिम्मेदारी उन पर आ गई, लेकिन उन्होंने मजदूरी न करने की ठानी, साथ ही वे कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए शुरुआत में वह यूं ही आदिवासी बच्चों के हेयर कट किया करते थे, लेकिन जब घर की जिम्मेदारी उनके सर आ गई, तो फिर उस हुनर को ही उन्होंने हथियार बनाया. फिर धीरे-धीरे उन्होंने एक कमरे की व्यवस्था की और वहां एक छोटी सी कुर्सी रखी और फिर उसके बाद उसी कमाई से धीरे-धीरे वहां सामान इकट्ठा करना शुरू किया, और आज लगभग एक साल के बाद पूरी तरह से उनका सैलून तैयार है.
काम के साथ पढ़ाई भी