शहडोल।आदिवासियों की सबसे कठिन और अनोखी परंपरा है मौनी व्रत, जो काफी अद्भुत भी है. इसके बारे में जानकर हर कोई हैरान भी रहता है कि आखिर इतना कठिन व्रत कोई कैसे कर पाता है. मौनी व्रत को दीपावली की सुबह करने की परंपरा है. आदिवासी समाज के लोग कई सालों से लगातार इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. हालांकि अब पहले जैसा माहौल नहीं रह गया है, पहले जहां पूरे रीति रिवाज के साथ इस परंपरा का निर्वहन किया जाता था. लेकिन अब बदलते वक्त का असर इस मौनी व्रत पर भी देखने को मिल रहा है. युवाओं का रुझान इधर बिल्कुल भी नहीं है, और अब हर गांव में होने वाला यह व्रत अब कुछ गांव तक ही सीमित रह गया है. उसके लिए भी आपको उन गांव की तलाश करनी होगी कि आखिर मौनी व्रत किन गांव में हो रहा है.
युवाओं का रुझान बिल्कुल भी नहीं:आखिर आदिवासियों की अनोखी परंपरा मौनी व्रत क्यों विलुप्त की कगार पर पहुंच गया है. इसे जानने के लिए जब ईटीवी भारत की टीम ने गांव के आदिवासी समाज के लोगों से बात की तो बुजुर्ग नान बाबू बैगा बताते हैं कि ''इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि जैसे-जैसे समय में आधुनिकता आ रही है इसका असर अब आदिवासी समाज पर भी देखने को मिल रहा है. युवाओं का रुझान इस तरह के परंपराओं पर अब बिल्कुल भी नहीं है, आज के युवा इस तरह के अनोखे व्रत को नहीं करना चाहते हैं. यही वजह भी है कि अब गांवों से मौनी व्रत की ये अनोखी परंपरा विलुप्त की कगार पर पहुंच रहा है.''
काफी अनोखा है मौनी व्रत:दिवाली के दूसरे दिन सुबह होने वाले इस मौनी व्रत को लेकर लाल बैगा, केशव कोल, भैया लाल सिंह छलकू बैगा बताते हैं कि ''ये परंपरा काफी अनोखी है और इस परंपरा को करने के लिए काफी लगन, धैर्य और तप की जरूरत होती है. इस व्रत की खूबसूरती यह है कि इसे जोड़े में किया जाता है, और इसे पुरुष वर्ग के लोग ही करते हैं. जो भी युवा इस व्रत को करना चाहता है, उसे अपना एक साथी और तैयार करना पड़ेगा. फिर जोड़े में इस व्रत को किया जाता है. इस व्रत को करने के लिये दिवाली की सुबह गांव में सामूहिक तौर पर एक पंडाल बनाया जाता है. बदलते वक्त का असर आधुनिकता का असर इस पर भी दिखता है, और अब लोग टेंट लगाकर, इस प्रथा का निर्वहन करते हैं."