शहडोल। आदिवासी बाहुल्य जिले में सिकलसेल एनीमिया के मरीज मिल रहे हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि, इस बीमारी के बारे में हर किसी को जानना चाहिए. किस तरह के लक्षणों से इस बीमारी की पहचान की जा सकती है. कब सिकलसेल का टेस्ट कराना जरूरी होता है. इसी विषय को लेकर ईटीवी भारत से बातचीत की सीएमएचओ डॉ आर एस पांडे ने.
बॉर्डर एरिया में ज्यादा मरीज:शहडोल सीएमएचओ डॉक्टर आर एस पांडे बताते हैं कि, जिले में सिकलसेल के मरीज पाए जा रहे हैं. इसके ज्यादातर मरीज ट्राईबल एरिया में पाए जा रहे हैं. जो मध्य प्रदेश का दक्षिण पश्चिमी या बॉर्डर एरिया महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ से लगा हुआ है. अभी तक शहडोल जिले में सिकल सेल के 174 केस रजिस्टर्ड हैं, साथ में 413 केस ऐसे हैं जो सिकल सेल ट्रेड कहलाते हैं. सीएमएचओ डॉक्टर आरएस पांडे कि, मानें तो सिकलसेल बीमारी नहीं होती है, लेकिन 2 सिकलसेल की अगर आपस में जुड़ जाती हैं तो आने वाला जनरेशन सिकलसेल का डिसीज हो सकता है. सिकलसेल में कभी कोई समस्या नहीं होती है.
क्या है सिकलसेल:सिकल-सेल रोग (SCD) या सिकल-सेल रक्ताल्पता या ड्रीपेनोसाइटोसिस एक आनुवंशिक रक्त विकार है जो ऐसी लाल रक्त कोशिकाओं के द्वारा चरितार्थ होता है. जिनका आकार असामान्य, कठोर तथा हंसिया के समान होता है. यह क्रिया कोशिकाओं के लचीलेपन को घटाती है. जिससे विभिन्न जटिलताओं का जोखिम उभरता है.