शहडोल। मध्य प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य जिला है शहडोल. यहां जिला मुख्यालय से सटा हुआ एक आदिवासी गांव है विचारपुर, जिसकी पहचान सिर्फ और सिर्फ फुटबॉल से है. इस गांव को अगर हर कोई जानता है तो इसलिए की यहां के ग्रामीणों की रग-रग में फुटबॉल का खेल बसता है, इस गांव में आप पहुंचेंगे तो यहां लड़कों को ही नहीं लड़कियों को भी फुटबॉल खेलते पाएंगे. गांव में कोई क्रिकेट नहीं खेलता है और ना ही क्रिकेट के बारे में कोई जानता.
हर घर में फुटबॉल के नेशनल प्लेयर:भारत में यूं तोक्रिकेट का बोलबाला है, देश की गली मोहल्ले में आपको क्रिकेट के खेलते हुए बच्चे और युवा मिल जाएंगे, लेकिन शहडोल जिले का विचारपुर गांव एक ऐसा गांव है जहां पर आपको लगभग हर दूसरे घर में मौजूद लड़कियों में कोई एक फुटबॉल की नेशनल प्लेयर है. गांव के ही कुछ खिलाड़ी तो ऐसे हैं कि एक दो नहीं बल्कि 10 से 12 बार नेशनल लेवल पर खेल चुके हैं. छोटे से इस गांव में गर्ल्स और बॉयज मिलाकर 25-30 फुटबॉल के नेशनल प्लेयर हैं.खास बात यह है कि इनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा है.
इसलिए है फुटबॉल का क्रेज:विचारपुर गांव में कोई भी युवा खिलाड़ी क्रिकेट खेलना क्यों नहीं चाहता, वो भी इसके बावजूद जब नेशनल लेवल पर फुटबॉल खेलने के बाद भी उन्हें करियर में कोई विशेष सफलता नहीं मिली है. विचारपुर के ही फुटबॉल मैदान में लड़कियों को फुटबॉल की कोचिंग दे रहीं यशोदा सिंह खुद 6 बार नेशनल लेवल पर पार्टिसिपेट कर चुकी हैं, लक्ष्मी 9 बार नेशनल खेल चुकी हैं. इतने नेशनल खेलने के बाद भी उन्हें इसका कोई फायदा नहीं हुआ, बस मेडल और सर्टिफिकेट के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला. यशोदा सिंह तो यह भी कहती हैं कि फुटबॉल में नेशनल खेलने के बावजूद इस खेल में कोई करियर ही नहीं है. इसके बाद भी यहां के लोगों में फुटबॉल का एक अलग ही नशा है और यहां इसके अलावा कोई गेम नहीं खेला जाता. इसकी वजह वे बताती हैं कि यहां के लोगों ने गांव के दूसरे लोगों को भी छोटी उम्र से ही फुटबॉल खेलते देखा है, इसलिए सभी का रुझान फुटबॉल की ही है. यहां फुटबॉल का अलग ही क्रेज है, अलग ही माहौल है, यहां का बच्चा-बच्चा फुटबॉल खेलता है.