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ETV भारत Special : LPG के रेट बढ़ने से बेफिक्र यहां के लोग, क्योंकि इस आदिवासी गांव के हर घर में गोबर गैस - 10 साल से कर रहे गोबर गैस का इस्तेमाल

घरेलू गैस के दाम बढ़ने पर आम लोगों की काफी तीखी प्रतिक्रियाएं आती हैं. लेकिन शहडोल जिले में एक ऐसा आदिवासी गांव है, जहां घरेलू गैस के दाम बढ़ने को लेकर लोगों को फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इस गांव के घर- घर में गोबर गैस इस्तेमाल होती है. शहडोल जिले का ये गांव है खेतौली. यहां के लोग गोबर गैस का ही इस्तेमाल करते हैं. साथ ही खेती भी जैविक तरीके से करते हैं. (Gobar gas available in every house) (Tribal village khetoli of Shahdol) (People not worried increase rate of LPG)

Gobar gas available in every house
इस आदिवासी गांव के हर घर में गोबर गैस

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Published : Jul 11, 2022, 6:02 PM IST

शहडोल।हाल ही में घरेलू गैस के दाम एक बार फिर से ₹50 बढ़ा दिए गए. घरेलू गैस के लगातार बढ़ रहे दाम लोग परेशान हैं. वर्तमान में शहडोल जिले में एक एलपीजी सिलेंडर की कीमत ₹1076 है. लोग परेशान हैं कि आखिर खाना बनाने का ऐसा कौन सा विकल्प हो सकता है, जो उन्हें इस महंगाई से राहत दे सके. ऐसे लोगों के लिए शहडोल जिले का आदिवासी बाहुल्य गांव खतौली एक मिसाल है. यहां घर- घर में गोबर गैस का इस्तेमाल हो रहा है. बढ़ती महंगाई के बीच गोबर गैस इस गांव के लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है.

इस आदिवासी गांव के हर घर में गोबर गैस

गोबर गैस के प्रति लोगों में जागरूकता :ये गांव जिला मुख्यालय से लगभग 10 से 15 किलोमीटर दूर है. इस आदिवासी बाहुल्य गांव में गोबर गैस के प्रति लोगों में खासी जागरूकता है. इसका फायदा इस बढ़ती महंगाई के बीच उन्हें अब न केवल गैस के इस्तेमाल में मिल रहा है, बल्कि उनकी खेती भी उन्नत हो रही है. गांव के लोग जैविक खेती कर रहे हैं. इस बारे में महिलाओं का कहना है कि गोबर गैस उनके लिए वरदान है.

इस आदिवासी गांव के हर घर में गोबर गैस

10 साल से कर रहे गोबर गैस का इस्तेमाल : खेतौली गांव के कई आदिवासी घरों में पहुंचकर ईटीवी संवाददाता ने जायजा लिया. गोबर गैस के बारे में महिलाओं से बात की. उन्होंने बताया कि उनके घरों में 10 साल से ज्यादा समय से गोबर गैस का इस्तेमाल हो रहा है. महिलाएं कहती हैं कि आज उनके पास गोबर गैस है और एक अच्छा सिस्टम बना हुआ है. उन्हें खाना बनाने के लिए फ्री में गैस भी मिल रही है. खाद भी मिल रहा है और धुएं से उन्हें मुक्ति भी मिल रही है.

जैविक खेती भी कर रहे किसान :ग्रामीण बताते हैं कि गोबर गैस लगवाने का उन्हें फायदा मिल रहा है. महंगाई के इस दौर में वो गैस सिलेंडर कैसे रिफिल कराते. उन्हें फिर से लकड़ी और चूल्हे की ओर जाना पड़ता. ऐसे में गोबर गैस उनके लिए वरदान है. इसके अलावा खाद तैयार करने में वह सफल हो रहे हैं. इसका इस्तेमाल वो जैविक खेती में कर रहे हैं और उन्नत फसल हासिल कर रहे हैं.

इस आदिवासी गांव के हर घर में गोबर गैस

हर घर में गोबर गैस :ग्रामीण लल्लू सिंह कहते हैं कि उनके यहां जब से गोबर गैस प्लांट लगा है, तब से वह इसी से अपने घर में खाना बनवाते हैं. वह एलपीजी सिलेंडर नहीं भरवा पाते हैं. लल्लू सिंह कहते हैं कि जब उन्हें फ्री में गैस मिल रही है तो वह फिर इतने पैसे क्यों देंगे. लल्लू सिंह का कहना है कि उनके गांव में लगभग हर व्यक्ति गोबर गैस का इस्तेमाल करता है. पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी अखिलेश नामदेव कई सालों तक इस क्षेत्र में काम कर चुके हैं, वे इन गांवों के विकास में अपनी सहभागिता निभा चुके हैं.

इस आदिवासी गांव के हर घर में गोबर गैस
इस आदिवासी गांव के हर घर में गोबर गैस

एसपीजी का बेहतर विकल्प गोबर गैस : खेतौली गांव को लेकर पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी अखिलेश नामदेव का कहना है कि गोबर गैस या बायो गैस वैकल्पिक ऊर्जा का एक बहुत बड़ा साधन है. इस गांव में ज्यादातर किसान हैं. आदिवासी बाहुल्य गांव है. यहां के आदिवासी पहले जंगल में लकड़ी काटने जाते थे लेकिन जब इनके यहां बायोगैस -गोबर गैस बना तो इससे इनको दो फायदे मिल रहे हैं एक तो जो गैस मिलती है उससे वो खाना बनाते हैं. इसके अलावा जैसे ही इस गोबर की सैलरी निकलती है उसे सीधे खेतों पर डाल देते हैं और वो सैलरी बहुत ही अच्छी जैविक खेती के लिए खाद का काम करती है. खेतौली गांव के अधिकतर किसानों के यहां बायोगैस या गोबर गैस है. लगभग 80% लोगों के यहां ये सुविधा है. इस गांव में 80 से 85% लोग जैविक खेती करते हैं.

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