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ये पद्धति अन्नदाता को कर सकती है मालामल, मिल सकती है धान की बंपर पैदावार

धान की खेती करने वाले किसान पारंपरिक तरीके से खेती न करके आधुनिक खेती करने लगे हैं, जिससे उन्हें भले ही ठीक उत्पादन मिल जाता है, लेकिन उतनी ही अधिक लागत बढ़ जाती है.

Paddy cultivation through Biasi method beneficial
बियासी विधि से धान की खेती

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Published : Aug 20, 2020, 4:02 PM IST

शहडोल। बदलते वक्त के साथ खेती करने का तरीका भी बदला है, जहां एक ओर पुरानी पद्धति को छोड़ किसान नई पद्धति से खेती करना सीख रहे हैं, वहीं पारंपरिक बीज और खाद का उपयोग छोड़ हाइब्रिड बीजों रासायनिक खादों के इस्तेमाल से लागत भी बढ़ रही है. ऐसे में आपको बताते हैं धान की फसल उगाने की एक ऐसी पद्धति, जिससे किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं, वो भी हाइब्रिड बीजों और रासायनिक खादों का कम से कम उपयोग करके, जिसे कहते हैं बियासी पद्धति.

बियासी विधि से धान की खेती

क्या है बियासी

इस पद्धति में गहराई से जुताई कर धान का छिड़काव किया जाता है और जब अच्छी बारिश हो जाती है और पौधे लगभग एक फीट के हो जाते हैं तो खेत में हल चला दिया जाता है, जिससे खरपतवार नीचे दब जाते है और उनका विकास रुक जाता है. आवश्यकतानुसार बियासी से 25-30 दिन बाद एक बार हाथ से निराई कर सकते हैं, जिससे फसल और बेहतर हो जाती है, साथ ही बियासी पद्धति के उपयोग से किसान को लागत कम आती है.

बियासी विधी से धान की खेती

धान बियासी के फायदे
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी ने बताया कि रूट क्षेत्र में जब हल चलाते हैं तो वहां की एक्टिविटी बढ़ जाती है. धान के रुट क्षेत्र में काफी हलचल होती है, जिससे जड़ों की समस्या हो जाती है और ऑक्सीजन का इंटैक्ट बढ़ जाता है, जिससे उत्पादन कमजोर नहीं होने पाता. कृषि वैज्ञनिक की माने तो उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है.

बियासी विधी से धान की खेती

लागत में आती है कमी

इस पद्धित से खेती करने से लागत में भी बहुत कमी आती है ,साथ ही उत्पादन भी बम्पर होता है. शुरुआत में बस खेतों में सीधी बोवनी करनी है, फिर उसके बाद बियासी करनी है. इस दौरान रोपण पद्धित में जो खर्च आता है वो बचता है. इसमें मजदूरों, खेतों की बार-बार जुताई, रासायनिक खाद और कीटनाशकों और बीज का खर्च शामिल है. कृषि वैज्ञानिक भी मानते हैं कि इस पद्धति से खेती करने से उत्पादन भी बम्पर होता है और लागत भी बहुत ही कम आती है.

बारिश हो तभी पद्धति रामबाण
वैसे भी जिले के ज्यादातर किसान बारिश के पानी पर आश्रित होकर खेती करते हैं, लेकिन बारिश का कोई भरोसा नहीं है, ऐसे में कई बार बारिस की कमी के कारण किसान को बियासी करना कई बार हानिकारक हो जाता है क्योंकि बियासी पद्धति में खेत पानी से भरा होना चाहिए, जिससे हल चलाते समय पौधों की जड़ों को नुकसान न होने पाए. हलांकि, नमी बने रहने पर कम बारिश की स्थिति में भी ठीक ठाक फसल मिल जाती है.

पुरानी परंपरागत खेती छोड़ने के बाद किसान की डिपेंडेंसी बाजार पर ज्यादा हो गई है, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था. मतलब साफ है कि हाइब्रिड बीज रासायनिक खाद के उपयोग से भले ही किसान बंपर फसल उगा लेता है, लेकिन इससे वह परंपरागत खेती और उससे होने वाले फायदे को भूलता जा रहा है, जबकि परंपरागत पद्धति को अपनाने से भी वह इतनी ही फसल उगा सकता है, बशर्ते थोड़ी ज्यादा मेहनत कर ले.

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