मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

Shahdol MP Cultivation Rare Herbs दो एकड़ जमीन में 200 प्रकार से भी ज्यादा दुर्लभ जड़ी- बूटियों की खेती, इनसे हर मर्ज का इलाज संभव - जड़ी बूटियों की खेती

आदिवासी बाहुल्य जिला शहडोल प्रकृति की गोद में बसा हुआ है. यहां चारों ओर हरियाली है. प्रकृति की खूबसूरती अगर देखनी हो तो शहडोल जिले से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. जिले में चारों ओर जंगल ही जंगल हैं. पेड़ पौधों की भरमार है. ऐसे में यहां कई ऐसी दुर्लभ जड़ी बूटियां भी हैं, जो असाध्य रोगों में काम करने की ताकत रखती हैं. इन दुर्लभ जड़ी बूटियों को सहेजने का बीड़ा उठाया है शहडोल जिले के रहने वाले आरके पटेल ने, जिन्हें राम कुशल पटेल के नाम से भी जाना जाता है. Cultivation 200 rare herbs, Rare herbs two acres, Treatment every merge possible, Arogya Dham Shahdol

Shahdol MP Cultivation Rare Herbs
200 प्रकार से भी ज्यादा दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती

By

Published : Sep 6, 2022, 2:51 PM IST

शहडोल।दुर्लभ जड़ी बूटियों को सहेज रहे राम कुशल पटेल जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर सेमरिहा गांव में 5 एकड़ रकबे में खेती करते हैं. इसमें 2 एकड़ का एरिया जड़ी बूटियों के लिए आरक्षित कर रखा है. 200 से भी ज्यादा प्रकार की दुर्लभ जड़ी बूटियों को उन्होंने सहेज रखा है. राम कुशल पटेल बताते हैं कि उनकी लगातार कोशिश रहती है कि वहां अलग-अलग तरह की दुर्लभ जड़ी बूटियों को लाकर सहेजें. इसके बाद उनकी जानकारी दी जा सके.

200 प्रकार से भी ज्यादा दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती

आरोग्य धाम की स्थापना :राम कुशल पटेल बताते हैं कि इन दुर्लभ प्रजाति की जड़ी बूटियों को सहेजने के लिए उन्होंने काफी प्लानिंग के तहत काम किया है. इसके लिए उन्होंने उस जगह को चकरघटा शिव साधना आरोग्यधाम का नाम दे रखा है और यहां पर अभी तो 2 एकड़ जमीन में ही जड़ी बूटियों को लगाया जा रहा है. इसके बाद कोशिश है कि जैसे-जैसे और जड़ी बूटियों की जानकारी होती जाएगी, उनके पौधे मिलते जाएंगे तो उन्हें यहां लगाया जाएगा और आगे रकबा बढ़ाया जाएगा. इसीलिए उन्होंने इसका नाम आरोग्य धाम दे रखा है.

200 प्रकार से भी ज्यादा दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती

हर जगह हो सकती है जड़ी-बूटियों की खेती :उनका मानना है कि हर जगह जड़ी बूटियों की अपार संभावनाएं हैं. उन्हें सरंक्षित करने की जरूरत है. इसलिए पूरे प्रदेश में हर जिले में एक आरोग्यधाम इस तरह का होना चाहिए. जहां अलग-अलग तरह की जड़ी बूटियों को सहेजा जा सके. राम कुशल पटेल बताते हैं कि यह काम उनके 1 दिन का नहीं है बल्कि पांच 7 साल की मेहनत है. पहले वह जिला पंचायत में नौकरी किया करते थे. तब कम समय दे पाते थे, लेकिन जब से वह रिटायर हुए हैं, उसके बाद से अपने इस आरोग्यधाम में बहुत ज्यादा समय दे रहे हैं. राम कुशल पटेल कहते हैं कि वह जड़ी बूटियों का संग्रहण तो कर ही रहे हैं. कोशिश कर रहे हैं कि जो भी किसान उन्हें मिले, वह प्रेरित भी करें.

200 प्रकार से भी ज्यादा दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती

लिपिबद्ध करने की कोशिश :शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और आज भी इस जिले में कई आदिवासी बुजुर्ग ऐसे हैं. जो जड़ी बूटियों के बहुत जानकार हैं. कई ऐसे असाध्य रोगों के लिए वो जड़ी बूटियां जानते हैं जिन्हें इस्तेमाल कर मिनटों में उन असाध्य रोगों को ठीक किया जा सकता है. आज भी पहाड़ी जगहों पर दुर्लभ आदिवासी क्षेत्रों में जड़ी बूटियों का ही सहारा है. रामकुशल पटेल कहते हैं कि यहां तो कई ऐसी जड़ी बूटियां भी हैं जो कैंसर जैसे मर्ज को भी ठीक कर सकती हैं, लेकिन जो इनके जानकार हैं वह मिल नहीं रहे.और जो जानते हैं वह बता नहीं रहे हैं. उनकी कोशिश है कि उनसे भी इन जड़ी बूटियों के बारे में जानकारी लेना, जिससे इन दुर्लभ प्रजाति की जड़ी बूटियों को लिपिबद्ध किया जा सके.

कई जड़ी बूटियां विलुप्ति की कगार पर :उनका कहना है कि अगर इनके बारे में जानकारी नहीं रहेगी तो उन्हें सहेज नहीं सकते. इसी अज्ञानता की वजह से आज कई जड़ी बूटियां विलुप्त होने की कगार पर हैं. कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं. राम कुशल पटेल बताते हैं कि जड़ी बूटियों की कई ऐसी प्रजातियां हैं जो बड़ी मुश्किल से मिलती हैं, जैसे कि उन्हें ही अपने इस आरोग्यधाम में दहिमन का पौधा लगाना था तो बड़ी मुश्किल से मिला. दहिमन का पौधा जो पहले अपने क्षेत्र में बहुत आसानी से मिल जाता था अब विलुप्त होने की कगार पर है. इसके बारे में कहा जाता है कि इसे छू देने मात्र से ही बीपी कंट्रोल हो जाती है. लोग इसका ब्रेसलेट पहनते हैं. माला बनाकर पहनते हैं. वॉकिंग के लिए इसके डंडे का इस्तेमाल करते हैं.

200 प्रकार से भी ज्यादा दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती

दहिमन का पूरा पौधा ही औषधि :दहिमन के पौधे की छाल से औषधि बनती है. इसके पत्तों से औषधि बनती है. पूरा का पूरा दहिमन का पौधा ही अपने आप में एक औषधि है. इतना ही नहीं काली हल्दी जो बहुत कम मिलती है, यह भी कई तरह के रोग में काम आती है. चेहरे पर फुंसियां, दाग- झुर्रियां हैं तो अगर गुलाब जल के साथ काली हल्दी को लगा लिया जाए तो वह सब गायब हो जाते हैं. आमा हल्दी जिसकी खुशबू आम की तरह होती है, यह गठिया वात जैसे दर्द को दूर करने में बहुत कारगर होती है. जंगली सफेद मूसली जो जिसका दुरुपयोग होने की वजह से अब यह जंगलों से गायब हो रही है, इसे भी सहेजने की जरूरत है.

200 प्रकार से भी ज्यादा दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती

ऐसे मिली प्रेरणा :जड़ी बूटियों को सहेजने की प्रेरणा के बारे में वह बताते हैं कि वह किसान के बेटे हैं. शुरुआत से ही बागवानी करते थे. जब वह जिला पंचायत में नौकरी करते थे तो हर विभाग की प्रदर्शनी लगती थी. लेकिन जड़ी बूटी के बारे में कोई नहीं बताता था. इसके बाद से उन्होंने यह तय किया था कि अब जड़ी-बूटियों को सहेजने का काम किया जाएगा. इनके बारे में जानकारी जुटाई जाएगी और एक ऐसी जगह बनाई जाएगी जहां हर तरह की जड़ी बूटी उपलब्ध हो, जिनकी जानकारी लोगों को आसानी से मिल सके और उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके.

औषधीय खेती से चमकेगी बुंदेलखंड के किसानों की किस्मत, टीकमगढ़ से शुरु हुआ नवाचार

संस्था भी गठित की है :रामकुशल पटेल बताते हैं कि उन्होंने एक संस्था बनाई है जिसका नाम है सिया रोज गार्डन एंड मेडिसिनल प्लांटेशन. इसमें हमारी योजना है शिव साधना आरोग्य मिशन योजना चलाने की. हमारी संस्था विलुप्त जड़ी बूटियों का संग्रह करची है. संरक्षण और संवर्धन का काम करती है. राम कुशल पटेल बताते हैं कि शहडोल जिले की जमीन ज्यादातर रेतीली है और यहां पर औषधियों की खेती की अपार संभावनाएं हैं. यहां पर कंद वाली औषधियां अगर लगाई जाएं तो किसान कम जमीन पर ज्यादा कमाई कर सकते हैं. काली हल्दी ₹500 से लेकर ₹2000 तक बिकती है. आमा हल्दी हजार रुपये के करीब बिकती है. सफेद मूसली तो 3 हज़ार रुपये तक बिकती है.

सब कुछ जैविक :रामकुशल पटेल बताते हैं कि अपने आरोग्यधाम में उन्होंने सब कुछ जैविक लगा रखा है. क्योंकि अगर इन औषधियों में जड़ी बूटियों में केमिकल का इस्तेमाल किया गया तो फिर इनका औषधीय तत्व खत्म हो जाएगा. इसलिए वह जैविक खेती ही कर रहे हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details