शहडोल। मध्य प्रदेश में चुनावी शंखनाद होते ही चुनावी सरगर्मियां भी काफी तेज हो चुकी है. कांग्रेस दनादन बड़ी-बड़ी सभाएं कर रही है. बीते मंगलवार को शहडोल जिले के आदिवासी बाहुल्य इलाका ब्यौहारी में राहुल गांधी की एक बड़ी जनसभा हुई. अब कांग्रेस की प्रियंका गांधी आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला आ रही हैं. बीजेपी के बड़े-बड़े दिग्गज पहले ही एमपी में कई दौर कर चुके हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी कई बार अलग-अलग जगह पर सभाएं कर चुके हैं. बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर कोई और पार्टी, इन सभी नेताओं में एक ही कॉमन बात देखने को मिली कि सभी ने इस दौरान आदिवासी वर्ग को साधने की कोशिश की है. सभी के सेंटर पॉइंट आदिवासी ही हैं.
विंध्य में राहुल गांधी ने आदिवासियों को साधा: बीते सोमवार को कांग्रेस ने विंध्य की धरा में एक बड़ी जनसभा की. जिसमें राहुल गांधी ने सभा को संबोधित किया. ये आयोजन शहडोल जिले के आदिवासी बाहुल्य इलाका ब्यौहारी में किया गया. यहां पर राहुल गांधी ने आदिवासियों को साधने की पूरी कोशिश की और अपने भाषण के दौरान यही बताने की कोशिश की कि कांग्रेस आदिवासियों की हितैषी है और उनके अधिकार कांग्रेस ही दिला सकती है. वहीं अब 12 अक्टूबर को आदिवासी बहुल इलाका मंडला में कांग्रेस बड़ी सभा करने जा रही है. जहां उनके पार्टी की दिग्गज नेता प्रियंका गांधी सभा को संबोधित करेंगी.
बीजेपी के बड़े-बड़े दिग्गज भी शामिल: विधानसभा चुनाव में आदिवासियों को साधने की रेस में कांग्रेस ही नहीं है बल्कि बीजेपी तो काफी पहले से ही जोर लगा रही है. पार्टी के बड़े-बड़े नेता कई सभाएं भी कर चुके हैं. खुद पीएम मोदी शहडोल जिले के लालपुर में आदिवासी बाहुल्य शहडोल जिले के लालपुर में एक बड़ी जनसभा को संबोधित कर चुके हैं, तो वहीं पकरिया गांव में आदिवासियों के साथ आम के पेड़ के नीचे चर्चा उनके साथ भोजन भी कर चुके हैं. इसके अलावा खुद अमित शाह भी आदिवासी वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए कई सभाएं कर चुके हैं.
आदिवासी सीट पर इतना जोर क्यों ?: विधानसभा चुनाव में आखिर आदिवासी सीटों पर सभी पार्टियों का इतना जोर क्यों है, तो इसकी सबसे बड़ी वजह है की मध्य प्रदेश में अगर किसी भी पार्टी को सत्ता हासिल करना है तो सत्ता की चाबी इन आदिवासी सीट से ही होकर गुजरती है. जो भी पार्टी चुनाव में प्रदेश की इन आदिवासी सीटों पर बढ़त बनाने में कामयाब हो जाती है, उसे आसानी से सत्ता मिल जाती है. कई चुनाव में ये देखने को भी मिला है. शायद यही वजह भी है कि आदिवासी सीटों पर हर पार्टी की नजर है. हर नेता अपना पूरा जोर लगा रहा है.