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MP Tribal Politics: एमपी में अगर बनानी है सरकार, तो इन सीटों में पाना होगा पार, जानिए 47 सीट का मैजिक

चुनावी साल में राजनीतिक पार्टियां वैसे तो किसी वर्ग को नाराज करने की गलती नहीं करना चाहती, लेकिन कुछ खास वर्ग हैं, जिन्हें वह साधने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे. एमपी में आदिवासी वोट बैंक पर पकड़ बनाने कांग्रेस-बीजेपी से लेकर दूसरी पार्टियां लगातार सभाएं और दौरे कर रही है. शहडोल के संवाददाता अखिलेश शुक्ला की इस रिपोर्ट में पढ़िए विंध्य की 47 सीटों का मैजिक...

MP Tribal Politics
47 सीटों का मैजिक

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 11, 2023, 7:32 PM IST

शहडोल। मध्य प्रदेश में चुनावी शंखनाद होते ही चुनावी सरगर्मियां भी काफी तेज हो चुकी है. कांग्रेस दनादन बड़ी-बड़ी सभाएं कर रही है. बीते मंगलवार को शहडोल जिले के आदिवासी बाहुल्य इलाका ब्यौहारी में राहुल गांधी की एक बड़ी जनसभा हुई. अब कांग्रेस की प्रियंका गांधी आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला आ रही हैं. बीजेपी के बड़े-बड़े दिग्गज पहले ही एमपी में कई दौर कर चुके हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी कई बार अलग-अलग जगह पर सभाएं कर चुके हैं. बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर कोई और पार्टी, इन सभी नेताओं में एक ही कॉमन बात देखने को मिली कि सभी ने इस दौरान आदिवासी वर्ग को साधने की कोशिश की है. सभी के सेंटर पॉइंट आदिवासी ही हैं.

विंध्य में राहुल गांधी ने आदिवासियों को साधा: बीते सोमवार को कांग्रेस ने विंध्य की धरा में एक बड़ी जनसभा की. जिसमें राहुल गांधी ने सभा को संबोधित किया. ये आयोजन शहडोल जिले के आदिवासी बाहुल्य इलाका ब्यौहारी में किया गया. यहां पर राहुल गांधी ने आदिवासियों को साधने की पूरी कोशिश की और अपने भाषण के दौरान यही बताने की कोशिश की कि कांग्रेस आदिवासियों की हितैषी है और उनके अधिकार कांग्रेस ही दिला सकती है. वहीं अब 12 अक्टूबर को आदिवासी बहुल इलाका मंडला में कांग्रेस बड़ी सभा करने जा रही है. जहां उनके पार्टी की दिग्गज नेता प्रियंका गांधी सभा को संबोधित करेंगी.

बीजेपी के बड़े-बड़े दिग्गज भी शामिल: विधानसभा चुनाव में आदिवासियों को साधने की रेस में कांग्रेस ही नहीं है बल्कि बीजेपी तो काफी पहले से ही जोर लगा रही है. पार्टी के बड़े-बड़े नेता कई सभाएं भी कर चुके हैं. खुद पीएम मोदी शहडोल जिले के लालपुर में आदिवासी बाहुल्य शहडोल जिले के लालपुर में एक बड़ी जनसभा को संबोधित कर चुके हैं, तो वहीं पकरिया गांव में आदिवासियों के साथ आम के पेड़ के नीचे चर्चा उनके साथ भोजन भी कर चुके हैं. इसके अलावा खुद अमित शाह भी आदिवासी वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए कई सभाएं कर चुके हैं.

आदिवासी सीट पर इतना जोर क्यों ?: विधानसभा चुनाव में आखिर आदिवासी सीटों पर सभी पार्टियों का इतना जोर क्यों है, तो इसकी सबसे बड़ी वजह है की मध्य प्रदेश में अगर किसी भी पार्टी को सत्ता हासिल करना है तो सत्ता की चाबी इन आदिवासी सीट से ही होकर गुजरती है. जो भी पार्टी चुनाव में प्रदेश की इन आदिवासी सीटों पर बढ़त बनाने में कामयाब हो जाती है, उसे आसानी से सत्ता मिल जाती है. कई चुनाव में ये देखने को भी मिला है. शायद यही वजह भी है कि आदिवासी सीटों पर हर पार्टी की नजर है. हर नेता अपना पूरा जोर लगा रहा है.

जानिए 47 सीटों का मैजिक:एमपी में टोटल 230 विधानसभा सीट हैं. जिसमें से 47 विधानसभा सीट सिर्फ आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीट है. ये सभी आदिवासी सीट मध्य प्रदेश में काफी अहम भी मानी जाती है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इन सीटों से होकर ही सत्ता तक पहुंचा जा सकता है. इसीलिए सभी पार्टियां इन सीटों को साधने में जुटी हुई है.

47 सीटों का मैजिक ऐसे समझे: साल 2003 के विधानसभा चुनाव में 10 साल की कांग्रेस सरकार को बीजेपी ने करारी हार दी थी. बीजेपी ने पूरी बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई थी, तो उसमें आदिवासी सीटों पर बंपर बढ़त का भी सबसे बड़ा रोल था. एमपी में साल 2003 में 40 आदिवासी सीट थी, जिसमें से भारतीय जनता पार्टी ने 38 सीटों पर जीत हासिल की थी और सरकार बनाने में कामयाब हुई थी.

  1. साल 2008 में जब फिर से विधानसभा चुनाव हुए तो आदिवासी आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ गई. 40 सीट से बढ़कर अब यह संख्या 47 हो चुकी थी. इस चुनाव में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया. 47 आदिवासी सीटों में से 30 सीट बीजेपी जीतने में कामयाब रही. इस चुनाव में कांग्रेस को महज 16 सीटों पर ही जीत मिली और इस तरह से भारतीय जनता पार्टी लगातार आदिवासी वोटर को साधने में कामयाब रही.
  2. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर से जीत दर्ज की. इस चुनाव में मध्य प्रदेश के 47 आदिवासी आरक्षित सीटों में से 31 सीट में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली. एक सीट इस चुनाव में कांग्रेस की कम हुई. इस चुनाव में कांग्रेस ने 15 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की.
  3. साल 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए और 15 साल के सूखे के बाद कांग्रेस ने जब सरकार बनाई, तो यहां पर 47 आदिवासी सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी. बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली थी, इस बार कांग्रेस की सरकार बनी. मतलब एक बार फिर से साल 2018 में जब सत्ता में उलट फेर हुआ और कांग्रेस की वापसी हुई, तो यहां भी 47 सीटों का मैजिक ही देखने को मिला.

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देखा जाए तो एमपी के 230 विधानसभा सीटों में से भले ही 47 सीट आदिवासी आरक्षित सीट है, लेकिन प्रदेश में आदिवासी वोटर्स का सीधा-सीधा 80 से 85 सीटों पर असर देखने को मिलता है. जिस तरह से चुनाव दर चुनाव आंकड़े देखने को मिल रहे हैं. उससे तो यही लग रहा है कि एमपी में आदिवासी सीट सत्ता पाने में महत्वपूर्ण भूमिका रखती है. इन 47 सीटों के मैजिक से ही सरकारी बनती और बिगड़ती है.

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