शहडोल। बदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदल रहा है. पहले के समय में जब किसान ट्रेडिशनल खेती (traditional farming) किया करता थे, तो बहुत सारी चीजें ऐसे खेतों में इस्तेमाल करते थे, जोकि मिट्टी की उर्वरा शक्ति (Fertility power) कई साल के लिए बढ़ा देती थी. इन्हीं में से एक है ग्रीन खाद (green manure) की प्रक्रिया, जिसमें किसान (Farmer) अपने खेतों पर सनई (Sanai) के बीज बोते हैं, और उसे ग्रीन खाद के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. इससे खेतों की मिट्टी को पोषण मिलता है, और फसल की बंपर पैदावार होती है. बदलते वक्त के साथ अब लोग इसे भूलते जा रहे हैं. कुछ ही किसान ऐसे बचे हैं जो इस तरह ग्रीन खाद का अपने खेतों पर इस्तेमाल करते हैं.
आखिर सनई कैसे किसानों के लिए फायदेमंद है और इसका क्या-क्या इस्तेमाल हो सकता है. किस तरह से इसका ग्रीन खाद बनाया जाता है. कैसे एक बार इसे खेत में मिलाने पर 3 साल के लिए किसान बंपर पैदावार ले सकता है, देखिए यह रिपोर्ट...
सनई जिसे इंग्लिश में सन हैम्प कहते हैं, इसका वैज्ञानिक नाम क्रोटालारिया जुंसिया है, यह एक ऐसा पौधा है जिसका उपयोग हरी खाद बनाने में बहुतायत में किया जाता है. इसके अलावा भी इसके आज कल बहुत सारे उपयोग हो रहे हैं, लेकिन बदलते वक्त के साथ किसानों के बीच में सनई की खेती का प्रचलन कम हुआ है. हालांकि, आज भी कुछ किसान ऐसे हैं जो ट्रेडिशनल खेती करते हैं. जैविक खेती करते हैं और सनई जैसे हरी खाद का इस्तेमाल कुछ साल के अंतराल में अपने खेतों का पोषण करने के लिए जरूर करते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हरी खाद खेत की मिट्टी का पोषण करता है.
सनई के बारे में कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि इसका मूल रूप फाइबर क्रॉप है, शुरूआत में इसका उपयोग रस्सी बनाने के लिए, कैनवास बनाने के लिए, टाट पट्टी बनाने के लिए आदि में मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल किया जाता था.
वैसे तो सनई की खेती शहडोल जिले में भी कुछ साल पहले तक बहुतायत में किसान करते थे. खासकर इसका हरी खाद के तौर पर बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ क्षेत्र से इसकी खेती में कमी आई है. कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि मुख्य रूप से इसकी खेती मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु इन जगहों पर कहीं-कहीं होती है. इसके सबसे बड़े उपयोग की बात की जाए हेल्थ परपज से तो ये लैग्जेटिव होता है. इसके दाने के पाउडर का इस्तेमाल भी किया जाता है. इससे हाई क्वालिटी टिशू पेपर, हाई क्वालिटी सिगरेट पेपर, हाई क्वालिटी करेंसी पेपर आदि में भी सनई का इस्तेमाल किया जाता है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ मृगेंद्र सिंह आगे बताते हैं कि किसानों के दृष्टिकोण से बात की जाए तो ये लेग्यूमिनेसी क्रॉप है. तो यह सीधे नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen fixation) भी करता है, एक तरह से कवर क्रॉप के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. मतलब इसकी जहां बुवाई कर दी जाती है, वहां घास आदि को ये जमने नहीं देता है. इसके साथ ही इसका हरी खाद के तौर पर भी बहुत अच्छा इस्तेमाल होता है. खेत में पहले इसके दाने की बुवाई कर दी जाती है. जब 1 महीने की फसल हो जाती है पूरे खेत को कवर कर लेती है, कोमल होता है फलने फूलने से पहले, इसकी जुताई खेत में ही कर देते हैं, जिस खेत में सनई का पौधा होता है, तो यह ग्रीन मैन्योर का काम करती है. इसके मल्टीपरपज बहुत सारे उपयोग हैं.