शहडोल (shahdol news)। कहने को तो प्रकृति ने हमें कई ऐसे उपहार दिए हैं, जिनके बारे में करीब से जानने के बाद आप खुद ही आश्चर्य में पड़ जाएंगे. जिन पेड़ों को अब तक आप यूं ही माना करते थे, वह पेड़ वाकई में मानव जीवन के लिए कितने चमत्कारी हैं. ये पेड़ प्रकृति का एक बड़ा उपहार हैं.
हम बात कर रहे हैं हर्रा के पेड़ की, जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. आपको पता है अब ये पेड़ भी अपने अस्तिव की लड़ाई लड़ रहा है. अगर वक्त रहते इसे संरक्षित नहीं किया गया, तो आने वाले वक्त में औषधीय महत्व का यह पेड़ विलुप्त भी हो सकता है.
बड़े काम का हर्रा
देखा जाए तो जिले में आज भी हर्रा के पेड़ यदा-कदा पाए जाते हैं, लेकिन कभी यही हर्रा के पेड़ हर जगह बहुतायत में मिलते थे. तब बड़े ही आसानी से हर्रा ग्रामीणों को मिल जाया करता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ अब हर्रा को भी ढूंढना पड़ रहा है. आलम यह है कि कुछ युवाओं को तो अब ये पहचान में ही नहीं आता. युवा वर्ग ने इसका इस्तेमाल करना ही छोड़ दिया है. इसे देखा ही नहीं है. हर्रा को हरीतकी एवं हरण के नाम से जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम टर्मिनेलिया चेबुला (terminalia chebula) है.
ढूंढे से भी नहीं मिलता हर्रा
पेड़-पौधों के बारे में रुचि रखने वाले ग्रामीण केशव कोल कहते हैं कि पहले हर्रा के पेड़ बहुतायत में थे, अब इन्हें ढूंढने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. बदलते वक्त के साथ अब इनकी संख्या भी कम हो रही है. अब कहीं भी हर्रा के नए पड़े नहीं दिखते हैं, सिर्फ पुराने पेड़ ही मिलते हैं.
हर्रा पर अस्तित्व का संकट
बायो डाइवर्सिटी एक्सपर्ट संजय पयासी कहते हैं कि हर्रा की बहुलता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हर्रा गांव का नाम हर्रा पेड़ के आधार पर ही पड़ा है, किसी समय यहां यह पेड़ बहुलता में मिलता था. उन्होंने कहा कि पहले के समय में गांव में जिन पेड़ों की बहुलता पाई जाती थी, गांव के नाम उन पेड़ों के आधार पर रख दिये जाते थे. शहडोल संभाग में कई ऐसे गांव मिल जाएंगे, जहां पेड़ों के आधार पर नाम रखे गए हैं.