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Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि कब, शिव-पार्वती विवाह के दिन क्यों मनाया जाता ये पर्व? - महाशिवरात्रि 2023 पूजन विधि

इस बार महाशिवरात्रि का व्रत 18 फरवरी 2023 को रखा जाएगा. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था. जानें क्या है इस दिन का विशेष महत्व.

Mahashivratri 2023
महाशिवरात्रि 2023

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Published : Feb 6, 2023, 10:35 PM IST

शहडोल।साल के शुरुआत में अगर भक्तों को किसी का इंतजार सबसे ज्यादा रहता है तो वो है महाशिवरात्रि पर्व का. इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी को मनाया जा रहा है. खासकर शिव भक्तों को तो इस दिन का विशेष इंतजार रहता, इसलिए शिव भक्त अभी से ही इसकी तैयारियों में जुट गए हैं. महाशिवरात्रि पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है.

महाशिवरात्रि 2023: ज्योतिषाचार्य के मुताबिक शास्त्रों में लिखा है कि, फाल्गुन चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव ने वैराग्य छोड़कर देवी पार्वती संग अनोखा विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था. इसी वजह से हर साल फाल्गुन चतुर्दशी तिथि को ही भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशी में महाशिवरात्रि काे मनाया जाता है. इस तरह का विशेष पर्व किसी भी भगवान के विवाह के दिन नहीं मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस विशेष दिन जो भी भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा करता है उसे पूर्ण फल मिलता है.

शिव-पार्वती विवाह के दिन क्यों मनाई जाती महाशिवरात्रि: ज्योतिषाचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि महादेव-माता पार्वती ने कई बार रूप बदल-बदल कर शादी की थीं. इसलिए इस विशेष दिन इनका विवाह कराने, करने या देखने से लाभ होता है. इसी वजह से हर साल हर शिव मंदिर में शिव विवाह कराया जाता है. विशेष पूजा की जाती है और महाशिवरात्रि मनाई जाती है.

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पार्वती के कड़े तप के बाद हुआ विवाह:ज्योतिषाचार्य सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि, ये विवाह इतनी आसानी से नहीं हुआ था. इसके लिए माता पार्वती ने कई सालों तक कड़ा तप किया था. माता पार्वती के पिता ने विष्णु जी के साथ उनकी शादी तय कर दी थी. इसके बारे में जैसे ही पार्वती जी को पता चला, वो घर त्याग करके जंगल में चली गईं और तपस्या करने लग गईं. भगवान शिव की प्राप्ति के लिए कड़ा तप करने लग गईं. कुछ दिन तक पत्थर पर बैठकर माता पार्वती ने तपस्या की. इसके बाद 12 साल तक जल में प्रवेश होकर तपस्या की. इसके बाद भी जब शिव जी प्रसन्न नहीं हुए तो बेल के सूखे पत्ते खाकर 12 साल तक फिर तपस्या की. इसके बाद भी जब भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए तो एक पैर में खड़े होकर तपस्या शुरू की. इस दौरान कई बार शिव जी ने माता पार्वती की कड़ी परीक्षा भी ली और माता पार्वती उसमें सफल भी हुईं. जिसके बाद शिव जी माता पार्वती से विवाह के लिए माने और उनका विवाह भी ऐसा अनोखा हुआ कि उसका वर्णन शास्त्रों में भी किया गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि, भगवान शिव-पार्वती के इस विशेष दिन महाशिवरात्रि के दिन जो भी भक्त विशेष पूजा करेगा उसे विशेष फल की प्राप्ति होती है.

शिव-पार्वती को प्रसन्न करने का विशेष दिन: आइए जानते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन कौन से कार्यों को करने से बचना चाहिए. ज्योतिषाचार्य सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि, शास्त्रों में वर्णन है कि महाशिवरात्रि के दिन जो भी भक्त शिव पार्वती के विवाह में शामिल होगा चार प्रहर की पूजा करेगा, उसे विशेष फल की प्राप्त होगी. इस महाशिवरात्रि के विशेष दिन अनोखा विवाह होने के बाद शिव जी ने वरदान दिया था कि 1 बरस तक कोई भी भक्त त्रयोदशी व्रत कर ले या महाशिवरात्रि के दिन शिव पार्वती विवाह और चार प्रहर की पूजा कर ले तो उसे उतना ही फल मिलेगा. उतने में ही सुख सौभाग्यता बनी रहेगी. पत्नी को पति का वियोग नहीं सहना पड़ेगा, दोनों का जीवन सुख पूर्ण व्यतीत होता है, पति पत्नी में सामंजस्य बना रहता है, इसलिए महाशिवरात्रि में अलग-अलग मंदिरों में शिव पार्वती की विशेष पूजा की जाती है.

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कुंवारी कन्याएं ऐसे करें पूजा: मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने से भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है. इसके लिए आचार्य बताते हैं कि, कुमारी कन्याओं को इस दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए. इसके बाद किसी भी ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां पर शिव पार्वती एक साथ विराजे हों. पार्वती जी को सुहाग का सामान अर्पित करें. इसके बाद शीघ्र विवाह की प्रार्थना करनी चाहिए. ऐसा करने से विवाह योग्य कन्याओं को अच्छा वर मिलता है और सुहागिन स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है.

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