मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

सुनिए मिट्टी के दीये बनाने वाले से उनके दिल की बात, कितनी परेशानियों से जूझ रहा कुम्हार - आकर्षक मिट्टी के दीये

शहडोल में दीपावली के मौके पर मार्केट में बिक रहे आकर्षक मिट्टी के दीये ग्राहकों को ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं, वहीं एक दीये के व्यापारी से जो खुद दीए बनाता है और फिर बाजार में ले जाकर उसे बेचता है और जो 15 साल से इस पेशे में है और 10वीं तक पढ़े हुए हैं, रोजगार के लिये पढ़ाई नहीं कर पाए और मिट्टी का काम करने लगे.

सुनिए मिट्टी के दीये बनाने वाले से

By

Published : Oct 23, 2019, 10:33 PM IST

Updated : Oct 23, 2019, 10:47 PM IST

शहडोल। दीपावली के मौके पर मार्केट में बिक रहे आकर्षक मिट्टी के दीये ग्राहकों को ध्यान अपनी ओर खींच रहे है. एक कुम्हार और उसका परिवार दिन रात इसके पीछे कितना काम करता है और उसकी परेशानियां क्या हैं, इसके लिए हमने बात की एक दीये के व्यापारी से जो खुद दीए बनाता है और फिर बाजार में ले जाकर उसे बेचता है.

गोविंद नाम का दीये का व्यापारी इन दिनों मिट्टी के दिये बनाने में लगे हुए हैं. उनका परिवार इसी काम में जुटा हुआ है. कोई पके हुए दिये को बाज़ार में ले जाने के लिए तैयार कर रहा है तो कोई दीपक बनाकर सूखा रहा है तो कोई दीपक बना रहा है. हर कोई काम पर जुटा हुआ है. लेकिन गोविंद की भी इस पेसे में अपनी परेशानियां हैं, गोविंद 15 साल से इस पेशे में हैं 10वीं तक पढ़े हुए हैं, रोजगार के लिये पढ़ाई नहीं कर पाए, और मिट्टी का काम करने लगे.

शहर में रहकर ये काम महंगा पड़ता है
गोविंद कहते हैं कि शहर में रहकर मिट्टी का ये काम महंगा पड़ता है क्योंकि शहर में दूर से मिट्टी मंगवाना, उसे पकाने के लिए लकड़ी खरीदकर लाना और फिर उस मिट्टी के दिए को पकाना महंगा पड़ता है, इसकी मार उन पर पड़ती है क्योंकि बाजार में जब वो जाते हैं तो दूसरे लोग जो गांव से आते हैं जिनके पास मिट्टी है लकड़ी है उन्हें आसानी से और सब सस्ते में मिल जाता है जिसकी वजह से उनका रेट कम रहता है और शहर के इन कारीगरों को महंगा पड़ता है, क्योंकि उन्हें भी अपने सामान का रेट गिराकर काम करना पड़ता है.

सुनिए मिट्टी के दीये बनाने वाले से उनके दिल की बात, कितनी दिक्कतों से जूझ रहा कुम्हार


खुद बनाते हैं और बेचते हैं

गोविंद बताते हैं कि उनका पूरा परिवार मिट्टी के इस कलाकारी के काम में रहता है और इसी से अपना जीवन यापन करता है. वो खुद दीये बनाते हैं और फिर इसे बाजार में ले जाकर बेचते हैं.


अब इलेक्ट्रॉनिक चाक मशीन से होता है काम

बदलते वक्त के साथ अब मिट्टी का काम करने वाला कुम्हार भी बदल रहा है अब जिस चाक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है वो मशीन अब हाथ से नहीं चलाया जाता बल्कि इलेक्ट्रॉनिक बिजली से चलने वाली चाक मशीन से काम किया जा रहा है.

एक दीया बनाने में होता है काम बहुत

गोविंद बताते हैं कि वो करीब 8 से 10 किलोमीटर दूर से अपने इस काम के लिये मिट्टी लाते हैं फिर उस चिकनी मिट्टी को सुखाकर, पीटकर, छानकर, बनाते हैं, गोविंद बताते हैं कि बनाने से लेकर मार्केट तक पहुंचाने में बहुत कॉस्ट लग जाता है जितना प्रोफिट होना चाहिए उतना होता नहीं है. दीया बनाने से लेकर मार्केट तक पहुंचाने में 3 दिन लग जाता है.


काम तो यही आता दूसरा क्या करें ?

गोविंद कहते हैं कि क्या करें काम तो यही आता है बचपन से यही किये रोजगार का दूसरा साधन भी नहीं है तो दूसरा काम कैसे कर सकते हैं, ये तो हमारा पुराना पेशा है भला इसे कैसे छोड़ सकते हैं. अब फायदा हो या नुकसान रोजी रोटी के लिए यही काम करेंगे.


सरकार से सपोर्ट की उम्मीद

गोविंद कहते हैं कि सरकार से हमें यही उम्मीद है कि वो डिस्पोजल को बंद कर दे और कुल्हड़ को कंपल्सरी कर दे जिससे मिट्टी के कारीगरों को बढ़ावा मिलेगा और उनकी आस भी इस काम के प्रति बढ़ेगी। इसके अलावा मिट्टी के कारीगरों को प्रोत्साहित करें, उनके लिए भी कुछ ऐसा करें जिससे वो भी इस बदलते युग में खुद को स्थापित रख सकें और उनकी भी रोजी रोटी चलती रहे.

Last Updated : Oct 23, 2019, 10:47 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details