शहडोल। दीपावली के मौके पर मार्केट में बिक रहे आकर्षक मिट्टी के दीये ग्राहकों को ध्यान अपनी ओर खींच रहे है. एक कुम्हार और उसका परिवार दिन रात इसके पीछे कितना काम करता है और उसकी परेशानियां क्या हैं, इसके लिए हमने बात की एक दीये के व्यापारी से जो खुद दीए बनाता है और फिर बाजार में ले जाकर उसे बेचता है.
गोविंद नाम का दीये का व्यापारी इन दिनों मिट्टी के दिये बनाने में लगे हुए हैं. उनका परिवार इसी काम में जुटा हुआ है. कोई पके हुए दिये को बाज़ार में ले जाने के लिए तैयार कर रहा है तो कोई दीपक बनाकर सूखा रहा है तो कोई दीपक बना रहा है. हर कोई काम पर जुटा हुआ है. लेकिन गोविंद की भी इस पेसे में अपनी परेशानियां हैं, गोविंद 15 साल से इस पेशे में हैं 10वीं तक पढ़े हुए हैं, रोजगार के लिये पढ़ाई नहीं कर पाए, और मिट्टी का काम करने लगे.
शहर में रहकर ये काम महंगा पड़ता है
गोविंद कहते हैं कि शहर में रहकर मिट्टी का ये काम महंगा पड़ता है क्योंकि शहर में दूर से मिट्टी मंगवाना, उसे पकाने के लिए लकड़ी खरीदकर लाना और फिर उस मिट्टी के दिए को पकाना महंगा पड़ता है, इसकी मार उन पर पड़ती है क्योंकि बाजार में जब वो जाते हैं तो दूसरे लोग जो गांव से आते हैं जिनके पास मिट्टी है लकड़ी है उन्हें आसानी से और सब सस्ते में मिल जाता है जिसकी वजह से उनका रेट कम रहता है और शहर के इन कारीगरों को महंगा पड़ता है, क्योंकि उन्हें भी अपने सामान का रेट गिराकर काम करना पड़ता है.
खुद बनाते हैं और बेचते हैं
गोविंद बताते हैं कि उनका पूरा परिवार मिट्टी के इस कलाकारी के काम में रहता है और इसी से अपना जीवन यापन करता है. वो खुद दीये बनाते हैं और फिर इसे बाजार में ले जाकर बेचते हैं.
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