शहडोल(shahdol)। किसान इन दिनों खरीफ के सीजन की खेती में लगा हुआ है. जिले में काफी तेजी के साथ फसलों की बुवाई का काम चल रहा है.जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और यहां पर कुछ किसान कोदो(kodo) की फसल भी लगाते हैं. देखा जाए तो कोदो कुदरत का एक ऐसा उपहार है. जो बंजर भूमि में भी बंपर पैदावार देता है. तो वहीं सेहत के लिए भी सबसे ज्यादा असरदार होता है.कोदो की फसल के रकबे को बढ़ाने के प्रयास में प्रशासन भी लगातार लगा हुआ है.
'कोदो' का रकबा बढ़ने के आसारशहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और यहां खरीफ के सीजन में बहुतायत में धान की खेती की जाती है. इसके अलावा तिलहन और दलहन की भी कई फसलें लगाई जाती है. इतना ही नहीं यहां कोदो की खेती भी परंपरागत तौर पर की जाती है. हालांकि पहले की अपेक्षा आज के आधुनिकता के इस दौर में कोदो की खेती के रकबे में कमी आई है. लेकिन पिछले कुछ सालों से प्रशासन भी कोदो की फसल लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है और कोदो की फसल के रकबे को बढ़ाने के प्रयास में प्रशासन भी लगातार लगा हुआ है.
बंजर जमीन पर भी उगा जाता है कोदो
कृषि विभाग के उपसंचालक आरपी झारिया बताते हैं की जिले में मौजूदा साल कोदो कुटकी का रकबा बढ़ने के काफी आसार हैं. किसानों को सलाह देते हुए उपसंचालक आरपी झारिया कहते हैं कि कई जगह ऐसी होती है जिसे किसान परति के रूप मे या फेलो लैंड के रूप में छोड़ देता है. उन किसानों से हमारा आग्रह है कि ऐसी जमीन में अधिक से अधिक कोदो कुटकी की फसल ली जाए क्योंकि उसका चावल धान के चावल से भी महंगा बिकता है और पोषक तत्व भी उसमें अधिक पाए जाते हैं. पिछली बार भी जिले में साढ़े 6 हजार के आसपास कोदो कुटकी का रकबा था, इस बार साढ़े सात हजार हेक्टेयर का लक्ष्य रखा है. शासकीय संस्थाएं और शासकीय फॉर्म को मिलाकर 209 क्विन्टल बीज हमारे पास उपलब्ध है और बीज की मात्रा आवश्यकता के अनुरूप प्राइवेट बीज विक्रेताओं के माध्यम से बीज उत्पादक समितियों के माध्यम से उपलब्ध करा दिया जाएगा.
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'कोदो' के बीज में अनुदान
कृषि विभाग के उपसंचालक आरपी झारिया कहते हैं की कोदो के बीज का जो रेट है 5700 रुपया प्रति क्विंटल है, उसमें किसानों को 2475 रुपए का अनुदान भी है, अनुदान की जो राशि है डीबीटी के माध्यम से किसानों के खाते में दी जाएगी.
सेहत के लिए बहुत फायदेमंदकोदो की फसल को कहा जाता है कि इसमें पोषक तत्वों की भरमार होती है और इसका सेवन सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है .आयुर्वेद चिकित्सक डॉक्टर अंकित कुमार नामदेव बताते हैं की कोदो के संदर्भ में आयुर्वेद और एलोपैथ दोनों के अलग अलग मत हैं .लेकिन अल्टीमेटली दोनों मत जो हैं वो व्यक्ति विशेष के लिए फायदेमंद ही हैं.
एलोपैथ में तर्क
एलोपैथ में देखा जाए तो कोदो लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स फूड है, लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स फूड वो होता है, जो की मधुमेही या डायबिटिक पेशेंट ले सकता है, जिससे ब्लड में शुगर लेवल नहीं बढ़ता है.
आयुर्वेद का तर्क
आयुर्वेद में देखा जाए तो कोदो को क्षुद्र धान्य कहा जाता है क्षुद्र धान्य जो होते हैं वो पर्टिकुलर बॉडी का एक्सेसिव फैट हटाने वाले होते हैं तो जो लोग आज एक्सेसिव वेट गेन कर रखे हैं और मोटापे से पीड़ित हैं वो लोग अगर कोदो का सेवन करते हैं तो उनका मोटापा कम होगा, क्योंकि ये क्षुद्र धान्य है. पोटेशियम मैग्नीशियम का बहुत अच्छा सोर्स है और इसमें माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की भरमार है. इस तरह से अगर किसी की बॉडी में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की कमी होती है तो उस कमी को ये पूर्ण करता हैं. डियाबिटीज के रोगी इसे चावल के विकल्प के रूप में डेली बेसेस में इसे ले सकते हैं.
सरकार के कोदो की फसल खरीदने से किसानों को होगा फायदा
भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह कहते हैं की कोदो एक ट्रेडिशनल फसल है और कोदो की मांग बड़े शहर में और जो पढ़ा लिखा समाज है वहां बढ़ रही है. फसल का किसानों को ज्यादा दाम मिल सके उस पर काम करने की जरूरत है, क्योंकि अभी किसान कोदो की फसल लगा लेता है तो बेचने की दिक्कत आती है और फिर आखिर में औने पौने दाम में व्यापारियों को देना होता है. जिससे किसानों को नुकसान होता है. भानु प्रताप सिंह कहते हैं की आम तौर पर कोदो की फसल का मूल्य जो है वो 12 रुपए से लेकर के और 17 से 18 रुपये के आसपास जाता है, जबकि अगर अच्छी तरह से किसान उसे साफ करके लाये और व्यापारी अगर उसे 25 रुपये में भी खरीदे तो भी उसको प्रोसेस करके उससे ज्यादा मूल्य हासिल कर सकते हैं.
कोदो की फसल कम लागत में बंजर जमीन में अच्छी पैदावार देने वाली फसल है, और खरीफ के सीजन में इस फसल की खेती की जाती है. इन दिनों बड़े शहरों में और पढ़े-लिखे वर्ग के बीच में कोदो के अनाज की काफी डिमांड बढ़ी है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कोदो में पोषक तत्वों की भरमार है. ऐसे में अगर कोदो की खेती को बढ़ावा दिया जाए, और इसे बेचने के लिए किसानों के लिए कोई अच्छी व्यवस्था बनाई जाए तो निश्चित तौर पर इसके रकबे में भी काफी तेजी के साथ बढ़ोतरी होगी. साथ ही किसानों को भी इसका बहुत फायदा मिलेगा एक तरह से देखा जाए तो कोदो कुदरत के किसी उपहार से कम नहीं है.