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कमाल का कीनोवा, खाने में लजीज, उगाने में आसान...जानिए क्यों सुपर हेल्दी फूड है कीनोवा - Benefits of canova

कीनोवा आदिवासी बाहुल्य जिले शहडोल में कुपोषण की दंश से निजात दिलाने के लिए एक वरदान साबित हो सकता है. कीनोवा में हर वो पौष्टिक चीजें पाई जाती हैं, जो कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में जीत दिला सकती है. बस जरूरत है तो इसे सही तरीके से इस्तेमाल करने की. आइये आपको बताते हैं कि कीनोवा किन मामलो में क्यों खास है और यह किसानों के बीच इतना पॉपुलर क्यों है. जानिए इसके महत्व के बारे में.

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Published : Dec 4, 2020, 2:54 PM IST

शहडोल।कीनोवा की फसल को लेकर शहडोल जिले के किसानों में एक अलग ही उत्सुकता देखने को मिल रहा है. इसकी वजह भी साफ है कि कीनोवा में कई खासियत हैं. पिछले 2 साल से इस फसल को लगाने के लिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को प्रेरित कर रहे हैं और पिछले 2 साल से इसे लगाने के बाद इसका रिजल्ट देखने के बाद किसानों में इस फसल को लगाने के लिए उत्सुकता देखी जा रही है. यूं कहें कि अब ये किसानों के बीच पॉपुलर हो गया है.

पौष्टिकता से भरपूर है कीनोवा

इसकी कई तरह की खासियत को देखते हुए इसे सुपरफूड भी कहा जाता है. कई जगह पर तो इसे सुपरफूड के नाम से भी जाना जाता है. किनोवा इस आदिवासी बाहुल्य जिले में कुपोषण की दंश से निजात दिलाने के लिए एक वरदान साबित हो सकता है. कीनोवा में हर वो पौष्टिक चीजें पाई जाती हैं, जो कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में जीत दिला सकती है. बस जरूरत है तो इसे सही तरीके से इस्तेमाल करने की. आइये आपको बताते हैं कि कीनोवा किन मामलो में क्यों खास है और यह किसानों के बीच इतना पॉपुलर क्यों है.

कमाल का कीनोवा

किनोवा शहडोल में किसानों के बीच खूब सुर्खियां बटोर रहा है. वजह है इसमें पाई जाने वाली तरह-तरह की क्वालिटी. अनाज पौष्टिकता से तो भरा हुआ है ही, साथ ही इसे कम लागत में उगाया जा सकता है. इसे उगाने में ना ज्यादा खाद की जरूरत होती है और ना ही फर्टीलाइजर की जरूरत. किनोवा कम पानी में भी ज्यादा बंपर उत्पादन देता है.

'कमाल' का कीनोवा

कृषि विज्ञान केंद्र शहडोल के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि किनोवा शहडोल जिले के लिए एक तरह से नई फसल है और इसको एक प्रोजेक्ट के तहत 2 साल पहले जिले में शुरू किया गया था. इस फसल को लेकर किसानों का बहुत अच्छा एडॉप्शन था. क्योंकि इसकी फसल भी बहुत अच्छी होती है. जमीन में यह फसल उत्पादन देती है. मृगेंद सिंह कहते हैं कि बाजार में इसका रेट भी बहुत अच्छा मिलता है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट की बात करें तो वहां पर भी हजारों में इसकी कीमत है और अपने यहां लोकल में बात करें तो सौ से डेढ़ सौ रुपये प्रति किलोग्राम बिक जाता है.

डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि बेसिक रुप से कीनोवा का सेंटर ऑफ ओरिजिन पेरू का है और वहां इसकी फसल पहले से ली जा रही है. शहडोल जिले में फर्टीलाइजर कंजप्शन बहुत कम है तो जो भी फसल होती है वह एक तरह से ऑर्गेनिक है और चूंकि इसका रेट बहुत अच्छा है इसलिए इस फसल को लेकर किसानों का रुझान भी इस ओर है और फसल भी अच्छी हासिल हो रही है.

शहडोल की जलवायु इस फसल के लिए बहुत अच्छी और उपयुक्त है और बहुत कम देखभाल में इस फसल को तैयार किया जा सकता है. इसमें किसी भी तरह की बीमारी का प्रकोप अब तक नहीं देखा गया है और सबसे बड़ी बात यह है कि अगर कम दिन की धान लगाई जाए तो उसकी नमी में भी यह फसल बहुत अच्छे से ली जा सकती है. ये रवि सीजन की फसल है और करीब 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है.

कुछ कुपोषित बच्चों के परिवार को बांटे गए पैकेट

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद सिंह बताते हैं कि अभी तो कृषि विज्ञान केंद्र से प्रदर्शन के लिए मुफ्त में बीज किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र से दिया जा रहा है और पिछले कुछ सालों में जहां कहीं-कहीं कुपोषित बच्चे जो फैमिली कुपोषित हैं उनकी बाड़ी में भी अगर थोड़ी बहुत जगह है तो आत्मा के द्वारा और अपने एनआरएलएम के माध्यम से आईसीडीएस के माध्यम से इनके बीच पैकेट बनाकर दिए गए हैं. जिनसे कुपोषित बच्चों को खिलाया जा सके तो इनका कुपोषण भी इससे दूर हो सकता है. डॉक्टर मृगेंद सिंह ने कहा कि यह प्रोजेक्ट का आखिरी साल का है. यह किसानों के बीच अब काफी पॉपुलर हो चुका है और कम से कम तीन से चार ब्लॉक में पांच से छह सौ किसानों के बीच पहुंच चुका है. नंबर ऑफ फॉर्मर्स की बात करें तो करीब 1000 किसानों तक पहुंच चुका है.

किसान बोले शानदार है 'कीनोवा'

ग्राम देवरी टोला के रहने वाले किसान दादू रामसिंह बताते हैं कि वह पिछले 2 साल से किनोवा की खेती कर रहे हैं. हालांकि ज्यादा बड़े रकबे में नहीं कर रहे हैं. अभी ट्रायल के तौर पर पिछले 2 साल से थोड़ी जमीन पर ही खेती कर रहे हैं. लेकिन उत्पादन अच्छा हुआ है. रिस्पांस अच्छा मिल रहा है और कहते हैं कि खाने में भी पौष्टिक है जैसा कि बताया गया तो वह उसे खाने में भी घर में इस्तेमाल करते हैं.

इस फसल के लिए कैसी मिट्टी उपयुक्त

किसी भी फसल की बंपर पैदावार के लिए मिट्टी का बहुत बड़ा रोल होता है. ऐसे में किनोवा की फसल किस तरह की मिट्टी में बंपर उत्पादन देती है. हमारे जिले में उस तरह की मिट्टी पाई जा रही है या नहीं पाई जा रही है. यहां का जलवायु कैसा है इसे जानने के लिए मृदा वैज्ञानिक पीएन त्रिपाठी ने बताया कि यहां की ज्यादातर मिट्टी सैंडी सॉइल है करीब 75 फीसदी से ऊपर की जो मिट्टी है वो सैंडी सॉइल है.

मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी कहते हैं कि दोमट टाइप की अगर मिट्टी है तो वहां पर यह सहजता से इसका बंपर उत्पादन ले सकते हैं. वहां एक एकड़ से 3 से 4 क्विंटल तक उत्पादन हासिल कर सकते हैं. मृदा वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यहां की जलवायु यहां की क्लाइमेट, मिट्टी बिल्कुल उपयुक्त है, वहीं जहां दोमट या भारी मिट्टी मिल जाती है वहां इसका उत्पादन बहुत अच्छा होता है.

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कीनोवा है सुपर फूड , पोषक तत्वों से भरपूर

वहीं खाद्य वैज्ञानिक डॉक्टर अल्पना शर्मा भी मानती हैं कि किनोवा शहडोल जिले के लिए कुपोषण से लड़ने में बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है. उनका मानना है कि किनोवा में सभी अनाजों की तुलना में प्रोटीन की मात्रा काफी तादाद में पाई जाती है. इसमें फाइबर कंटेंट बहुत रिच है. खाद्य वैज्ञानिक के कहा कि बाकी चीजों में आप देखें जिसमें संतृप्त वसा रहती है. इसमें असंतृप्त वसा है. साफ है जो मोटापा से ग्रसित जो लोग हैं या हाई ब्लड प्रेशर वाले रोगी हैं. वह भी इसे खा सकते हैं. साथ ही यह हमारी महिलाओं के लिए बहुत उपयुक्त है, क्योंकि इसमें कैलशियम कंटेंट बहुत ज्यादा है.

कीनोवा को ऐसे खाएं

किनोवा को खाने को लेकर खाद्य वैज्ञानिक अल्पना शर्मा बताती हैं कि किनोवा में जो ऊपरी परत रहती है वह सैपोनेंस की रहती है. दैनिक आहार में इसे चावल की जगह में भी इसको उबाल कर खा सकते हैं. दलिया रूप में भी खा सकते हैं. इसका पोहा बनाकर खा सकते हैं, इसको अगर फुला लिया तो जैसे हम चावल से इडली बनाते हैं , डोसा बनाते हैं तो चावल की जगह पर हम इसका प्रयोग कर सकते हैं, और दाल उड़द का दाल रहता है तो किनोवा और उड़द का दाल मिलाकर इडली डोसा यह सारी चीजें बना सकते हैं, बच्चे हैं तो कुछ खाने के लिए जैसे खिचड़ी बना लें, दलिया बना लें, इसकी बहुत ही स्वादिष्ट खीर बनती है और पौष्टिक गुणों से संपूर्ण रहेगी.

पांच सितारा होटल्स में महंगे व्यंजन के तौर पर जाता है परोसा

खाद्य वैज्ञानिक डॉक्टर अल्पना शर्मा बताती हैं कि कीनोवा की भारत में शुरुआत हुई थी तो विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन ने साल 2013 को किनोवा वर्ष के नाम से घोषित किया था. फिर हमारे देश में जब इसकी शुरुआत हुई तो राजस्थान की ओर से इसकी शुरुआत की गई थी. राजस्थान में यह एक आम तरह का अनाज है. हालांकि अनाज नहीं है यह फूडो अनाज है लेकिन इसे आम लोग दैनिक आहार में उपयोग करते हैं. साथ में जो बड़े होटल या पांच सितारा होटल हैं उनमें खीर और अलग-अलग तरह के लजीज व्यंजन इसके बनाकर परोसे जाते हैं. कीनोवा का सूप भी काफी फेमस है और खीर भी काफी फेमस है जो काफी कीमती दाम पर बेचा जाता है. इसके अलावा भी इसके कई अलग-अलग व्यंजन बनाकर कीमती दामों पर बेचे जाते हैं.

सुपर फूड भी है कीनोवा

खाद्य वैज्ञानिक अल्पना शर्मा कहती हैं कि इसमें इतनी क्वालिटी है. पौष्टिकता से संपूर्ण होने के चलते इसे सुपरफूड कहा गया है. इसमें प्रोटीन, हाई क्वालिटी प्रोटीन, फाइबर की भरपूर मात्रा है. डायबिटीज से ग्रसित लोगों को इसे खाने की सलाह दी जाती है. गौरतलब है कि शहडोल जिले के किसानों के लिए किनोवा या यूं कहें कि यह सुपर फूड काफी सुपर साबित हो सकती है. वजह है कम लागत कम पानी और कम देखरेख में बंपर उत्पादन, साथ ही जिस तरह से जिला कुपोषण का दंश झेल रहा है. ऐसे में पौष्टिकता से परिपूर्ण यह अनाज जिले के लिए एक बड़ा संकटमोचक बन सकता है.

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