शहडोल।कीनोवा की फसल को लेकर शहडोल जिले के किसानों में एक अलग ही उत्सुकता देखने को मिल रहा है. इसकी वजह भी साफ है कि कीनोवा में कई खासियत हैं. पिछले 2 साल से इस फसल को लगाने के लिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को प्रेरित कर रहे हैं और पिछले 2 साल से इसे लगाने के बाद इसका रिजल्ट देखने के बाद किसानों में इस फसल को लगाने के लिए उत्सुकता देखी जा रही है. यूं कहें कि अब ये किसानों के बीच पॉपुलर हो गया है.
इसकी कई तरह की खासियत को देखते हुए इसे सुपरफूड भी कहा जाता है. कई जगह पर तो इसे सुपरफूड के नाम से भी जाना जाता है. किनोवा इस आदिवासी बाहुल्य जिले में कुपोषण की दंश से निजात दिलाने के लिए एक वरदान साबित हो सकता है. कीनोवा में हर वो पौष्टिक चीजें पाई जाती हैं, जो कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में जीत दिला सकती है. बस जरूरत है तो इसे सही तरीके से इस्तेमाल करने की. आइये आपको बताते हैं कि कीनोवा किन मामलो में क्यों खास है और यह किसानों के बीच इतना पॉपुलर क्यों है.
किनोवा शहडोल में किसानों के बीच खूब सुर्खियां बटोर रहा है. वजह है इसमें पाई जाने वाली तरह-तरह की क्वालिटी. अनाज पौष्टिकता से तो भरा हुआ है ही, साथ ही इसे कम लागत में उगाया जा सकता है. इसे उगाने में ना ज्यादा खाद की जरूरत होती है और ना ही फर्टीलाइजर की जरूरत. किनोवा कम पानी में भी ज्यादा बंपर उत्पादन देता है.
'कमाल' का कीनोवा
कृषि विज्ञान केंद्र शहडोल के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि किनोवा शहडोल जिले के लिए एक तरह से नई फसल है और इसको एक प्रोजेक्ट के तहत 2 साल पहले जिले में शुरू किया गया था. इस फसल को लेकर किसानों का बहुत अच्छा एडॉप्शन था. क्योंकि इसकी फसल भी बहुत अच्छी होती है. जमीन में यह फसल उत्पादन देती है. मृगेंद सिंह कहते हैं कि बाजार में इसका रेट भी बहुत अच्छा मिलता है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट की बात करें तो वहां पर भी हजारों में इसकी कीमत है और अपने यहां लोकल में बात करें तो सौ से डेढ़ सौ रुपये प्रति किलोग्राम बिक जाता है.
डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि बेसिक रुप से कीनोवा का सेंटर ऑफ ओरिजिन पेरू का है और वहां इसकी फसल पहले से ली जा रही है. शहडोल जिले में फर्टीलाइजर कंजप्शन बहुत कम है तो जो भी फसल होती है वह एक तरह से ऑर्गेनिक है और चूंकि इसका रेट बहुत अच्छा है इसलिए इस फसल को लेकर किसानों का रुझान भी इस ओर है और फसल भी अच्छी हासिल हो रही है.
शहडोल की जलवायु इस फसल के लिए बहुत अच्छी और उपयुक्त है और बहुत कम देखभाल में इस फसल को तैयार किया जा सकता है. इसमें किसी भी तरह की बीमारी का प्रकोप अब तक नहीं देखा गया है और सबसे बड़ी बात यह है कि अगर कम दिन की धान लगाई जाए तो उसकी नमी में भी यह फसल बहुत अच्छे से ली जा सकती है. ये रवि सीजन की फसल है और करीब 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है.
कुछ कुपोषित बच्चों के परिवार को बांटे गए पैकेट
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद सिंह बताते हैं कि अभी तो कृषि विज्ञान केंद्र से प्रदर्शन के लिए मुफ्त में बीज किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र से दिया जा रहा है और पिछले कुछ सालों में जहां कहीं-कहीं कुपोषित बच्चे जो फैमिली कुपोषित हैं उनकी बाड़ी में भी अगर थोड़ी बहुत जगह है तो आत्मा के द्वारा और अपने एनआरएलएम के माध्यम से आईसीडीएस के माध्यम से इनके बीच पैकेट बनाकर दिए गए हैं. जिनसे कुपोषित बच्चों को खिलाया जा सके तो इनका कुपोषण भी इससे दूर हो सकता है. डॉक्टर मृगेंद सिंह ने कहा कि यह प्रोजेक्ट का आखिरी साल का है. यह किसानों के बीच अब काफी पॉपुलर हो चुका है और कम से कम तीन से चार ब्लॉक में पांच से छह सौ किसानों के बीच पहुंच चुका है. नंबर ऑफ फॉर्मर्स की बात करें तो करीब 1000 किसानों तक पहुंच चुका है.
किसान बोले शानदार है 'कीनोवा'
ग्राम देवरी टोला के रहने वाले किसान दादू रामसिंह बताते हैं कि वह पिछले 2 साल से किनोवा की खेती कर रहे हैं. हालांकि ज्यादा बड़े रकबे में नहीं कर रहे हैं. अभी ट्रायल के तौर पर पिछले 2 साल से थोड़ी जमीन पर ही खेती कर रहे हैं. लेकिन उत्पादन अच्छा हुआ है. रिस्पांस अच्छा मिल रहा है और कहते हैं कि खाने में भी पौष्टिक है जैसा कि बताया गया तो वह उसे खाने में भी घर में इस्तेमाल करते हैं.