शहडोल। एक ओर पीएम मोदी अपनी चुनावी रैलियों में कहते हैं कि खेती को लाभ का धंधा बनाना है, लेकिन मौजूदा समय में डीजल के बढ़े हुए दाम, खेती में बढ़ रही लागत और महंगाई की मार देखकर ऐसा लग तो नहीं रहा है कि सरकार किसानों के फायदे को लेकर सोच भी रही है. मौजूदा समय में जिले में खरीफ के सीजन की खेती के लिए पीक समय है. हर ओर जुताई-बुवाई का काम शुरू है और इसी समय डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं. ऐसे में खेती की लागत बढ़नी तो तय है. किसानों पर खेती में आर्थिक मार पड़नी तय है, जिसे लेकर किसान अब चिंतित हैं कि सरकार करना क्या चाह रही है, पहले ही किसान कोरोना काल में टूट चुका है, आर्थिक मार झेल चुका है और अब खरीफ के सीजन में डीजल के बढ़े हुए दामों को लेकर आर्थिक मार को झेलना अन्नदाता के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है.
लेकिन कहते हैं न कि अन्नदाता का दिल बहुत बड़ा होता है और वो जल्द ही इन सब को भुलाकर अपने नए काम में लग जाता है, लेकिन आपदा की वजह से पड़ी मार के बाद अगर सरकार भी किसानों पर दोहरी मार दे दे, तो फिर किसान इसे कैसे झेल पाएगा. किसानों के साथ इस समय कुछ ऐसा ही हुआ है.
डीजल के दाम बढ़ने से अन्नदाता परेशान हैं. वजह है खरीफ के सीजन की खेती का ये पीक समय है, जिले में किसान खेतों की जुताई-बुवाई में लगा है लेकिन अब डीजल के दाम भी इसी समय इतने ज्यादा बढ गए हैं कि जुताई महंगी हो गई, ढुलाई महंगी हो गई, मशीन से होने वाले सारे काम महंगे हो गए. जाहिर है खेती में लागत भी बढ़ जाएगी.
अब मशीनरी से ज्यादा खेती
बदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है. पहले किसान बैलों के सहारे खेतों की जुताई करते थे, बैल गाड़ी के सहारे खाद बीज की ढुलाई कर लेता था, लेकिन अब धीरे धीरे बदलते वक्त के साथ अब इसकी जगह मशीनरी लेती गई और अब ज्यादातर किसान ट्रैक्टर और दूसरी मशीनों से खेती करने लगे. ऐसे में मेन खरीफ के सीजन में खेती के समय ही डीजल के बढ़े हुए दामों ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी हैं.
हल और बैल की ओर बढ़ रहा रुझान
डीजल के बढ़ते दाम और महंगाई की मार को देखते हुए अब कई छोटे गरीब किसान जो इस आर्थिक मार को नहीं झेल पा रहे, वो अब बैल और हल से खेतों की जुताई बुवाई में लग चुके हैं. उनका साफ कहना है कि उनके पास इतना पैसा ही नहीं है कि वो ट्रैक्टर से खेतों की जुताई कर सकें. डीजल के इस कदर हर दिन बढ़ते दाम के बाद अब बैल और हल से जुताई वालों की संख्या फिर से बढ़ी है.
महंगी हुई जुताई किसानों को समझाना मुश्किल